भारत में मुस्लिमों पर हिंसक हमलों की बढ़ोतरी का आरोप लगाते हुए भारतीय अमेरिकी समुदाय 18 और 19 जून को अमेरिका के कई शहरों में प्रदर्शन करेंगे। उनका आरोप है कि मोदी राज के तहत भारत में मुस्लिमों पर जानलेवा हमले बढ़ गये हैं। उन्हें फ़र्जी मामलों में जेल भेजा जा रहा है और उनके घरों को ढहाया जा रहा है।
नागरिक और मानवाधिकारों से जुड़े ‘इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल’ ने कहा है कि पैगंबर मोहम्मद पर बीजेपी प्रवक्ता की घृणित टिप्पणी के खिलाफ पिछले हफ्ते हो रहे प्रदर्शन में शामिल एक मुस्लिम लड़का पुलिस की गोली से मारा गया। 11 जून को मुस्लिम एक्ट्विस्ट आफरीन फातिमा के पिता, मां और छोटी बहन को फर्जी तरीके से गिरफ्तार कर लिया गया और उनके घर को अवैध निर्माण की एक दिन से भी कम की नोटिस पर गिरा दिया गया।
वहीं बुधवार को अमेरिका के 18 नागरिक अधिकार संगठनों द्वारा आयोजित ऑनलाइन ब्रीफ़िंग में घर तोड़े जाने की कार्रवाई का शिकार हुईं एक्टिविस्ट आफ़रीन फ़ातिमा ने कहा कि “यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है कि प्रशासन, सरकार और विकास प्राधिकरण मनमाने, अन्यायपूर्ण, अवैध और ग़ैरक़ानूनी ढंग से मुसलमानों के घरों को तोड़ देते हैं। इसके अलावा वे बिना किसी अपराध के मुसलमानों को दंडित करते हुए उन्हें जेल में भी डाल देते हैं।”
फ़ातिमा ने कहा कि ‘घर तोड़ना, मुस्लिम समुदाय के एक सक्रिय स्थानीय सदस्य होने के नाते उनके पिता को दंडित करने का एक तरीका था।’ फ़ातिमा उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर की निवासी हैं जहां की पुलिस ने 12 जून को पहले उनके माता-पिता और बहन को हिरासत में ले लिया और फिर जिला प्रशासन ने उनके घर को ध्वस्त करा दिया जबकि टेलीविजन कैमरे भी चालू थे।
इससे पहले, शुक्रवार 11 जून को, शहर के मुस्लिमों ने पिछले महीने इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद के बारे में भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा की नफ़रती और ईशनिंदात्मक टिप्पणियों के विरोध में मार्च निकाला था। बिना किसी सबूत के जिला प्रशासन ने दावा किया था कि फ़ातिमा के पिता जावेद शुक्रवार को हुई हिंसा के मास्टरमाइंड हैं।
बीजेपी ने तब नूपुर शर्मा को निष्कासित कर दिया था लेकिन पुलिस उन्हें भारतीय कानून के तहत गिरफ्तार करने में विफल रही है। लेकिन उसी समय भारत भर के मुसलमान जो शर्मा की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं, उन्हें पुलिस की बर्बरता, गैरकानूनी गिरफ्तारी और हिंदू चरमपंथी अधिकारियों द्वारा घरों को धराशायी किये जाने का शिकार होना पड़ा है। फातिमा के केस में, पिता जावेद को मास्टर माइंड के रूप में बलि का बकरा बनाने के बाद, प्रयागराज पुलिस ने पिता, मधुमेह की बीमारी से जूझती मां और छोटी बहन को हिरासत में लिया था।
छात्र नेता और भाजपा की मुखर आलोचक फातिमा ने कहा, “जब मेरे पिता को हिरासत में लिया गया था, तब कोई वारंट नहीं था।” फ़ातिमा 2019 में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के विरोध में हुए राष्ट्रव्यापी प्रदर्शनों में आगे-आगे थीं, जिसने नागरिकता कानूनों में पहली बार एक धार्मिक परीक्षण की शुरुआत की।
“मेरी मां और बहन को हिरासत में रखना अवैध था क्योंकि किसी भी पूछताछ या जांच के लिए महिलाओं को हिरासत में लेने के लिए, पुलिस को पहले मजिस्ट्रेट से इजाज़त लेनी पड़ती है, जो कभी नहीं ली गई।”
फातिमा ने जोर देकर कहा कि उनका परिवार अपने सभी टैक्स और बिलों का भुगतान कर रहा था, और उन्हें घर के अवैध निर्माण होने के बारे में कभी कोई नोटिस नहीं मिला।
“पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए सामूहिक दंड है जो कहता है कि आप बोल नहीं सकते….. मैं सभी से आग्रह करती हूं कि वे न केवल इस बारे में बोलें, बल्कि अधिकारियों, कानूनी एजेंसियों और सरकारों को ज़िम्मेदार ठहरायें जो अपनी ताकत का मुस्लिमों के शरीर, ज़िंदगी और घरों के ख़िलाफ़ मनमाना इस्तेमाल करते हैं।”
एमनेस्टी इंटरनेशनल में भारत/कश्मीर विशेषज्ञ गोविंद आचार्य ने कहा कि मोदी सरकार, “चुनिंदा और शातिर तरीके से उन मुसलमानों पर हमलावर है, जो बोलने की हिम्मत करते हैं और अपने साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से असहमति जताते हैं… जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का सरासर उल्लंघन है।”
“एमनेस्टी की ओर से हम भारतीय अधिकारियों से देश में बड़े पैमाने पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों के जवाब में ताकत के अत्यधिक इस्तेमाल को तुरंत ख़त्म करने की मांग करते हैं… हम उन सभी की तुरंत रिहाई की भी मांग करते हैं जिन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सभा के लिए मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया है, जबकि इस अधिकार की गारंटी उन्हें भारत के संविधान ने दी है,” आचार्य ने कहा।
भारत में नागरिक और मानवाधिकारों के मसलों पर मुखर और प्रतिबद्ध संगठन, इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के एसोसिएट डायरेक्टर अमीन ज़मा ने कहा कि “यह सिर्फ कार्यकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर रहा है। निशाना बनाये जाने के लिए आपको एक मुखर मुस्लिम होने की ज़रूरत नहीं है। बीजेपी ने दिल्ली, गुजरात और मध्यप्रदेश में गरीब मुसलमानों के घरों को दंगों या अवैध निर्माण से जोड़ने वाले कमज़ोर सबूतों के साथ ध्वस्त करके इसे साबित कर दिया है। यह साफ तौर पर 22 करोड़ मुसलमानों के नरसंहार की दिशा में बढ़ा एक और कदम है, और भारत दिन-ब-दिन इसके करीब आता जा रहा है।”
ग़ैरलाभकारी संस्था ‘हिंदूज़ फ़ार ह्यूमन राइट’ की पॉलिसी डायरेक्टर रिया चक्रवर्ती के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि भारत “इजरायल के धुर दक्षिणपंथियों की राह पर चलते हुए एक जातीय-राष्ट्रवादी रंगभेदी राज्य बनाने की समान रणनीति का पालन कर रहा है, जहां धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अल्पसंख्यक अलग और असमान हैसियत में रहते हैं।”
चक्रवर्ती ने कहा, “अमेरिकी सरकार को अपने मानवाधिकार उपकरणों, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम का इस्तेमाल उन लोगों को दंडित करने के लिए करना चाहिए जिन्होंने भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को साफ़ तौर पर सताया है।”
इस ब्रीफिंग को जेनोसाइड वॉच, वर्ल्ड विदाउट जेनोसाइड, इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, हिंदूज़ फॉर ह्यूमन राइट्स, इंटरनेशनल क्रिश्चियन कंसर्न, जुबली कैंपेन, 21 विल्बरफोर्स, दलित सॉलिडेरिटी फोरम, न्यूयॉर्क स्टेट काउंसिल ऑफ चर्च, इंटरनेशनल कमीशन ऑन दलित राइट्स, फेडरेशन ऑफ इंडियन अमेरिकन क्रिश्चियन ऑर्गनाइजेशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका, इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल, सेंटर फॉर प्लुरलिज्म, अमेरिकन मुस्लिम इंस्टीट्यूशन, स्टूडेंट्स अगेंस्ट हिंदुत्व आइडियोलॉजी, इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर पीस एंड जस्टिस, द ह्यूमनिज्म प्रोजेक्ट और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मुस्लिम ऑफ अमेरिका द्वारा सह-प्रायोजित किया गया था।
तस्वीर सांकेतिक है।