सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने प्रेलेन पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट, अहमदाबाद द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में वकीलों को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले कुछ सालों से राजद्रोह से संबंधित कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है. उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना करने से कोई भी व्यक्ति कम देशभक्त नहीं हो जाता. जबकि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, देशविरोधी नारे लगाना राजद्रोह नहीं है. उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका, नौकरशाही या सशस्त्र बलों की आलोचना को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता.
Criticism of the executive, the judiciary, the bureaucracy or the Armed Forces cannot be termed sedition: Justice Deepak Gupta [Read the Full Text of Speech here]https://t.co/I9vpp1oPRt
— Live Law (@LiveLawIndia) September 7, 2019
उन्होंने कहा कि संवैधानिक अधिकार होने के नाते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की राजद्रोह के कानून से ज्यादा अहमियत होनी चाहिए.
जस्टिस गुप्ता ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में कई ऐसे मामले हुए हैं, जहां राजद्रोह या सौहार्द्र बिगाड़ने के कानून का पुलिस ने जमकर दुरुपयोग किया है और उन लोगों को गिरफ़्तार करने और अपमानित करने के लिए इनका इस्तेमाल किया है जिन्होंने राजद्रोह के तहत कोई अपराध नहीं किया है.’
Misuse of sedition against the spirit of freedom for which our freedom fighters fought and founding fathers gave us this Constitution, Justice Deepak Gupta
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— Bar and Bench (@barandbench) September 8, 2019
जस्टिस दीपक गुप्ता ने “लॉ ऑफ सेडिशन इन इंडिया एंड फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन” विषय पर लंबी बात की. जस्टिस गुप्ता ने अपने भाषण में कई पहलुओं पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा-बातचीत की कला खुद ही मर रही है. कोई स्वस्थ चर्चा नहीं है, सिद्धांतों और मुद्दों की कोई वकालत नहीं करता. केवल चिल्लाहट और गाली-गलौच है. दुर्भाग्य से आम धारणा यह बन रही है कि या तो आप मुझसे सहमत हैं या आप मेरे दुश्मन हैं और इससे भी बदतर कि एक आप राष्ट्रद्रोही हैं.”
Criticism of government not sedition, Majoritarianism cannot be the law: Justice Deepak Gupta https://t.co/4z4Nju7HJR
— Bar and Bench (@barandbench) September 7, 2019
न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, ‘लोकतंत्र का सबसे अहम पहलू यह है कि लोगों को सरकार का कोई डर नहीं होना चाहिए. उन्हें ऐसे विचार रखने में कोई डर नहीं होना चाहिए जो सत्ता में बैठे लोगों को पसंद नहीं हों. दुनिया रहने के लिए बहुत खूबसूरत होगी अगर लोग बिना डर के अपनी बात रख सकेंगे और उन्हें इस बात का डर नहीं होगा कि उन पर मुक़दमा चलाया जायेगा या उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जायेगा.’
न्यायमूर्ति गुप्ता ने बताया कि राजद्रोह का कानून भारत में ब्रिटिश शासन में लाया गया था और इसका मकसद यह था कि बागियों की आवाज को चुप करा दिया जाए.
While delivering the valedictory address on “Law of Sedition in India and Freedom of Expression" at the Workshop of Lawyers at Ahmedabad, Justice Deepak Gupta of the Supreme Court said "the law of sedition is more often abused and misused". #sedition#JusticeDeepakGupta pic.twitter.com/G0P67n4XwY
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) September 7, 2019
उन्होंने कहा, “एक धर्मनिरपेक्ष देश में प्रत्येक विश्वास को धार्मिक होना जरूरी नहीं है. यहां तक कि नास्तिक भी हमारे संविधान के तहत समान अधिकारों का आनंद लेते हैं. चाहे वह एक आस्तिक हो, एक अज्ञेयवादी या नास्तिक हो, कोई भी हमारे संविधान के तहत विश्वास और विवेक की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है. संविधान द्वारा अनुमत लोगों को छोड़कर उपरोक्त अधिकारों पर कोई बाधा नहीं है.”
उन्होंने असहमत होने के अधिकार के महत्व बताते हुए कहा कि; “जब तक कोई व्यक्ति कानून को नहीं तोड़ता है या संघर्ष को प्रोत्साहित नहीं करता है, तब तक उसके पास हर दूसरे नागरिकों और सत्ता के लोगों से असहमत होने का अधिकार है और जो वह मानता है उस विश्वास का प्रचार करने का अधिकार है.”
राजद्रोह कानून के तहत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 (ए) के तहत उन लोगों को गिरफ्तार किया जाता है जिन पर देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने का आरोप होता है. यह कानून ब्रिटिश सरकार ने 1860 में बनाया था और 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया था.
जस्टिस गुप्ता के भाषण को यहां पढ़ सकते हैं:
Address by Justice Deepak Gupta, Judge, Supreme Court