अगर आप मीडिया के बड़े हिस्से के सत्ता चारण हो जाने से हैरान हैं तो वजह अब साफ़ हो जानी चाहिए। दरअसल मीडिया की ताक़त समझने वाले प्रधानमंत्री मोदी कोई ख़तरा मोल नहीं लेना चाहते हैं। यह पहली बार है कि बिना किसी इमरजेंसी की घोषणा के पीएमओ सीधे संपादकों को फ़ोन करके निर्देश दे रहा है।
यह कोई आरोप नहीं है। यह सनसनीख़ेज़ रहस्योद्घाटन मशहूर टी.वी.ऐंकर पुण्यप्रसून बाजपेयी ने किया है। शनिवार शाम दिल्ली के कान्स्टीट्यूशन क्लब में, पत्रकार आलोक तोमर की स्मृति में आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए प्रसून ने कहा कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पत्रकारिता का पूरा परिदृश्य बदल गया है। अब संपादक को पता नहीं होता कि कब कहाँ से फोन आ जाए। संपादकों के पास कभी पीएमओ तो कभी किसी मंत्रालय से सीधे फोन आता है। ये फ़ोन सीधे खबरों को लेकर होते हैं और संपादकों को आदेश दिए जाते हैं। सेमिनार का विषय था ‘सत्यातीत पत्रकारिता : भारतीय संदर्भ.’
पुण्य प्रसून ने कहा कि मीडिया पर सरकारों का दबाव पहले भी रहा है, लेकिन पहले एडवाइजरी आया करती थी कि इस खबर को न दिखाया जाए, इससे दंगा या तनाव फैल सकता है। अब सीधे फोन आता है कि इस खबर को हटा लीजिए। प्रसून ने कहा कि जब तक संपादक के नाम से चैनलों को लाइसेंस नहीं मिलेंग, जब तक पत्रकार को अखबार का मालिक बनाने की अनिवार्यता नहीं होगी, तबतक कॉर्पोरेट दबाव बना रहेगा।
प्रसून ने कहा कि खुद उनके पास प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आते हैं और अधिकारी बाकायदा पूछते हैं कि अमुक खबर कहां से आई ? ये अफसर धड़ल्ले से सूचनाओं और आंकड़ों का स्रोत पूछते हैं। अक्सर सरकार की वेबसाइट पर ही ये आंकड़े होते हैं लेकिन सरकार को ही नहीं पता होता। उन्होंने कहा कि राजनैतिक पार्टियों के काले धंधे में बाबा भी शामिल हैं। बाबा टैक्सफ्री चंदा लेकर नेताओं को पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि जल्द ही वो इसका खुलासा स्क्रीन पर करेंगे। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही ‘आज तक’ से अलग हुए पुण्य प्रसून बाजपेयी जल्द ही एबीपी न्यूज़ के साथ अपनी पारी शुरू करने जा रहे हैं। वहाँ वे नौ बजे का शो करेंगे जिसका प्रोमो ऑन एयर है।
इस कार्यक्रम में राजदीप सरदेसाई भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में झूठ की मिलावट बढ गई है। किसी के पास भी सूचना या जानकारी को छानने और परखने की फुरसत नहीं है। गलत जानकारियाँ मीडिया मे खबर बन जाती हैं। इसके लिए कॉर्पोरेट असर और टीआरपी के प्रेशर को दोष देने से पहले पत्रकारों को अपने गिरेबां मे झाँककर देखना चाहिए कि हम कितनी ईमानदारी से सच को लेकर सजग हैं।
सेमिनार में सरकार के करीबी माने जाने वाले और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मुखिया, वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय भी मौजूद थे। उन्होंने ‘मीडिया आयोग’ बनाने को वक्त की जरूरत बताया। उन्होंने कहा कि मीडिया पर कुछ लोगों का एकाधिकार होता जा रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि धीरे-धीरे पत्रकारिता पूंजीवादी शिकंजे में कसती जा रही है। पत्रकारों को नहीं पता कि उनकी सारी आज़ादी हड़प ली गई है। पत्रकार अज्ञान के आनंदलोक में खुश हैं और अपनी आज़ादी खो रहे हैं.
चर्चित पत्रकार आलोक तोमर अपनी लेखनी की धार और बेबाक विचारों के ले जाने जाते थे। कुछ साल पहले कैंसर से उनका निधन हो गया था। उनकी स्मृति में हर साल मीडिया की स्थिति पर सेमिनार आयोजित किया जाता है।