प्रधानजी, ‘निंदक नियरे राखिये’ का सबक काशी के कबीर मठ में पड़ा हुआ है, समय रहते सीख लीजिए!


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम ‘गांव, गरीब, गांधी’ के राष्‍ट्रीय संयोजक विनोद कुमार सिंह का खुला पत्र


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माननीय मोदी जी,

मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री आप भले ही हों पर भारतीय लोकतंत्र की तासीर से आप अनभिज्ञ हैं अन्यथा अपार बहुमत के बाद कांग्रेसमुक्त कहते-कहते खुद मुक्त होने के कगार पर… क्यों?

1) केरल की पहली सभा में आपने कहा था- ‘’भाइयों-बहनों, यह सदी दलितों व पिछडों की है।‘’ पहली बार बंटवारे की बात सार्वजनिक मंच से की गई, उसके बावजूद किसी दलित/पिछड़े को आपने अपने संगठन (पार्टी) का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनाया, बनाया तो बनिये को वो भी गुजरात का, अर्थात आप इनसिक्योर थे।

2) यह देश जिंदा को गाली देता है और मुर्दों को पूजता है। मसलन, जीते जी राणा प्रताप को लोगों ने अस्वीकार किया, मरने के बाद उनकी जय करते हैं। कबीर को काशी ने मारा, उसी कबीर को मरने के बाद मगहर जा कर माथा टेकता है।

आप नेहरू जैसे पहाड़ को भीटा कहते-कहते थक गए, वह पहाड़ हिमालय बनता चला गया।

नेहरू को मुसलमान बनाने के लिए भारत की जनता ने आपको अपना मत नहीं दिया था, आप पूरा पांच  साल उसी में लगा दिए जबकि कोई जाने या न जाने, मैं जानता हूं कि आपने प्रधान सेवक जैसे शब्द प्रथम सेवक से चुराए (नेहरू ने अपने बारे में यह कहा था)। नेहरू मुस्लिम होते हुए भी कितना दूरदर्शी थे कि आपको 10वें प्रधान सेवक के विस्तार के रूप में रखे थे। नकलची पास हो सकता है पर अव्वल नहीं, आपके पक्ष में मैंने यहां तक लिखा था कि अकबर बनने के लिए अलिफ़ नहीं पढ़ना पड़ता। बैकवर्डों के लिए वीपी सिंह जान दे दिए, किसी बैकवर्ड के घर उनकी तस्वीर नहीं मिलती। अटलजी भले नेहरू की तारीफ करते थे, उस नेहरू के बनाये सरकारी कल-कारखानों को कौड़ियों के दाम पूंजीपतियों को बेच दिए, पूंजीपति तो दोनों तरफ रहता है, पर जो कारखाने में थे, वे साथ छोड़ दिये।

3) आप आते ही ज़मीन अधिग्रहण का जिस दिन बिल लाये, जनता उसी दिन आपसे भयभीत हो गयी थी। उत्तर प्रदेश की जीत आपकी जीत नही थी, सपा/बसपा को लोग देख चुके थे और आपको आज़माना चाहते थे। अगर उन्माद पर वोट पड़ता तो कल्याण सिंह (भाजपा) 1992 के बाद कभी हारते ही नहीं, दूसरे शब्दों में 2017 तक भाजपा रसातल में थी। उत्तर प्रदेश की जनता दो जाति्गत दलों से भी तंग आ गयी थी। सनद रहे मोदीजी, अपनी गलती दूसरे की ताकत बन जाती है। लगभग उसी का लाभ आपको मिला। गुजरात मे आप जीते थे, सच कहना!

जिस घर से बेटा अपनी बहु व मां-बाप को घर से निकाल देता है, उस बेटे को क्या कहते हैं?आडवाणीजी अच्छे थे या बुरे, जो सलूक आपने उनके साथ किया, सत्य के साथ कह रहा हूं कि उस दिन समूचा देश आपको गाली दिया था। खेल तो आडवाणीजी का था, खेले आप और अटलजी।

आप अपने भाषणों में तक्षशिला का उल्लेख करते हैं, तो जान लीजिए कि बुद्ध से असहमत होते हुए भी शंकराचार्य को भगवान कहना पड़ा, सरदार को महान कहिये पर नेहरू को छोटा मत करिए।

4) नोटबन्दी के बाद भी आपको समझ में नहीं आया कि सन्यासियों के देश मे पूंजी का बहुत मतलब नही होता अन्यथा विद्रोह तो उसी दिन हो जाता, फिर भी आप पूंजीपतियों के पक्ष में दिखे।

आप औरों से भिन्न थे ऐसा देश मान रहा था, जब अपनी पेंशन चालू रखे और गरीबों की बन्द पेंशन बंद कर दी। तब लगा कि आप उन सभी से बत्तर है,बाकी सब सत्ता के लिए नाटक था।

5) पांच साल में एक भी पत्रकार वार्ता आपने नहीं की। क्यों? डरते थे? सवाल के जबाब में कह देते कि नही मालूम, प्रयास कर रहा हूं। जैसे जुमले में घुमाए, वैसे वहां भी घुमा देते। ईमानदार तो वीपी सिंह जी थे, जो पूंजीपतियों को जेल भेज दिए। आप तो चार साल मज़ा लिए, पांचवें साल में राम मंदिर की बागडोर सिपहसालारो पर छोड़ दिये।

तमाम प्रधानमंत्रियों में आप सबसे कायर निकले क्योंकि रविदास मंदिर तो गए,पर अयोध्या एक बार भी नहीं गए।

6) तमाम प्रधानमंत्री अपने निवास पर जनता दरबार लगाते थे, ताकि ब्यूरोक्रेसी के चक्रव्यूह से निकल कर गरीब, मज़दूर,  मज़लूमों का काम हो सके। आज आपका जाने का वक्त है, पर किसी जनता दरबार का जिक्र नही मिलता।

7) ट्रेनों में फ्लेक्सी फेयर लाये, ठीकेदारी प्रथा को मजबूत किये, गेहूं सस्ता पानी महंगा क्यों, कभी नही पूछे? नपुंसक जनता है, नहीं तो पेट्रोल की बढ़ती कीमत से आपको जला-जला के मार देती, जैसे फ्रांस में हो रहा है।

देश बहुत ऊंचाई पर ले गया था,टिके रहना आपका काम था पर आप बिखर गए। वंशवाद व परिवारवाद से ही भाषण शुरू करते हैं, कभी अपनी पार्टी में भी देख लिया करो,भाई। अगर आपका परिवार होता तो वह भी अछूता नही रहता।

8) अपनी स्वयं की काउंसिल पर भरोसा नहीं, तभी तो सुषमाजी को नेपाल व भूटान का विदेश मंत्री बना दिये, नोटबन्दी का ऐलान करना चाहिए था वित्तमंत्री को, किया आपने। वह भी पहली बार कैबिनेट की बैठक में मंत्रियों का मोबाइल तक जमा करा लिया गया।

9) ‘’वस्त्र नहीं, विचार’’ के देश में कपड़ों के प्रति आपके रुझान से गरीब चिढ़ने लगा है। नेहरू और लोहिया की बहस में साफ-साफ दिखता है। पता नहीं आपको क्यों नहीं दिखा, लोहिया समाजवादी होते हुए भी अयोध्या व चित्रकूट में राम को खोजते हैं और आप बहादुरी की खाल में समय के साथ डरपोक साबित होते गए।

10) यह नहीं कहता कि जो आएंगे, वे अच्छे होंगे पर क्या करियेगा, लोहिया ने सबको सिखा दिया है कि वादाखिलाफी और बलात्कार ही जुर्म है, जो आपके राज्य में बढ़ा है। वादाखिलाफी तो स्वयं आपने देशवासियों से किया। भय और भ्रष्टाचार कहीं से कम नहीं हुआ। झोपड़ी भी जब नसीब नहीं, उस देश के जिले जिले में लालकिला जैसा ऑफिस बना कर गरीब और गरीबों की बात करना सरेआम बेईमानी है। आप प्रधानमंत्री हैं, जान लीजिए, के. कामराज तमिलनाडु के ही नहीं कांग्रेस के बहुत बड़े नेता थे। प्रधानमंत्री उन्हीं को बनना था पर उन्होंने इंदिरा गांधी को बनाया, तमिलनाडु के जिले जिले में कांग्रेस का कार्यालय बनवाये, बनवाने के बाद चुनाव ही नहीं हारे, पूरी की पूरी कांग्रेस तमिलनाडु से जो खत्म हुई तो आज तक ज़िंदा नहीं हुई। लाख सफाई देते रहे कि चंदा मांग के बनवा रहा हूं, पर जनता को भ्रष्टाचार नज़र आ रहा था। वही कामराज- जिनकी योजना को सब दल अपने अंदर लागू करने की बात करते हैं- एक व्यक्ति-एक पद का नारा देने वाला कामराज कहां खो गया, कोई नहीं जानता।

11) देश मे लोकतंत्र रहे, पर दलों में न रहे। किसी दल में अध्यक्ष का चुनाव नहीं होता। आपने कहा कि ‘’हम पार्टी विथ डिफरेंस हैं’’, तो बताइए अमित शाह कौन सा चुनाव लड़े। अलोकतांत्रिक कम्युनिस्ट भी अपने दल में चुनाव करते हैं अर्थात आप भी वही हैं जो वे हैं।

12) जब आदमी अपने को सुंदर बना के रंगबिरंगे कपड़े में प्रस्तुत करे तो समझो कि वह व्यभिचारी है। गांधी लँगोट में रह गए, दांत टूट गया तो लगवाया ही नहीं। लोहिया को जो मिला वही पहन लिया, नहीं मिला तो पुराना ही पहन लिया। और आप…? कभी उस गरीब की धोती देखे हैं जिस पर चकती लगी है? अपनी तुलना उस गरीब से करिये, सम्भवतः सोच बदल जाय, क्योंकि वाकई लोग आपको चाहते हैं।

सनद रहे प्रधानमंत्री जी, देश में दो कहावतें बहुत चर्चित हैं, जो आदिकाल से चली आ रही हैं और अनंतकाल तक जाएंगी।

पहली, राजा और रंक की लड़ाई में विजय हमेशा रंक की होती है। दूसरी, कोई भी राजा बने, रंक को रोना ही है। दोनों बातें बनारस में ही कही गयी हैं।

समयहै, सम्भल जाइये, शाह (अमित) से इस्तीफा ले लीजिए। नए मानक वमूल्य को स्थापित करिये, निंदक नियरे राखिए का पाठ काशी मेंखोजिये, जो कबीर के मठ में पड़ा हुआ है।

विनोद कुमार सिंह
राष्‍ट्रीय संयोजक
गांव, गरीब और गांधी


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