प्रगतिशील ग्रामीण चेतना की द्वैमासिक पत्रिका ‘गाँव के लोग’ में एक वर्ष में छपी श्रेष्ठ कहानी को दिया जानेवाला माता यशोदा देवी गाँव के लोग कथा सम्मान इस बार युवा कथाकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आज़ाद को उनकी कहानी ‘अमन ‘ के लिए दिया गया है. मार्च अप्रेल 2019 के अंक में छपी यह कहानी मजदूर वर्ग के दो ऐसे चरित्रों पर है जो समाज के तलछट पर पाए जाते हैं. न उनका कोई घर है, न धर्म और न ही देश को लेकर उनमें कोई दिखावा है लेकिन कहानी में उनकी संवेदना और मानवीय भावनाओं तथा विचारों को जिस शिद्दत से चित्रित किया गया है वह उन्हें करोड़ों ऐसे लोगों का प्रतिनिधि चरित्र बना देता जिनको देश, धर्म और घर के नाम पर लगातार ‘डेंजर जोन’ में ढकेला जा रहा है.
अत्यंत सघन बुनावटवाली यह कहानी धर्मोन्माद और फासीवाद के दौर में इन्सान और इंसानियत के बुनियादी संकटों की और संकेत करती है. मध्यवर्गीय नफासतों और लिजलिजी संवेदनाओं से पटी हुई कहानियों के दौर में यह कहानी ज़िन्दगी की जद्दोजहद में लगे वास्तविक मनुष्यों और हर कहीं से बेदखल किये जा रहे सर्वहाराओं के शिनाख्त की कहानी है.
उल्लेखनीय है कि माता यशोदा देवी गाँव के लोग कथा सम्मान युवा कहानीकार, अधिवक्ता तथा पत्रिका के कानूनी सलाहकार हरिंद्र प्रसाद की माँ की स्मृति में दिया जाता है. इसके तहत समृति चिन्ह, शाल, सम्मानपत्र तथा पांच हज़ार रुपये की राशि प्रदान की जाती है. वर्ष 2018 का पहला सम्मान जावेद इस्लाम को उनकी कहानी ‘रामपुर का रुस्तम’ के लिए दिया गया था.
सीमा आज़ाद अपने दौर की ऐसी कहानीकार हैं जो इस बात की परवाह नहीं करती कि उनकी कहानी को अभिजन क्या रैंक देंगे बल्कि वे ऐसी दुनिया को खोजती और रचती हैं जो सर्वहारा वर्ग को उसके पूरे वजूद के साथ दुनिया के सामने ला सके. वे वस्तुतः असुविधाओं की कथाकार हैं. निहायत संवेदनशील भाषा और शैली के साथ सीमा आज हैवनॉट की आवाज हैं.
इस सम्मान के बारे में सीमा आज़ाद से बात करने पर उन्होंने कहा कि लोगों का सम्मान ही सबसे बड़ा सम्मान है और उन्हें ख़ुशी है कि उन्हें इस सम्मान के काबिल पाया गया. सीमा आज़ाद ने कहा कि उन्हें सरकारी सम्मान की कोई चाह नहीं है. उन्होंने इस सम्मान के लिए चयन समिति के प्रति आभार प्रकट किया है.