सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि पंचमढ़ी और गिर जैसे देश के वन क्षेत्र शहरीकरण और पांच सितारा होटलों के निर्माण के कारण खत्म हो गए हैं और इसके लिए राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता और अदालतें भी जिम्मेदार हैं। ऐसी इको सेंसिटिव जगहों के ख़राब होने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि जंगलों का सरंक्षण करने की आवश्यकता है। गुजरात में गिर नेशनल पार्क और मध्य प्रदेश में पंचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व बनाया गया है जहां होटल और रिसॉर्ट्स वन क्षेत्रों के अंदर आ गए हैं।
'Action Should Be Against 'Urban Encroachers' Of Forest Lands And Not Tribals', Observes SC https://t.co/06nSv69j3E
— Live Law (@LiveLawIndia) September 12, 2019
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “क्या आप पचमढ़ी गए हैं? आपने पचमढ़ी को खत्म कर दिया है। हम इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। अदालतें ज़िम्मेदार हैं। आप ज़िम्मेदार हैं। यह सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनेताओं, अदालतों और अन्य लोगों के कारण हुआ है। जंगलों को संरक्षित करने की जरूरत है।”
दरअसल शीर्ष अदालत देश भर में लगभग 11.8 लाख वनवासियों और आदिवासियों को बेदखल करने से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी। पीठ, जिसमें जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी आर गवई भी शामिल थे, ने कहा कि कभी-कभी वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी भी होटल और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के निर्माण के लिए अपनी जमीन देते हुए पाए गए हैं। पीठ ने कहा, “कभी-कभी आदिवासी भी अपनी भूमि को स्थानांतरित करते पाए जाते हैं। हमें और कुछ कहने के लिए मजबूर न करें। हम सभी जानते हैं कि इन जगहों पर क्या हो रहा है।”
बेदखली का विरोध कर रहे आदिवासी संगठनों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने पीठ से कहा कि वन क्षेत्रों के अंदर निर्माण गतिविधियों में लिप्त लोगों को बाहर निकाला जाना चाहिए लेकिन लाखों निर्दोष आदिवासियों को इस तरह नहीं फेंका जा सकता।
BREAKING: Sokalo Gond and Nivada Rana's intervention application admitted by #SupremeCourt in #ForestRights case. @AdivasisMatter @TribalArmy @reachxdias https://t.co/Pe3pf8w6iG
— Citizens for Justice and Peace (@cjpindia) September 12, 2019
इस दौरान शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि नौ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस इस संबंध में पूरा विवरण देते हुए हलफनामा दायर किया है, जिसमें वन भूमि पर आदिवासियों के दावों को खारिज करने में अपनाई गई प्रक्रिया भी बताई गई है। गोंजाल्विस ने पीठ को बताया कि इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने हलफनामों में कहा है कि इन दावे को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया था।
वहीं फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ( FSI) के वकील ने बताया कि उन्हें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जानकारी नहीं मिली है। पहले शीर्ष अदालत ने FSI को उपग्रह सर्वेक्षण करने और वन क्षेत्रों में रिकॉर्ड अतिक्रमण स्थितियों को देखने के लिए कहा था। FSI के वकील ने कहा कि उन्होंने 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ बात की है लेकिन केवल 11 से जानकारी प्राप्त की जा सकी है। पीठ ने कहा कि अन्य राज्यों से भी जानकारी एकत्र की जाए और इसके लिए FSI को 30 अक्टूबर तक का समय दे दिया। एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने पीठ से कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दायर प्रतिक्रियाएं अपर्याप्त हैं।
पीठ ने कहा कि हम देखेंगे कि किस प्रक्रिया का पालन किया गया है। दीवान ने पीठ को बताया कि FSI ने कहा है कि उपग्रह सर्वेक्षण को पूरा करने में 16 साल लगेंगे क्योंकि उनके पास जनशक्ति और संसाधन सीमित हैं। दीवान ने कहा कि उन्होंने FSI को धन जारी करने के लिए केंद्र को निर्देश देने के लिए एक आवेदन दायर किया है। उन्होंने कहा, “हमारे वन और वन्यजीवों को संरक्षित करने के लिए क़ानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके बाद पीठ ने इस आवेदन पर नोटिस जारी किया और केंद्र से इस पर जवाब देने को कहा है।
मामले में अगली सुनवाई की तारीख 26 नवंबर है। अदालत ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि वे सुनवाई की अगली तारीख तक अपने संबंधित न्यायालयों में वन भूमि के बारे में भारत के वन सर्वेक्षण का विवरण दें।