पालघर में साधुओं की लिंचिंग करने वाले भी हिंदू थे, मसला ‘मॉबतंत्र’ है!

देवेश त्रिपाठी
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पिछले कुछ वर्षों में सांप्रदायिक राजनीति की बोतल से मॉब लिंचिंग का जो जिन्न आज़ाद करके लोकतंत्र के पीछे छोड़ दिया गया था, वह अब किसी भी नियंत्रण से बाहर जा चुका है। लोग अब भीड़ में तब्दील हो चुके हैं, और मॉब लिंचिंग एक संस्कृति में। अफवाहें अब एक ऐसे वायरस का रूप ले चुकी हैं, जिन्हें सूंघते ही लोग जॉम्बी में बदल जाते हैं। जीव हम पहले हुआ करते थे, लेकिन इस प्रक्रिया में अब जानवर बन चुके हैं, जिसके मुंह पर खून का स्वाद चढ़ गया है। 

वे दो साधु, जिनकी पालघर में भीड़ ने हत्या की। हम ने तय किया है कि इस वारदात का नृशंस वीडियो हम आपको नहीं दिखाएंगे।

हुआ क्या पालघर में?

महाराष्ट्र के पालघर जिले के दहानू तालुका के गढ़चिंचले गांव में मॉब लिंचिंग की एक घटना में बच्चा-चोरी करने वाला गैंग समझकर जूना अखाड़े के 2 साधुओं और उनके ड्राइवर की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी। गुरुवार की इस घटना का वीडियो रविवार को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। वीडियो में स्पष्ट नज़र आता है कि कुछ पालघर पुलिसकर्मी भी वहां मौजूद थे। इस दौरान भीड़ ने पुलिस पर भी हमला कर दिया था। मामले में 110 लोगों की गिरफ़्तारी हुई है। इनमें से 9 के नाबालिग निकलने पर उन्हें बाल-सुधार गृह भेज दिया गया है और बाक़ी 101 लोगों को 30 अप्रैल तक की पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया है।

बताया जा रहा है कि मुंबई से चलकर साधु सुशील गिरी महाराज (35) और महाराज कल्पवरुक्षगिरी (70) ड्राइवर नीलेश तेलगाड़े (30) के साथ सूरत में एक अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहे थे। महाराष्ट्र और दादरा एवं नगर हवेली के बॉर्डर पर स्थित गढ़चिंचले गांव के पास भीड़ ने उनकी गाड़ी को रोका उन्हें मारना शुरू कर दिया। ख़बर है कि इलाके में बीते कुछ दिनों से बच्चा चुराने व फसल काट ले जाने वाले गिरोह के सक्रिय होने की अफवाह फैली हुई थी, जिससे बचने के लिए गांव के लोगों ने एक निगरानी दल बनाया हुआ था। गढ़चिंचले से गुज़रते हुए सुशील गिरी महाराज रुककर वन विभाग के कर्मचारी से बात कर रहे थे, जब निगरानी दल ने उन्हें बच्चा चोर गैंग का समझकर पकड़ लिया और मारने लगे। पुलिस मौके पर पहुंची तो उसने तीनों को अपनी गाड़ी में बिठा लिया था, पर तब तक और ज़्यादा ग्रामीण इकट्ठा हो गये और उन्होंने पुलिस की टीम और उसकी गाड़ी पर ही हमला बोल दिया। गाड़ी में ही तीनों की मृत्यु हो गयी।

मोदी सरकार में कायम हुआ भीड़-तंत्र

मौजूद सरकार के 2014 में सत्ता में आने के बाद से सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा मिलता गया, जमकर हिंदू-मुसलमान किया गया। साल 2015 में फ्रिज में गौमांस होने की अफवाह के चलते मोहम्मद अख़लाक़ की मॉब लिंचिंग हुई थी, इसमें सरकार समर्थित समूह के शामिल होने की बात आयी। प्रमुख आरोपी छूट गये और एक को तो एनटीपीसी में नौकरी मिल गयी। उल्टे अख़लाक़ के परिवार पर मुकदमा चला। पहलू खान का मामला चला, आरोपी बरी हुए और पहलू खान के ही परिवार पर केस लादे गये। अलीमुद्दीन के मामले में तो आरोपियों को जमानत मिलने पर तत्कालीन बीजेपी केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा फूल-माला पहनाकर स्वागत किया गया। लिंचिंग की अन्य घटनाओं में भी कुछ ख़ास अलग नहीं देखा गया। इन सभी मामलों में लिंचिंग की घटनाओं से पहले की पृष्ठभूमि नफ़रती माहौल से तैयार की गयी, जिसके पीछे स्पष्ट सरकार समर्थित हिंदुत्ववादी राजनैतिक विचारधारा काम कर रही थी और मीडिया का बड़ा हिस्सा टीवी के ज़रिए इसे घरों तक पहुंचा रहा था। इन घटनाओं की सरकार की तरफ़ से न तो पर्याप्त भर्त्सना हुई, न ही कानूनी कार्रवाई ही ठीक से हुई, बल्कि कई मामलों में जानबूझकर कोताही की गयी। इससे नफ़रत के नशे में चूर भीड़ को यह भी भरोसा मिला कि हमें सरकार का मूक समर्थन प्राप्त है। नफ़रत फैलाकर सत्ता बनाये रखने की राजनीति के चक्कर में शामिल लोग भूल गये कि इंसान जब भीड़ में बदल जाये तो उसे कोई नियंत्रित नहीं कर सकता। भीड़ ने अब अपना पगहा छुड़ा लिया है। यह भीड़ अब कुछ यूं तैयार हुई है कि बस उसे अफवाह मिलने तक की देर होती है, और वह शिकार पर निकल पड़ती है।

सोशल मीडिया की ‘मॉब’ को चाहिए मुसलमान ही दोषी 

सोशल मीडिया पर पालघर लिंचिंग का वीडियो वायरल होने के बाद बवाल खड़ा हो गया है और महाराष्ट्र सरकार पर सवाल खड़े होने लगे हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मांग की है कि मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरी ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की है। लेकिन, भाजपा-आरएसएस मार्का फैक्ट्री की मशीन बीजेपी आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर भी ऐसी सांप्रदायिक भीड़ तैयार कर दी है, जो हर मामले में मुसलमानों को निशाना बनाने में लिप्त रहती है। पालघर घटना के बाद भी ट्विटर पर भीड़ को इस्लाम से जोड़ने की बहुत कोशिश की गयी पर महाराष्ट्र के गृह मंत्री ने फिरकापरस्तों के मंसूबों पर पानी फेर दिया और बताया कि मारने वाले का धर्म भी वही था, जो मरने वाले का था। याद रखिये, हत्यारी भीड़ किसी की सगी नहीं होती। भीड़ को अगर आगे भी ख़ुराक दिया जाता रहा, तो वह एक दिन इतनी बड़ी हो जायेगी कि देश को ही खा जायेगी।

 

विशेष नोट – इस घटना का वीडियो, सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक तमाम जगह साझा-प्रदर्शित-अपलोड किया गया है। लेकिन मीडिया विजिल ने तय किया है कि हम यह नृशंस वीडियो प्रकाशित या अपलोड नहीं करेंगे। हमारे पत्रकारीय मूल्यों की अधिक जानकारी के लिए About Us सेक्शन में जाएं।