विवेक अग्निहोत्री की फ़िल्म कश्मीर फ़ाइल्स को लेकर देश भर में ज़बरदस्त उन्माद फैलाने की कोशिश की जा रही है। बीजेपी सरकारें फ़िल्म को टैक्सफ्री ही नहीं कर रही हैं, कर्मचारियों को फिल्म देखने के लिए छुट्टी भी दे रही हैं। यहाँ तक कि ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी भी फ़िल्म के प्रचार में जुट गये हैं।
इसमें कोई शक़ नहीं कि कश्मीरी पंंडितों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनकी हत्या की गयी। लेकिन यह कब शुरू हुआ और आतंकवाद के उस दौर में क्या केवल कश्मीरी पंडितों के साथ ऐसा हुआ। हक़ीक़त ये है कि पिछले दिनों आरटीआई के जवाब में सरकार ने माना का तीन दशकों में आतंकवादियों ने कुल 1724 नागरिकों की हत्या की जिनमें कश्मीरी पंडित 89 थे। यानी बड़े पैमाने पर कश्मीरी मुसलमान मारे गये। ये वो लोग थे जो कश्मीरी पंडितों और भारत के हक़ में आवाज़ उठा रहे थे, लेकिन फ़िल्म यह सब छिपा लेती है और बताने की कोशिश करती है कि मुसलमानों ने पंडितों की हत्या की।
यही नहीं, इस फ़िल्म के ज़रिये कांग्रेस को घेरने की कोशिश हो रही है जबकि हक़ीक़त ये है कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार रहते एक भी पंडित का पलायन नहीं हुआ। बीजेपी के 85 सांसदों के समर्थन से चलने वाली वी.पी.सिंह की सरकार के समय ऐसा हुआ और इसके ख़िलाफ़ राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने संसद का घेराव किया था। उस समय बीजेपी और आरएसएस के सारे नेताओं ने चुप्पी साध रखी थी। सरकार से समर्थन वापसी भी तब हुई जब लालू यादव ने बिहार में आडवाणी की रथयात्रा रोक ली थी।
पूर्व सांसद पप्पू यादव ने ट्वीट करके बीजेपी को कठघरे में खड़ा किया है-
प्रधानमंत्री जी सच में देश से कश्मीर की सच्चाई आपलोगों ने छुपाई है। कश्मीरी पंडितों को भगाया तो भाजपा समर्थित सरकार थी और भाजपाई जगमोहन ही जम्मू-कश्मीर के गवर्नर थे।
राजीव गांधी जी ने कश्मीरी पंडितों के उत्पीड़न पर संसद घेराव किया था। बीजेपी चुप्पी साधे बैठी थी।
— Pappu Yadav (@pappuyadavjapl) March 15, 2022
तो क्या देश के पीएम, बापू के आदर्शों से लेकर कश्मीरी पंडितों के दर्द तक सब कुछ फ़िल्मों के जिम्मे छोड़ देना चाहते हैं? तथ्यों और सच्चाई से मुँह फेरे मोदी सरकार को आख़िर कब अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होगा?
देश के लोगों को जोड़ना ही असल राष्ट्रवाद है, तोड़ना नहीं!
याद रखिये, नफ़रत बाँटकर सरकार बनायी जा सकती है, देश नहीं बनाया जा सकता!!