शौरी, भूषण और सिन्हा का दस्तावेज़ी हमला: ‘राफ़ेल घोटाले में सीधे प्रधानमंत्री मोदी की मिलीभगत!’

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
ख़बर Published On :


 

11 सितंबर को प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने एक प्रेस कान्फ्रेंस के ज़रिये राफ़ेल डील में घोटाले का आरोप लगाते हुए विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि अब तक के इस सबसे बड़े घोटाले में सीधे प्रधानमंत्री मोदी की मीलीभगत है जिन्होंने सिर्फ़ दस दिन पहले पंजीकृत हुई अनिल अंबानी को फ़ायदा पहुँचाने के लिए सात साल की बातचीत और विशेषज्ञ प्रक्रियाओं से बनी सहमति को महज़ कुछ घंटों में बदल दिया।

प्रेस कान्फ्रेंस का वीडियो नीचे है जिसमें शुरआत में अरुण शौरी ने अंग्रेजी में बात रखी और फिर प्रशांत भूषण ने हिंदी में। यशवंत सिन्हा ने इसके बाद दोनों भाषओं में बात रखी फिर प्रेस कान्फ्रेंस मिली जुली ज़बान में। साफ़ है कि राफ़ेल घोटाले की बारीकियों को आम जनता के बीच पहुँचाने की बेचैनी है। आप वीडियो देखें, उसके पहले सार-संक्षेप भी पढ़ लें–

रक्षा ख़रीद के लिए देश में एक स्थापित प्रक्रिया है।

सबसे पहले थलसेना, जलसेना और वायुसेना को बताना होता है कि उन्हें चाहिए क्या।

फिर एक कैटेगेराइज़ेशन कमेटी कमेटी यह देखती है कि बताई गई ज़रूरों में कितने की ख़रीद औचित्यपूर्ण है। उपरकणों को सीधे बाहर से ख़रीदा जाए, या देश में बनाना उचित होगा या फिर कुछ बाहर से ख़रीद कर तकनीक हस्तांतरण कराके देश में ही बनाया जाए।

कमेटी की सिफ़ारिशें रक्षा खरीद परिषद के पास जाती हैं जिसमें रक्षामंत्री समेत तमाम विशेषज्ञ होते हैं। यह काउंसिल जिस सिफ़ारिश को उचित मानती है, उसे स्वीकार करती है।

काउंसिल के फ़ैसेल के बाद टेंडर होता है।

राफ़ेल के मामले मे वायुसेना ने 126 मीडियम रेंज काम्बेट एयरक्राफ्ट खरीदने की ज़रूरत बताई थी।

कैटेगराइजेशन कमेटी ने कहा था कि 18 खरीदे जाएँ और बाकी भारत में टेक्नोलॉजी ट्रांस्फर के तहत बनवाए जाएँ।

2008 में टेंडर हुआ जिसमें छह कंपनियाँ आईं। दो को शार्टलिस्ट किया गया और अंत में राफ़ेल बनाने वाली डेसाल्ट को

अगले सात साल तक क़ीमत और तमाम विशेषज्ञ क्षमताओं को लेकर वार्ता होती रही। तय हुआ कि तकनीक का हस्तांतरण होगा और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एचएएल भारत में इन विमानों को बनाएगी। 18 चालू हालत में आएँगे।

मई 2016 में नरेंद्र मोदी की सरकार बन गई।

2015 की मर्च में डेसाल्ट का सीईओ ने का कि 95 फीसदी फाइनल हो चुकी है और एचएएल के साथ काम करेंगे।

डील पक्की करने 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ्रांस जाना था।

8 अप्रैल को रक्षा सचिव  ने कहा कि डील फाइनल है (पुरानी डील के हवाले से)

10 अप्रैल क सुबह फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांडे ने भी कहा कि डील फाइलन है ।

लेकिन शाम को जो डील हुई, उसमें सात साल की वार्ता से बनी सहमति कूड़ेदान में फेक दी गई। इस नई डील के बारे में न ओलांडे को पता था और न  रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को। पता था सिर्फ अनिल अंबानी को जिन्होंने 10 दिन पहले रक्षा उपकरणों के निर्माण से जुड़ी कंपनी बनाई थी।

नरेंद्र मोदी ने जो डील की उसके मुताबिक टेक्नालाजी का हस्तांतरण नहीं होगा।

केवल 36 विमान खरीदे जाएँगे। उनमें तकनीकी  क्षमता वही होगी जो 126 विमानों वाली डील में थे।

तो सवाल है कि–

126 विमान 36 कैसे हुए ?. क्या वायुसेना ने कहा कि हमें इतने ही चाहिए? रक्षामंत्री को भी नहीं पता। कैटेगराइजेशन कमेटी के पास भी नहीं गया। एचएएल कैसे गायब हो गया और पिछले दरवाजे से अंबानी कैसे आ गया?

कहा गया कि कीमत कम होगी। कोई दस्तावेज़ तो नहीं है लेकिन संकेत मिले हैं । खुद पार्रिकर ने 13 अप्रैल 2015 ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि 126 विमान महंगे पड़ रहे थे। 90 हजार करोड़ देने पड़ते। (यानी 715 करोड़ एक विमान होता।)

फिर नवंबर 2016 में रक्षाराज्य मंत्री ने संसद में कहा कि एक राफेल विमान 670 करोड़ का है।

लेकिन रिलायंस और डेसाल्ट ने स्पष्ट कर दिया हैं कि 36 जहाज की डील 60 हजार करोड़ की  है। यानी एक विमान की कीमत है 1660 करोड़। आधा आफसेट है, 30 हजार करोड़ जिसका बड़ा हिस्सा रिलायंस को मिलेगा।

तो मेक इन इंडिया गायब, रिलायंस आ गया ! दाम सोलह सौ करोड़ हो गया !

सवाल के जवाब में घोल पिलाए जाते हैं। जेटली जी कहते हैं कि 2015 आते-आते पुरानी डील में ही दाम बढ़ जाता पर पार्रिकर तो रक्षामंत्री थे जिनके मुताबिक 715 करोड़ ही थी कीमत एक विमान की।

यह सबसे बड़ा झूठ है कि कीमत इसलिए बढ़ी क्योंकि भारत की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए कुछ उपकरण बढ़वाए गए। एक नया हेमलैट लगाया गया है।  10 अप्रैल  2015 के समझौते में कहा गया था कि उसी तकनीक और क्षमता वाले जहाज आएंगे जिन पर सात साल से वार्ता हो रही थी।

जहाज में नया एड आन (जोड़ने) करने की भी प्रक्रिया है। कोई एक व्यक्ति तय नहीं कर सकता।

पहले एयरफोर्स को बोलना पड़ेगा कि हमें ये नई चीज़ चाहिए। फिर कैटेगराइजेशन कमेटी के पास जाएगा मामला। फिर डिफेंस एक्यूजेशन काउंसिल के पास जाता है।  क्या देश को मूर्ख मानते हैं ? रक्षामंत्री कुछ नहीं बोल रही हैं, दूसरे मंत्री बोल रहे हैं। नोटबंदी पर रक्षामंत्री बोल रहे हैं और रक्षा सौदे में वित्तमंत्री बोलते हैं।

अब तो यह भी साफ़ है कि अनिल अंबानी, अालंदे की पत्नी के लिए कोई फिल्म बना रहे हैं। 200 करोड़ लगाए हैं

क्या मोदी जी इस देश के खजाने को हलुवा बनाकर खा जाएँगे ?

मीडिया के ज़रिए अपनी ही कंपनी एचएएल को ज़लील करा रहे हैं कि वह बोगस कंपनी है। जिसके पास अकेला अनुभव है जहाज बनाने का।

एयरफोर्स के वाइस चीफ़ से झूठ कहलवाया जा रहा है कि उन्होंने 36 जहाज की बात कही थी। इस समझौते के पहले वायुसेना की ओर से कभी कुछ नहीं कहा गया।

एयरफोर्स की कमर तोड़ दी गई है। उसने 126 एयरक्राफ्ट मांगे थे, कम से कम छह स्कावड्रन बनाने थे। सबने आत्मनिर्भर होने की बात कही थी। आपने उसको उड़ा दिया। देश की ग़रीब जनता का पैसा लूट रहे हैं। 21000 करोड़ अनिल अंबानी को दिला दिया जो आलंदे की पत्नी की फिल्म बना रहा है।

देश की सुरक्षा को तहस-नहस कर दिया  खजाने को लूट लिया। आत्मनिर्भरता को खत्म कर दिया। एक के बाद झूठ बोल रहे हैं। इतना मूर्ख मत समझिए जनता को। अभी भी कुछ लोकतंत्र बचा है। ये मत समझिए कि 2019 का चुनाव जीत चुके हैं आप और लोकतंत्र खत्म हो चुका है।

‘इंडियन स्पेस्फिक इनहांस्मेट’ के बारे में सबकुछ इंडियन एक्सप्रेस में छप चुका है। सब वही है जो यूपीए की डील में था।



 


Related