पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने गुरुवार को सांसद पद की शपथ लेने के बाद राज्यसभा में नामित किये जाने पर उठ रहे सवालों का विवादास्पद जवाब दिया है. गोगोई ने कहा है कि पांच-छह लोगों की एक लॉबी ने न्यायपालिका पर पकड़ बना रखी है.
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, “ये पांच-छह लोग चाहते हैं कि फैसले उनके मनमाफिक दिए जाएं. अगर ऐसा नहीं होता है तो ये लॉबी जजों को बदनाम करते हैं.” गोगोई ने आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ लोगों के कारण आज न्यायपालिका की आजादी खतरे में है. उन्होंने हालांकि इन “लोगों” का नाम नहीं बताया.
उन्होंने कहा, “जुडिशरी की आजादी का मतलब इन 5-6 लोगों की जकड़ को खत्म करना है. जब तक यह पकड़ खत्म नहीं होती न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं हो सकती. मैं उन जजों को लेकर चिंतित हूं जो यथास्थितिवादी हैं, जो इस लॉबी से पंगा नहीं लेना चाहते और शांति से रिटायर होना चाहते हैं.”
राज्यसभा में मनोनयन को लेकर हो रही आलोचना पर गोगोई का कहना है कि ये सब बकवास है कि सांसद बनाया जाना उनको अयोध्या और राफेल फैसले का ‘इनाम’ है. उन्हें महज इसलिए बदनाम किया जा रहा है क्योंकि वह ‘लॉबी’ के सामने नहीं झुके.
“अगर कोई जज अपनी अंतरात्मा के हिसाब से केस का फैसला नहीं लेता है तो वह अपने शपथ को लेकर ईमानदार नहीं है. कोई जज किसी केस का फैसला इस डर से करे कि 5-6 लोग क्या कहेंगे तो वह अपने शपथ के प्रति सच्चा नहीं है. मेरे सामने आये केसों में मैने वही फैसले दिये जिसको मेरी अंतरात्मा ने सही माना. मैं अगर ऐसा नहीं करता तो जज के तौर पर ईमानदार नहीं रह पाता.”
अयोध्या और राफेल केस के फैसलों का जिक्र करते हुए गोगोई ने कहा कि ये फैसले सर्वसम्मति से लिये गये थे. अयोध्या मसले पर 5 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला दिया जबकि राफेल मामले में भी 3 जजों की बेंच में फैसला सर्वसम्मति से लिया गया था. क्विड प्रो क्वो का आरोप लगाने वाले फैसले से जुड़े जजों की ईमानदारी पर सवाल नहीं उठा रहे हैं?’
गोगोई ने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के समय की गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में बात करते हुए कहा कि तब वे इस लॉबी के दुलारे थे. उन लोगों की मंशा थी कि जज केसों का फैसला उनके हिसाब से करें. उसके बाद उन्हें ‘स्वतंत्र जज’ का सर्टिफिकेट दे दिया जाएगा.
वे बोले, “कोर्ट के बाहर की किसी भी मंशा को मैंने कभी मन में नहीं आने दिया. मैंने वही किया जो मुझे सही लगा, अगर ऐसा नहीं करता तो मैं जज के तौर पर खुद के प्रति सच्चा नहीं रह पाता.”
गोगोई ने कहा कि लॉबी द्वारा ज़हर उगले जाने, बदनाम किये जाने के डर से तमाम जज चुप रहना ही बेहतर समझते हैं लेकिन मैं चुप नहीं रहूंगा. गोगोई ने कहा, ‘वे जो मनोनयन को स्वीकार करने की इस आधार पर आलोचना कर रहे हैं कि यह इनाम है तो उन्हें पूर्व सीजेआइ के प्रति बड़ी सोच रखनी चाहिए. कोई भी पूर्व सीजेआइ इनाम चाहेगा तो कुछ बड़ा चाहेगा, आकर्षक, मलाई वाला पोस्ट चाहेगा जहां तमाम तरह की सुविधाएं हों न कि राज्यसभा जाना चाहेगा जहां उसे वही सुविधाएं मिलेंगी जो बतौर रिटायर्ड जज उसे मिलनी ही हैं. लेकिन मैंने फैसला किया कि अगर नियम इजाजत देंगे तो मैं राज्यसभा के लिए कोई वेतन या भत्ता नहीं लूंगा और उसे छोटे शहरों के लॉ कॉलेजों की लाइब्रेरियों के लिए दे दूंगा.”
‘लॉबी के मनमाफिक काम हो तो नहीं उठते हैं सवाल’
उनकी आलोचना करने वाले कह रहे हैं कि बतौर सीजेआइ उन्होंने सीलबंद रिपोर्ट्स पर जोर दिया, राफेल जैसे मामलों में पारदर्शिता के हिसाब से ये अनैतिक माना जाता है. गोगोई ने इस पर कहा कि क्या हमें राफेल से जुड़ी संवेदनशील सूचनाओं को सार्वजनिक कर देना चाहिए था? …और क्या राफेल डील का मामला रोड कंस्ट्रक्शन से जुड़े सामान्य मामले जैसा है कि कीमत को लेकर दोनों में एक स्तर की पारदर्शिता की जरूरत हो?”
गोगोई ने सवाल किया कि यह लॉबी तब क्यों चुप थी जब 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में अनियमितता से जुड़े केस में सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ सीलबंद रिपोर्ट्स स्वीकार कीं? शाहीन बाग प्रदर्शन के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट को सीलबंद रिपोर्ट सौंपी गई? इस पर क्यों चुप हैं? इस पर क्यों सवाल नहीं उठाए जा रहे हैं?
राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए मनोनयन पर जस्टिस गोगोई ने कहा कि उनके पास एक हफ्ते पहले इसकी पेशकश एक ऐसे व्यक्ति के ज़रिये आयी जो न तो जुडिशरी से जुड़े हुए हैं और न ही सरकार से. राष्ट्रपति आर्टिकल 80 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह पर अलग-अलग क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम करने वालों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करते हैं। क्या 20 सालों तक संवैधानिक जज के तौर पर सेवाएं देने वाला कोई पूर्व सीजेआइ इस मनोनयन के लिए सही नहीं है? मनोनयन स्वीकार करके कोई रिटायर्ड जज किस तरह से न्यायिक स्वतंत्रता से समझौता कर सकता है?’