सुप्रीम कोर्ट ने बीती 13 फरवरी को एक बेहद अहम फैसला सुनाते हुए 21 राज्यों को आदेश दिए हैं कि वे अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को जंगल की ज़मीन से बेदखल कर के जमीनें खाली करवाएं। कोर्ट ने भारतीय वन्य सर्वेक्षण को निर्देश दिए हैं कि वह इन राज्यों में वन क्षेत्रों का उपग्रह से सर्वेक्षण कर के कब्ज़े की स्थिति को सामने लाए और इलाका खाली करवाए जाने के बाद की स्थिति को दर्ज करवाए।
ऐसा पहली बार हुआ कि देश की सर्वोच्च अदालत ने एक साथ दस लाख से ज्यादा आदिवासियों को उनकी रिहाइशों से बेदखल करने और जंगल खाली करवाने के आदेश सरकारों को दिए हैं। यह अभूतपूर्व फैसला है, जिसे जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने कुछ स्वयंसेवी संगठनों द्वारा वनाधिकार अधिनियम 2006 की वैधता को चुनौती देने वाली दायर एक याचिका पर सुनाई करते हुए सुनाया है। इन संगठनों में वाइल्डलाइफ फर्स्ट नाम का एनजीओ भी है।
वनाधिकार अधिनियम को इस उद्देश्य से पारित किया गया था ताकि वनवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक नाइंसाफी को दुरुस्त किया जा सके। इस कानून में जंगल की ज़मीनों पर वनवासियों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता दी गई थी जिसे वे पीढि़यों से अपनी आजीविका के लिए इस्तेमाल करते आ रहे थे।
स्वयंसेवी संगठनों ने इस कानून को चुनौती दी थी और वनवासियों को वहां से बेदखल किए जाने की मांग की थी।
बीती 13 फरवरी को हुई सुनवाई में अदालत ने एक विस्तृत आदेश पारित करते हुए इक्कीस राज्यों को आदिवासियों से वनभूमि खाली कराने के निर्देश जारी कर दिए। आइए, देखते हैं इन 21 राज्यों में कितने आदिवासियों की जिंदगी तबाह होने जा रही है।
राज्य कुल दावा खारिज (आदिवासी और वनवासी)
आंध्र प्रदेश 66,351
असम 27,534
बिहार 4354
छत्तीसगढ़ 20095
गोवा 10130
गुजरात 182869
हिमाचल प्रदेश 2223
झारखंड 28107
कर्नाटक 176540
केरल 894
मध्यप्रदेश 354787
महाराष्ट्र 22509
ओडिशा 148870
राजस्थान 37069
तमिलनाडु 9029
तेलंगाना 82075
त्रिपुरा 68257
उत्तराखंड 51
उत्तर प्रदेश 58661
बंगाल 86144
मणिपुर
कुल खारिज दावे 13,86,549
मणिपुर के सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार चार हफ्ते के भीतर अनुपालन संबंधी हलफनामा दाखिल करेगी।
Copy of SC order (Courtesy: Bar and Bench)