असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का अंतिम ड्रॉफ्ट जारी होने के बाद से सूची से बाहर हुए 19 लाख लोग भय और मानसिक सदमे में जीने को मजबूर हैं. ठीक उसी समय हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ऐलान कर दिया है कि हरियाणा में भी वे एनआरसी कानून को लागू करेंगे. इस मसले पर कांग्रेस का रवैया बहुत संदेहास्पद है. कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने खट्टर के इस विवादित बयान का समर्थन किया है.
Will implement NRC in Haryana as well: CM Khattar
Read @ANI Story | https://t.co/WaEP7e0sKw pic.twitter.com/c0i1Vqj7f6
— ANI Digital (@ani_digital) September 15, 2019
खट्टर ने बताया कि इस सिलसिले में उन्होंने राज्य मानवाधिकार आयोग के पूर्व चेयरमैन और रिटायर्ड जस्टिस एचएस भल्ला और नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा से बात की है.
Haryana Chief Minister Manohar Lal Khattar in Panchkula: We will implement National Register of Citizens (NRC) in Haryana as well. pic.twitter.com/3CP0EUHyxh
— ANI (@ANI) September 15, 2019
उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश भल्ला से मिलने के बाद खट्टर ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘मैं महासंपर्क अभियान के तहत उनसे मिला. इस अभियान के तहत हम महत्वपूर्ण नागरिकों से मुलाकात करते हैं.’ मुख्यमंत्री ने कहा, ‘वह एनआरसी पर भी काम कर रहे हैं और शीघ्र ही असम जायेंगे. मैंने कहा कि हम हरियाणा में एनआरसी लागू करेंगे और हमने भल्लाजी का समर्थन और उनके सुझाव मांगे.’
ऐसे में प्रवासी मजदूर और राज्य के अल्पसंख्यक समुदायों में आतंक का माहौल है.
इस मसले पर कांग्रेस नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा- “जो मुख्यमंत्री ने कहा वह कानून है, विदेशियों को जाना होगा. यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वे उसकी पहचान करे.”
Congress leader Bhupinder Singh Hooda on Haryana CM ML Khattar's remark "We will implement NRC in Haryana": What the Chief Minister has said is the law, foreigners have to leave, it is the responsibility of the government to identify them. pic.twitter.com/fknBOqPl2Q
— ANI (@ANI) September 15, 2019
इस मुद्दे पर हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने कहा है कि चुनावों को देखते हुए खट्टर ऐसी बातें कर रहे हैं. दरअसल इस नाटकीय घटनाक्रम के बाद कुमारी शैलजा को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है.
एनआरसी कानून के पीछे असम आन्दोलन और कांग्रेस की बड़ी भूमिका रही है.
1985 में केंद्र सरकार, असम सरकार, आसू और ऑल असम गण संग्राम परिषद (AAGSP) के बीच असम अकॉर्ड हुआ. असम समझौते और फिर नागरिकता अधिनियम में संशोधन के बाद विदेशियों को तीन कैटिगरी में बांटा गया.
1- वे जो 1/1/1966 से पहले असम आए.
2- वे जो 1/1/1966 से 24/3/1971 के बीच में असम आए.
3- वे जो 25/3/1971 के बाद असम में आए.
पहली कैटिगरी को पूर्ण नागरिक के तौर पर समझा गया. दूसरी कैटिगरी को 10 सालों तक वोटिंग अधिकार से बाहर रखा गया और तीसरी कैटिगरी वालों को देश छोड़कर जाना होगा. केंद्र में तब कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे.
15 अगस्त 1985 को केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना गया.
असम समझौते के नाम से बने दस्तावेज पर भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं ने हस्ताक्षर किए. इसमें ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन की ओर से उसके अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत, महासचिव भृगु कुमार फूकन और ऑल असम गण संग्राम परिषद के महासचिव बिराज शर्मा शामिल हुए.
साथ ही भारत और असम के प्रतिनिधियों ने शिरकत की. प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी इस दौरान मौजूद रहे. 15 अगस्त 1985 को लाल किले के प्राचीर से राजीव गांधी ने अपने भाषण में असम समझौते की घोषणा की. इसके तहत 1951 से 1961 के बीच आये सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट देने का अधिकार देने का फैसला किया गया. तय किया कि जो लोग 1971 के बाद असम में आये थे, उन्हें वापस भेज दिया जाएगा.
1961 से 1971 के बीच आने वाले लोगों को वोट का अधिकार नहीं दिया गया, लेकिन उन्हें नागरिकता के अन्य सभी अधिकार दिए गए. असम के आर्थिक विकास के लिए पैकेज की भी घोषणा की गई.
1985 में असम में राजीव गांधी के साथ जो समझौता लागू हुआ था, उसकी समीक्षा का काम 1999 में केंद्र की तत्कालीन भाजपा सरकार ने शुरू किया. नवंबर 1999 को केंद्र सरकार ने तय किया कि असम समझौते के तहत एनआरसी को अपडेट करना चाहिए. इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से 20 लाख रुपये का फंड रखा गया और पांच लाख रुपये जारी भी कर दिए गए. किन्तु मामला दब कर रह गया.
इसके बाद 5 मई 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फैसला लिया कि एनआरसी को अपडेट किया जाना चाहिए. और इसकी प्रक्रिया शुरू हुई. गोगोई सरकार ने असम के बारपेटा और चायगांव जैसे कुछ जिलों में पायलट परियोजना के रूप में एनआरसी अपडेट शुरू कर दिया था, लेकिन राज्य के कुछ हिस्सों में हिंसा के बाद यह रोक दिया गया. बाद में असम पब्लिक वर्क नाम के एनजीओ सहित कई अन्य संगठनों ने 2013 में इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की.
2013 से 2017 तक के चार साल के दौरान असम के नागरिकों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में कुल 40 सुनवाइयां हुईं, जिसके बाद नवंबर 2017 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 31 दिसंबर 2017 तक वो एनआरसी को अपडेट कर देंगे. उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचारों के दौरान भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार और राष्ट्रीय अध्यक्ष ने साफ कहा कि असम से बंगलादेशी घुसपैठियों को जाना होगा.
असम में नागरिक रेजिस्टर से बाहर हुए लोगों के लिए युद्ध स्तर पर बड़े-बड़े हिरासत गृह बनाये जा रहे हैं. केंद्र की मोदी सरकार ने सभी राज्य सरकारों से अवैध विदेशी नागरिकों के लिए कम से कम एक हिरासत गृह बनाने का निर्देश दिया था. जिस पर महाराष्ट्र की भाजपा सरकार लग गई है.
NRC: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में बनाए जा रहे हैं यातना गृह
गौरतलब है कि पीपुल्स ट्रिब्यूनल ने हाल ही में एक लोक पंचायत की सुनवाई बैठक के बाद टिप्पणी करते हुए कहा था कि एनआरसी ने असम में नागरिक संकट पैदा कर दिया है. उससे पूर्व संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त भी असम में नागरिकता विहीन हुए लोगों के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी.
ऐसे में बीजेपी मुख्यमंत्री द्वारा हरियाणा में एनआरसी लागू करने की घोषणा के क्या मायने हैं?