मौत तक ले जाने वाले घटनाक्रम के संबंध में चार न्यायिक अधिकारियों श्रीकांत कुलकर्णी, श्रीराम मोदक, आर. राठी और विजय कुमार बार्डे द्वारा दिए गए बयानों तथा बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भूषण गवई व सुनील शुक्रे की टिप्पणियों पर अविश्वास करने की कोई वजह नहीं है।
ऐसा कहते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच करवाए जाने संबंणी दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया।
महीने भर से जिस ऐतिहासिक फैसले का देश भर को इंतज़ार था, उसने इतिहास रच दिया। एक जज की मौत को ”प्राकृतिक” बताकर उसकी जांच करवाने से इनकार कर के सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ”प्रतिष्ठा” बचा ली। बेंच ने कहा, “जज झूठ नहीं बोल सकते, उनके कहे को ब्रह्मवाक्य की तरह लिया जाना चाहिए… जज पर सवाल उठाने वाला अवमानना के योग्य है।”
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी.वाइ. चंद्रचूड़ और जस्टिस एएम खानवलकर की खंडपीठ ने सीबीआइ के विशेष जज बीएच लोया की मौत की संदिग्ध परिस्थितियों की जांच की मांग से जुड़ी एकाधिक याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है।
खंडपीठ ने माना है कि वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यन्त दवे सुनवाई के दौरान इस हद तक चले गए कि उन्होंने न केवल इन याचिकाओं से असंबद्ध जजों बल्कि बंबई उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति के सदस्यों सहित खुद जस्टिस चंद्रचूड और खानवलकर तक पर आक्षेप लगा डाला तथा याचिकाकर्ताओं ने एक जांच की मांग के आवरण में न्यायपालिका की संस्था को चोट पहुंचाने की कोशिश की।
खंडपीठ ने कहा है कि इन याचिकाओं में कोई दम नहीं था और पीआइएल का इस्तेमाल कर के अदालतों के भीतर कारोबारी व सियासी लड़ाइयां नहीं लड़ी जानी चाहिए।
आज से पहले इस मामले की दस बार सुनवाई हो चुकी थी और 16 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
पहले ये याचिकाएं जस्टिस अरुण मिश्रा और मोहन एम. शांतनागौदर की खंडपीठ के सामने लगी थीं जिन्हें बाद में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की बेंच पर स्थानांतरित कर दिया गया। बेंच ने आदेश दिया था कि बॉम्बे लॉयर्स असोसिएशन और सूर्यकांत लॉज की याचिकाएं भी खुद उसी को स्थानांतरित कर दी जाएं और बाम्बे हाइकोर्ट सहित अन्य उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया था कि वे इस मामले से जुड़ी कोई भी याचिका स्वीकार न करें।
इस तरह से हुआ ये कि जज लोया से जुड़ी सारी याचिकाएं जस्टिस दीपक मिश्रा की खंडपीठ के पास चली गईं और एक झटके में सब की सब खारिज हो गईं।
आज के फैसले पर विविध प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। ट्विटर पर #JudgeLoya दिन में 12 बजे पहले नंबर पर ट्रेंड कर रहा था। पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने लिखा है कि यह न्याय के लिए एक हताश करने वाला दिन है। ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपमानित किया है।
Sad day for justice. Feel let down by the SC #JudgeLoya https://t.co/LpJEsKJ6Ea
— Swati Chaturvedi (@bainjal) April 19, 2018
द कारवां पत्रिका, जिसकी 21 नवबर की पहली स्टोरी के साथ जज लोया की मौत से जुड़ी संदिग्ध परिस्थितियों की कहानी राष्ट्रीय सुर्खियों में आई और बाद में पीआइएल दायर की जाने लगीं, उसके संपादक विनोद के. जोस लिखते हैं:
Will have to wait till one reads the whole judgment on the specifics. But Caravan magazine stands by each of its 22 stories. The stories speak for itself. And we will follow journalistically the qns that continue to puzzle the circumstances of Judge Loya’s death.
— Vinod K. Jose (@vinodjose) April 19, 2018
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने लिखा है:
The SC while dismissing the petition seeking independent Investigation into Judge Loya's death, said that "Judges can't lie. Their word must be treated to be the gospel truth. Anyone who questions judges is guilty of contempt"! Judges in their own cause? https://t.co/fIfk7NmcoS
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) April 19, 2018