सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने आज जो फैसला अयोध्या के ज़मीन विवाद के संबंध में सुनाया है, वह कुल 1045 पन्ने का है। इस फैसले में अंतिम के 116 पन्ने पर कुछ वकीलों ने सवाल खड़े किए हैं। फैसला इन 116 पन्नों को Addendum यानी परिशिष्ट का नाम देता है और इसे पांच में से किसी एक जज की स्वतंत्र राय बताता है। उस जज का नाम नहीं लिखा गया है। कायदे से इस परिशिष्ट को “असहमति” होना चाहिए था, जिसे कानूनी भाषा में Dissent note कहते हैं।
अव्वल तो अयोध्या का फैसला किसने लिखा, इसी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। फैसला लिखने वाले जज का नाम ज़ाहिर नहीं किया गया है जो परंपरा से हट कर है। दूसरे, इस फैसले के अंत में एक पैरा 116 पन्ने वाले परिशिष्ट के बारे में है जो कहता हैः
“हम में से एक ने, उपर्युक्त दलीलों और संज्ञानों से सहमत होते हुए भी, अलग कारण दर्ज किया है कि “क्या विवादित ढांचा हिंदू अनुयायियों की आस्था और विश्वास के मुताबिक भगवान राम की जन्मस्थली है या नहीं”। विद्वान जज के गिनाये कारण परिशिष्ट में दर्ज हैं।”
पहला सवाल यह है कि उन अकेले विद्वान जज का नाम क्या है जिन्होंने भगवान राम की जन्मस्थली के बारे में अपने कारण गिनवाये हैं। दूसरा सवाल यह है कि यदि यह बाकी चार जजों से भिन्न मत है, तो यह “परिशिष्ट” कैसे हुआ, “असहमति” क्यों नहीं हुआ। क्या बाकी चार जज उनके गिनाये कारणाें से सहमत थे?
Who Is The Author Of Ayodhya Judgment? https://t.co/hMd2rV8noI
— Live Law (@LiveLawIndia) November 9, 2019
जो 116 पन्ने का परिशिष्ट है, उसमें निष्कर्ष दिया गया है कि हिंदुओं की आस्था, कि भगवान राम विवादित स्थल पर ही पैदा हुए रहे, मौखिक और दस्सतावेजी साक्ष्यों से पुष्ट होती है।