समाजवादी पार्टी ने पिछले दिनों लगभग साल के अंत में उत्तर प्रदेश में किसानों से कहा था कि आवारा पशुओं को सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में बंद कर दें।
आज के इंडियन एक्सप्रेस अखबार में इसका परिणाम छपा है! 28 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दिया गया है।
खबर के मुताबिक शाहजहांपुर के नगरिया भुजगढ़ गांव के किसानों ने 2 जनवरी की देर रात स्कूल के भीतर ताला तोड़कर या खोलकर अवारा पशुओं को घुसा दिया। वहां के प्रखंड शिक्षा अधिकारी ने बताया कि जब स्कूल की प्रिसिपल शिखा शुक्ला 3 जनवरी को स्कूल पहुंची तो उसने पाया कि गेट का ताला टूटा हुआ है और प्रांगण के अंदर अवारा पशु मौजूद है। शुक्ला ने इसकी जानकारी तत्काल जिला प्रशासन और पुलिस को दिया। सूचना मिलते ही जलालाबाद के सर्किल ऑफिसर शिव प्रसाद दुबे सबडिविजनल मजिस्ट्रेट विजय शर्मा के साथ वहां पहुंचे और तहकीकात करनी शुरू की। तहकीकात के बाद दुबे जी को पता चला, “आज तक तो किसानों को आवारा पशुओं से कोई परेशानी नहीं हुई थी, ऐसा लगता है कि कुछ लोगों ने जान-बूझ कर यह शरारत की है।” दुबे जी के अनुसार उसने एफआईआर कराने का आदेश दिया।
शाहजहांपुर के जिलाधिकारी अमृत त्रिपाठी भी यही सोचते हैं! त्रिपाठी जी के अनुसार ‘ऐसा लगता है कि कुछ शरारती तत्व जिले का माहौल बिगाड़ने के लिए पुलिस को उकसा रहा है, हम उसके इन हरकतों के पीछे छुपे हुए अन्य उद्देश्यों के बारे में भी जानकारी बटोर रहे हैं। वैसे हमारे जिले में आवारा पशुओं का मसला तो बिल्कुल ही नहीं है।’
उत्तर प्रदेश के जातिविहीन समाज में पशुपालन न करने वाले शुक्ला जी, शर्मा जी, दुबे जी और त्रिपाठी जी बता रहे हैं कि आवारा पशु कोई समस्या नहीं है और यह सारा काम शरारती तत्वों का है। इन जातिविहीन अधिकारियों समझाना नामुमकिन है कि किसानी करने वाले अवारा पशुओं से ही नहीं बल्कि अपने पशुओं से भी तब से परेशान हैं जब से ‘गौ-माता’ को बचाने की मुहिम पूरे देश में संघियों ने छेड़ दिया है। किसान बदहाल हो गए हैं, वे बूढ़ी गाय बेच नहीं पा रहे हैं क्योंकि खरीददार को ‘पहलू खान’ या ‘अखलाक’ हो जाने का डर है! भारतीय पढ़ा-लिखा बेईमान तबका इस तथ्य से वाकिफ ही नहीं होना चाहता कि लंबे समय से अपवादों को छोड़कर पशुपालन दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े ही कर रहे हैं। और अगर किसानी में कोई अन्य समुदाय है भी तो उनकी आर्थिक हालत इतनी दयनीय बना दी गई है कि वे बच्चा व दूध न देनी वाली गाय को रखने का बोझ नहीं उठा पा रहे हैं। लेकिन गाय के नाम पर धंधा करने वाली पार्टी व सरकार आर्थिक मसले से लोगों का ध्यान हटाकर इसे सांप्रदायिक रूप दे देती है।
तुर्रा यह कि समाजवादी पार्टी की त्रासदी देखिए! वह अपने समर्थकों और किसानों से यह नहीं कह पा रही है कि वे आवारा पशुओं को कचहरियों में, थानों में, बिजली या सिंचाई विभाग के दफ्तरों में, मंत्रियों-अफसरों के आलीशान कोठियों, गौरक्षा करनेवाले फर्जी दौलतवालों के आरामगाहों में या ऐश्वर्य बिखेरते मंदिरों या फिर पांचसितारा आश्रमों या फिर देश में सांप्रदायिकता फैलाने वाले और फर्जी राष्ट्रवादी पैदा कर रहे सरस्वती शिशु मंदिरों में छोड़ आएं।
सामाजिक न्याय वाले तो बस गरीबों के लिए न्यूनतम छोड़े गए सार्वजनिक स्कूलों और अस्पतालों को ही बर्बाद करने के बारे में योजना बनाएंगे!