तमाम समानांतर वार्ताओं में जुटी केंद्र सरकार ने आखिरकार एक बार फिर आंदोलनकारी किसानो को बातचीत का लिखित प्रस्ताव भेजा है। किसानों को ज़िद पर अड़े बताने पर जुट सरकार क किसान संयुक्त मोर्चा की तरफ़ से एक क़रारा जवाब दिया गया है जो सरकार की नीयत पर सवाल करते हुए उसके इरादों को बेपर्दा करता है। पढ़िये–
भारत सरकार .
विषय: संयुक्त किसान मोर्चा की भारत सरकार से तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए चल रही वार्ता बाबत
महोदय,
1. हमें अफसोस है कि इस पत्र में आपने यह पूछा है कि हमारा पिछला पत्र केवल एक व्यक्ति का मत है या कि सभी संगठनों का यही विचार है। हम आपको बता देना चाहते हैं कि डॉ दर्शन पाल जी के नाम से भेजा गया पिछला पत्र और यह पत्र संयुक्त किसान मोर्चा के इस आंदोलन में शामिल सभी संगठनों द्वारा लोकतांत्रिक चर्चा के बाद सर्वसम्मति से बनी राय है। इसके बारे में सवाल उठाना सरकार का काम नहीं है।
2. हमें बहुत दुख के साथ यह भी कहना पड़ रहा है कि भारत सरकार के अन्य कई प्रयासों की तरह आपका यह पत्र भी किसान आंदोलन को नित नए तरीकों से बदनाम करने का प्रयास है । यह किसी से छुपा नहीं है कि भारत सरकार पूरे देश के किसानों के शांतिपूर्ण, जमीनी और कानून सम्मत संघर्ष को अलगाववादियों और चरमपंथियों के रूप में पेश करने, संप्रदायवादी और क्षेत्रीय रंग में रंगने और बेतुका व तर्कहीन शक्ल में चित्रित करने की कोशिश कर रही है। सच यह है कि किसानों ने साफगोई से वार्ता की है, लेकिन सरकार की तरफ से इस वार्ता में तिकड़म और चालाकी का सहारा लिया गया है। इसके अलावा, सरकार तथाकथित किसान नेताओं और ऐसे कागजी संगठनों के साथ समानांतर वार्ता आयोजित कर इस आंदोलन को तोड़ने का निरंतर प्रयास कर रही है जिनका चल रहे आंदोलन से कोई संबंध नहीं है। आप प्रदर्शनकारी किसानों से ऐसे निपट रहे हैं मानो वे भारत के संकटग्रस्त नागरिकों का समूह ना होकर सरकार के राजनीतिक प्रतिद्वंदी हैं ! सरकार का यह रवैया किसानों को अपने अस्तित्व की रक्षा की खातिर अपना विरोध प्रदर्शन तेज करने के लिए मजबूर कर रहा है।
3. हम हैरान हैं कि सरकार अब भी इन तीन कानूनों को निरस्त करने के हमारे तर्क समझ नहीं पा रही है। किसानों के प्रतिनिधियों ने तीन केंद्रीय कृषि अधिनियमों की नीतिगत दिशा, दृष्टिकोण, मूल उद्देश्यों और संवैधानिकता के संबंध में बुनियादी मुद्दों को उठाते हुए इन्हें निरस्त करने की मांग की है। लेकिन सरकार ने चालाकी से इन बुनियादी आपत्तियों को महज कुछ संशोधनों की मांग के रूप में पलट कर पेश करना चाहा है। हमारी कई दौर की वार्ता के दौरान सरकार को स्पष्ट रूप से बताया गया कि ऐसे संशोधन हमें स्वीकार्य नहीं हैं। 5 दिसंबर 2020 को सरकार के संशोधन के मौखिक प्रस्ताव खारिज करने के बाद हमें बताया गया कि सरकार के साथ “ऊपर” चर्चा के बाद “ठोस प्रस्तावों“ को हमारे साथ साझा किया जाएगा। हमें आज तक इस तरह के कोई नए ठोस प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुए हैं। आप जानते हैं कि आपने 9 दिसंबर 2020 को जो लिखित प्रस्ताव भेजे थे वो 5 दिसंबर की वार्ता में दिए गए उन मौखिक प्रस्तावों का दोहराव भर है जिन्हें हम पहले ही खारिज कर चुके हैं। आप यह भी जानते हैं कि आपके प्रस्ताव में अनिवार्य वस्तु (संशोधन) कानून का जिक्र भी नहीं है। हम फिर साफ कर दें कि हम इस कानूनों में संशोधन की मांग नहीं कर रहे, बल्कि इन्हें पूरी तरह निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।
5. इसी तरह विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक के ड्राफ्ट पर आपका प्रस्ताव अस्पष्ट है और बिजली बिल भुगतान तक सीमित है। जब तब आप इस ड्राफ्ट में क्रॉस सब्सिडी को बंद करने के प्रावधान के बारे में अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं करते, तब तक इस पर जवाब देना निरर्थक है। वायु गुणवत्ता अधिनियम पर “उचित प्रतिक्रिया” का आश्वासन इतना खोखला है कि उसका जवाब देना हास्यास्पद होगा।
6. हम आपको आश्वस्त करना चाहते हैं कि प्रदर्शनकारी किसान और किसान संगठन सरकार से वार्ता के लिए तैयार हैं और इंतजार कर रहे हैं कि सरकार कब खुले मन, खुले दिमाग और साफ नीयत से इस वार्ता को आगे बढ़ाए। आपसे आग्रह है कि आप निरर्थक संशोधनों के खारिज प्रस्तावों को दोहराने की बजाए कोई ठोस प्रस्ताव लिखित रूप में भेजें ताकि उसे एजेंडा बनाकर जल्द से जल्द वार्ता के सिलसिले को दोबारा शुरू किया जा सके।
संयुक्त किसान मोर्चा के समस्त नेता