देश से लाइसेंस कोटा परमिट राज कहने को कब का चला गया लेकिन राजधानी दिल्ली में सत्ता के गलियारों की टहलकदमी करने वाले पत्रकारों के बीच इसका चलन अब भी है। भारत सरकार का पत्र सूचना ब्यूरो यानी पीआइबी पत्रकारों को मान्यता देता है। ये मान्यता प्राप्त पत्रकार विशिष्ट हो जाते हैं क्योंकि मंत्रालयों से लेकर संसद और सरकारी ब्रीफिंग व यात्राओं आदि में इन्हीं की पूछ होती है। आप दिल्ली में पीआइबी कार्ड होल्डर नहीं हैं तो कुछ नहीं हैं। दिलचस्प बात ये है कि इन पत्रकारों की संख्या 2018 की अद्यतन सूची के मुताबिक महज 2404 है यानी प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की कुल सदस्यता की आधे से भी कम।
इन्हीं पत्रकारों के सुख-सुविधाओं पर सोमवार को अचानक तलवार लटक गई जब केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने ‘फ़ेक न्यूज़’ से निपटने का एक नायाब सर्कुलर निकाला जिसके मुताबिक ऐसी खबर चलाने वाले पत्रकार मान्यता छीन ली जाएगी। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी की गई नई गाइडलाइन के अनुसार पहली बार फ़ेक न्यूज़ चलाने पर पत्रकार की मान्यता छह महीने के लिए, दूसरी बार एक साल और तीसरी बार फेक न्यूज़ चलाने पर हमेशा के लिए मान्यता रद्द हो सकती है। ख़बर बाज़ार में आते ही हड़कंप मचना स्वाभाविक था।
अचानक इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आज़ादी पर हमला कहा जाने लगा गोकि देश की अधिसंख्य पत्रकार बिरादरी का इससे न एक लेना था न दो देना। अंग्रेज़ी के पत्रकारों ने इसे ”ड्रेकोनियन लॉ’ का नाम दे दिया। आनन-फानन में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने मंगलवार की शाम 4 बजे पत्रकारों की एक आपात बैठक आहूत कर डाली। मंगलवार की सुबह से ही #FakeNews ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा। दिल्ली के लुटियन ज़ोन में ऑपरेट करने वाले बड़े पत्रकारों के सामने वजूद का संकट खड़ा हो गया और उन्होंने मुट्ठी भर सरकारी दामादों की लड़ाई को पत्रकारिता जगत की लड़ाई बना दिया।
मंगलवार की दोपहर जो हुआ, वह अतिनाटकीय, अप्रत्याशित और अभूतपूर्व था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मैदान में आना पड़ा और उन्होंने अपने श्रीमुख से स्मृति ईरानी के आदेश को रद्द कर दिया। इस पूरे वक्फ़े में सबसे ज्यादा किरकिरी उन पत्रकारों की हुई जो मंत्री के आदेश के समर्थन में उछल रहे थे। सबसे ज्यादा संतोष उन्हें हुआ जिन्हें पीआइबी कार्ड पर सुविधाएं भोगने की आदत पड़ चुकी थी। एक झटके में 2404 प्रभावशाली पत्रकारों को प्रधानमंत्री ने अपना मुरीद बना लिया। जहां तक स्मृति ईरानी का सवाल है, तो इसे उनकी हार के रूप में देखने वाले पत्रकार अब तक झूठे विमर्श में फंसे पड़े हैं।
यह लडाई सत्ता के दो केंद्रों के बीच थी। जिस तरह आदेश फ़र्जी था, उसी तरह लड़ाई भी फर्जी थी।
आइए देखते हैं कि इस बीच कुछ अहम लोगों ने क्या-क्या राय दी।
Something Trumpian in the air. This #FakeNews fight where the Media is the Enemy. While whats app forwards continue to send 'postcards' from an alternative reality 😎 or was it called 'alternative facts'
— barkha dutt (@BDUTT) April 3, 2018
And who decides what is "fake news" ? You? Your party? Did the Bharat bandh happen yesterday? Or was it all just "fake news?" Is unemployment "fake news?" Demonitisation deaths? "Fake news", right? What about exam paper leak? "Fake" or real? https://t.co/VFBXg1Qo5v
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) April 3, 2018
And so what happens now with all those jumping and jostling to defend the government’s scrapped #FakeNews order of yesterday?
— Sankarshan Thakur (@SankarshanT) April 3, 2018
Breaking now: @PMOIndia calls for 'withdrawing' fake news circular. All one can say: der aye durust aye. #FakeNews
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) April 3, 2018
VHP dubs govt’s release on fake news ‘undeclared emergency’https://t.co/g4MwBfzCS9 pic.twitter.com/i4V5F7wJaO
— Hindustan Times (@htTweets) April 3, 2018