सरकार के पास इस बात का जवाब नहीं कि लॉकडाउन के बाद तमाम बड़े शहरों से कितना पलायन हुआ, इस दौरान कितने लोगों की जान गयी, लेकिन उसे यह पता है कि सारा पलायन ‘फ़ेक न्यूज़’ की वजह से हुआ। कौन सी ‘फे़क न्यूज़’ और इसे रोकने के लिए क्या कार्रवाई हुई? इसका जवाब तो वह नहीं देती, लेकिन अपना दाग़ छिपाने के लिए वह किस हद तक जा सकती है इसका पता बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान हुआ जहाँ सालिसिटर जनरल ने मशहूर पत्रकार विनोद दुआ के यूट्यूब शो पर सारा ठीकरा फोड़ दिया।
संसद में गृहमंत्रालय का बयान और सुप्रीम कोर्ट में सालिसिटर जनरल की दलील मिलकर जो तस्वीर बनाती है, उसमें विनोद दुआ बलि का बकरा बनते दिख रहे हैं। यानी सारी ज़िम्मेदारी उस पत्रकार की जो लोगों की भूख, बेकारी, ग़रीबी और लॉकडाउन से हो रही तमाम समस्याओं को अपने शो में आवाज़ दे रहा था ताकि सरकार जागे। लेकिन सरकार जागी तो ‘मैसेंजर को शूट’ करने के लिए, यानी संदेश समझने की जगह संदेशवाहक पर ग़ुस्सा निकालने के लिए।
ज़रा पूरा क़िस्सा जान लीजिए। यूट्यूब पर ‘विनोद दुआ शो’ के ख़िलाफ़ कई जगहों पर एफआईआर दर्ज करायी गयी है। संयोग नहीं कि ऐसा करने वाले बीजेपी नेता हैं। हिमाचल में बीजेपी नेता अजय श्याम और दिल्ली में बीजेपी प्रवक्ता नवीन कुमार ने एफआईआर दर्ज करायी है। इन लोगों के मुताबिक ‘पद्मश्री’ विनोद दुआ अपने शो के ज़रिये न सिर्फ़ झूठ फैला रहे हैं बल्कि संप्रदायिक विभाजन भी पैदा कर रहे हैं। विनोद दुआ इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गये कि इन सबको निरस्त किया जाये। वे महज़ पत्रकार बतौर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे थे।
इसी की सुनवाई बुधवार को हो रही थी जब सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विनोद दुआ ने ‘महामारी के दौरान लोगों को पलायन के लिए भड़काया।’
ये सुनवाई बुधवार को जस्टिस यू.यू.ललित की अगुवाई वाली बेंच में हुई। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हिमाचल प्रदेश सरकार (जहाँ एफआईआर हुई) की ओर से दलील दी कि विनोद दुआ शो ने बड़े पैमाने पर लोगों को पलायन के लिए भड़काया। उन्होंने कहा कि विनोद दुआ के ख़िलाफ़ एफआईआर उन्हें प्रताड़ित करने के मक़सद से नहीं दर्ज की गयी है जैसा कि विनोद दुआ का आरोप है।
वाक़ई ये चकराने वाली दलील थी। जस्टिस यू.यू.ललित ने मौखिक टिप्पणी की कि सालिसिटर जनरल कह रहे हैं कि विनोद दुआ के यूट्यूब शो की वजह से पलायन हुआ लेकिन एफआईआर हिमाचल में हुई जबकि इसका ज्यादा असर बिहार और उत्तर प्रदेश में था। इस पर तुषार मेहता ने दलील दी कि विनोद दुआ शो के उस एपीसोड को हालाँकि दस लाख लोगों ने ही देखा लेकिन वीडियो में इस संकट के समय लोगों को भड़काने की जो क्षमता थी, वह भयानक थी। मेहता ने कहा कि लोग पलायन न करते, लेकिन जब उन्होंने ‘विनोद दुआ शो’ में सुना कि सरकार के पास संसाधन नहीं हैं तो उनमें घबड़ाहट फैली।
ज़ाहिर है, तुषार मेहता मोदी सरकार के प्रतिनिधि हैं। उनके बयानों में सरकार के रुख की झलक मिलती है। वहीं, सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने यहाँ तक कह दिया कि इस मामले में किसी जाँच की ज़रूरत भी नहीं है। विनोद दुआ ने लोगों को भड़काने के लिए और कार्यक्रम भी प्रसारित किये हैं। जेठमलानी ने कहा कि विनोद दुआ कोई रजिस्टर्ड पत्रकार भी नहीं है। इन्होंने लोगों को हिंसक होने के लिए भड़काया। जबकि देश में खाने की कोई कमी नहीं है। भंडार भरे हुए हैं। जेठमलानी ने ‘विनोद दुआ शो’ को बनाने वाली कंपनी पर भी सवाल उठाये।
विनोद दुआ देश के जाने माने पत्रकार हैं, लेकिन जेठमलानी उनके ‘रजिस्टर्ड’ होने का सवाल उठा रहे हैं जो भारतीय लोकतंत्र और पत्रकारिता के इतिहास में एक नयी बात है। पर शायद सरकार यही चाहती है कि पत्रकार उसे ही माना जाये जिसके गले में उसकी आावाज़ हो। इस दौर की पत्रकारिता को जब ‘गोदी मीडिया’ कहा जा रहा है यानी ‘सरकार की गोद में बैठा मीडिया’ तो विनोद दुआ जैसे इक्का-दुक्का लोग ही बचे हैं जो पत्रकारिता के मूल संकल्प के साथ खड़े हैं। लेकिन सत्ता को यह मंज़ूर नहीं लगता।
इस मामले की अगली सुनवाई 18 सितंबर को होगी।
अब ज़रा सरकार का औपचारिक रुख भी जान लीजिए। मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान हुए प्रवासी श्रमिकों के पलायन के पीछे की वजह ‘फे़क न्यूज़’ को बताया था। मंत्रालय ने को लोकसभा को बताया कि फे़क न्यूज़ के चलते ही लॉकडाउन में श्रमिकों ने पलायन किया। लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि केंद्र सरकार ‘इस बारे में पूरी तरह से सचेत’ थी और लॉकडाउन की अवधि के दौरान सभी जरूरी उपाय किए गए, ताकि कोई भी नागरिक नहीं भोजन, पानी, चिकित्सा सुविधाओं आदि की मूलभूत सुविधाओं से वंचित न रहे। इससे पहले, सोमवार को केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि 25 मार्च से लागू किए गए लॉकडाउन में कितने प्रवासी श्रमिकों की मौत हुई, इसका कोई डाटा नहीं है।
यानी सरकार ने संसद में जो कहा और सालिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में जो कहा, उसे एक चक्र पूरा होता है। यह चक्र विनोद दुआ के लिए दुश्चक्र है जिसे इसलिए रचा जा रहा है ताकि लॉकडाउन को लेकर हुई भीषण लापरवाहियों पर पर्दा डाला जा सके। सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ ले।
वैसे, एक सवाल तो बनता ही है कि क्या विनोद दुआ जैसे पत्रकार प्रधानमंत्री मोदी से ज़्यादा ताक़तवर हैं जिनकी बात सुनकर करोड़ों लोग पलायन कर गये। महाबली मोदी और उनकी सरकार के तमाम आश्वासन धरे रह गये।
ध्यान इस बात पर भी दीजिए कि बीजेपी के इन सामान्य नेताओं की एफआईआर पर देश के नामी वकील वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ को जेल पहुँचाने की जुगत लगाने में जुटे हुए हैं।
ये लोग कौन हैं, उसकी जानकारी नीचे की ख़बरों से ले लीजिए–
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डॉ.पंकज श्रीवास्तव मीडिया विजिल के संस्थापक संपादक हैं।