‘प्रयागराज’ को दी इलाहाबादियों ने चुनौती, हाईकोर्ट में चार याचिकाएँ, सुनवाई 13 नवंबर को

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अंशु मालवीय


इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किए जाने पर, इलाहाबाद हाईकोर्ट में चार याचिकाएँ दायर की जा चुकी हैं। कानूनी एवं ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर उप्र सरकार के इस कदम को अदालत में चुनौती दी गई है।इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई शुक्रवार 13 नवंबर2018 को होगी।

आज से करीब 15 साल पहले एक बार इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने की सियासत बहुत तेज गरमाई थी।तब इलाहाबाद के कुछ जनसंगठनों और विद्यार्थियों ने मिलकर एक हस्ताक्षर अभियान चलाया था और इन हस्ताक्षरों सहित एक ज्ञापन राष्ट्रपति के नाम भेजा था।तब यह मामला बातों और सरगर्मी तक ही रह गया था और किसी सिरे नहीं चढ़ पाया।लेकिन अब हालात बदल गए हैं और भाजपा भले ही इतिहास ना बना पाए लेकिन ‘साइनबोर्ड’ पेंट करने से भला उसे कौन रोक सकता है।

सम्राट अकबर के जन्मदिन 15 अक्टूबर को उ.प्र.सरकार ने एक मंत्रिमंडलीय प्रस्ताव द्वारा इलाहाबाद का नाम प्रयागराज रखने की घोषणा की। उसी दिन से इलाहाबाद की संस्कृति और ठसक से बेपनाह मुहब्बत करनेवालों ने सरकार के इस फ़रमान से मोर्चा लेना शुरू कर दिया। इतिहास और संस्कृति के पन्ने पलटे जाने लगे और यह मुहिम अलग अलग शक्लों में हाईकोर्ट के गलियारों में भी पहुँच गई। बयानों, प्रतिवेदनों और लेखों की बाढ़ आ गई।इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तमाम विद्यार्थियों ने एक हस्ताक्षरित प्रतिवेदन देश के राष्ट्रपति को भी भेजा है।

 इन्हीं पहलकदमियों की कड़ी में अभी तक चार याचिकाएँ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दरवाज़े पर पहुँच चुकी हैं जिनकी सुनवाई अगले 2 नवंबर 2018 को होगी। इस बीच 29 अक्टूबर को अधिवक्ता विक्रम गुलाटी की याचिका उच्चतम न्यायालय ने खा़रिज कर दी है और इलाहाबाद का नाम बदले जाने को रोकने के लिए आनेवाली अन्य याचिकाओं के सुप्रीम कोर्ट आने पर रोक भी लगा दी है।

चलिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों और तर्कों की तफ़सील में चलते हैं। पहली याचिका 26 अक्टूबर 2018को दायर की गई है। वक़ील सुनीता शर्मा और विजय चन्द्र की इस याचिका में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को भी पक्षकार बनाया गया है। इस याचिका में मुख्य तर्क है कि पहले इलावास नाम का नगर बसाया गया और यही बाद में इलाहाबाद बना। इस याचिका में अर्द्ध कुंभ को कुंभ घोषित करने पर भी सवाल उठाए गए हैं।

दूसरी याचिका 27 अक्टूबर 2018को दायर हुई है।यह याचिका मो.अफ्फान फा़रुख़ी की ओर से वकील शाहिद अली सिद्दीक़ी ने रिट में दो मुख्य बातें उठाई गई हैं।पहला तर्क है कि केंद्र सरकार की इजाज़त के बग़ैर नाम बदलना ग़लत है। दूसरा, यह कि मुग़ल बादशाह अकबर ने किसी शहर का नाम नहीं बदला था बल्कि इलाहाबाद नाम का एक नया शहर बसाया था।तीसरी याचिका का विवरण हमें नहीं मिल पाया है।

तीसरी और संभवतः सबसे महत्वपूर्ण याचिका इलाहाबाद के उस तबके की ओर से आई है जो देश के मानवाधिकार आंदोलन एवं सामाजिक आंदोलनों में शहर का प्रतिनिधित्व करता है। यह याचिका हैरिटेज आफ इलाहाबाद संस्था की ओर से वरिष्ठ वकील व पीयूसीएल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविकिरन जैन. सामाजिक कार्यकर्ता व वकील फ़रमान नक़वी एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष के.के.राय ने 29अक्टूबर 2018 को दायर की है। इसके संदर्भ में रविकिरन जैन जी से.जो बातें हुईं हैं उसके आधार पर हम कुछ महत्वपूर्ण बातों और तर्कों को समझ सकते हैं।

इस याचिका में कहा गया है कि 15अक्टूबर  2018 का कैबिनेट प्रस्ताव पूरी तरह से तर्कहीन है और वह इस तरह के किसी भी निर्णय का आधार नहीं हो सकता है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि देश में 14 प्रयाग हैं लेकिन इसे छोड़कर और किसी प्रयाग का नाम नहीं बदला गया है। इसलिए इस शहर का नाम इलाहाबाद होने से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक कन्फ्यूजन हो रहा था। इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किये जाने से इसका प्राचीन गौरव बढ़ेगा और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

इस याचिका में प्रस्ताव की इस तर्कहीन और मनगढ़ंत प्रस्थापना को चुनौती दी गई है। याचिका में यह कहा गया है कि यह प्रस्ताव पूरी तरह से कपोल कल्पना है। वाल्मीकि रामायण से लेकर इलाहाबाद के गजेटियर और अन्य तमाम इतिहास की किताबों की मदद से यह सिद्ध किया गया है कि सन 1575 में अक़बर यहाँ आए और उन्होंने इलाहाबाद नाम का एक नया शहर बसाया। उसी समय अल्लापुर स्थित बख्शी बाँध का निर्माण किया गया जिसके बिना बाढ़ के कोप से शहर को बचाया नहीं जा सकता था। नतीजा यह था कि अकबर के पहले यहाँ कोई शहर बस ही नहीं सकता था।प्रतिष्ठानपुर,कौशाम्बी और श्रृंगवेरपुर तो नागर बस्तियाँ थीं लेकिन इलाहाबाद कोई नगर नहीं था। रामायण और पुराण भी इस बात की ताईद करते हैं कि यहाँ वन प्रान्तर ही था और भारद्वाज आश्रम उसी वन में था।

याचिका में कानूनी पहलू पर भी तर्क रखे गए हैं। यूपी रेवन्यू कोड 2006 के सेक्नुशन 6 सब-सेक्शन 2 के अनुसार अगर जि़ले की सीमाएं बदली जाएं तभी नाम बदला जा सकता है लेकिन इलाहाबाद के मामले में बिल्कुल ऐसा नहीं हुआ है। सीमाएं वही बनी हुई हैं बस नाम बदला गया है। याचिका के बारे में चर्चा करते हुए जैन साहब ने बताया कि इस पूरी याचिका का आधार है कि जिन लोगों ने नाम बदलने की सियासत की है वे लोग यहाँ की संस्कृति और सभ्यता से पूरी तरह अनजान हैं और उनका यहाँ की तहज़ीब में कोई योगदान भी नहीं है। इलाहाबाद की साहित्यिक परंपरा, संस्कृति और इलाहाबाद हाईकोर्ट, इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए जैन साहब कहते हैं कि यह याचिका इतिहास और संस्कृति की गलत समझ से इलाहाबाद की रक्षा का एक प्रयास है।

चलते-चलते यह बताना भी मौजूं होगा कि इस याचिका को तैयार करने में ‘मीडिया विजिल’ में छप रही कवि बोधिसत्व की लिखी गई लेख श्रृंखला से भी मदद ली गई है जो मीडिया विजिल वेबसाइट में निरंतर छप रही है।

कवि और सामाजिक कार्यकर्ता अंशु मालवीय इलाहाबाद में रहते हैं।




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