आज के अख़बारों में कल मतदान से संबंधित ख़बरों की गंभीरता नहीं मिली
सरकार ने छोटी बचत पर ब्याजदर 46 साल में सबसे कम कर दिया तो यह खबर लीड नहीं थी। मैं जो पांच अखबार देखता हूं, उन सबमें यह सेकेंड लीड थी। भविष्य निधि खाते में ब्याज दर 1974 के बाद पहली बार 7 प्रतिशत से कम 6.4 प्रतिशत कर दी गई थी। कल मैंने लिखा था, “आज की इस खबर और इसे वापस लिए जाने के बाद कल की एक खबर मालूम है। देखता हूं, बेवकूफ बनाए जाने के इस मामले में अखबारों की कल की प्रतिक्रिया क्या होती है। इसे पहले पन्ने पर छापते हैं या नहीं और छापते हैं तो कैसे। ऐसी घटनाओं से लगता है कि सरकार अखबारों को गंभीरता से तो नहीं ही लेती है, वे खुद भी अपनी गंभीरता को लेकर लापरवाह हैं।”
आज ‘द हिन्दू’ और ‘इंडियन एक्सप्रेसमें यह खबर लीड है। टाइम्स ऑफ इंडिया में आज विज्ञापन के कारण पहले पन्ने से पहले कई पन्ने हैं लेकिन “गलती से” ब्याज दर कम हो जाने की खबर असल में जो खबरों का पहला पन्ना है उसपर सेकेंड लीड है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर है लेकिन नीचे। इस लिहाज से द हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस ने सरकार और पाठकों को बताया है कि सरकार की गलती मूल खबर से बड़ी खबर होती है। द टेलीग्राफ में यह खबर आज भी सेकेंड लीड है। फ्लैग शीर्षक है, “ब्याज दर कम करने पर यूटर्न” जबकि मुख्य शीर्षक है, “मतदाताओं के साथ वे अप्रैल फूल जैसा व्यवहार करते हैं”। यह अलग बात है कि ब्याज दर कम करने और फिर वापस लेने का लाभ सरकारी और पार्टी को टेलीविजन की खबरों से मिल गया होगा।
इंडियन एक्सप्रेस में कल, “ब्याज दर में भारी कमी …. ” शीर्षक खबर चार कॉलम में छपी थी। आज भूलसुधार की खबर तीन कॉलम में है। फ्लैग शीर्षक है, “दर कम किए जाने के एक दिन बाद (उपशीर्षक), “रातों रात ‘गलती’: केंद्र ने छोटी बचत की दरों में भारी कटौती को वापस लिया” (मुख्य शीर्षक) है। उपशीर्षक है, ब्याजदर फिर से तय करने की प्रक्रिया फरवरी 2016 में वित्त मंत्रालय के बजट डिविजन द्वारा शुरू की गई थी। इसके साथ अखबार ने बताया है, “रातोंरात किए गए बदलाव से पता चलता है कि राजनीतिक कारणों से सरकार सुधार (के उपायों) को टालने के लिए तैयार है।” इससे यह भी पता चलता है कि प्रशासनिक निर्णय लेने में नौकरशाही जोखिमों से मुक्त हो गई है। अखबार ने इस लीड के साथ सिंगल कॉलम के एक शीर्षक से बताया है कि कैसे पुराने आदेश से बंगाल सबसे ज्यादा प्रभावित होता। इसलिए इसे वापस लिया गया। पर टेलीविजिन चैनलों ने सेवा नहीं की होती तो सरकार के लिए बचना मुश्किल था।
आज के अखबारों के लिए कल हुए मतदान की खबर भी प्रमुख है। जब सरकार इतनी बड़ी गलती और फिर उसे सुधारने का फैसला मतदान के मौके पर जानबूझकर या गलती से करे तो मतदान को वह कितना महत्व दे रही है यह समझा जा सकता है। इस लिहाज से कल का मतदान बहुत महत्वपूर्ण था। अजीत अंजुम ने कल नंदीग्राम से दिखाया था कि लोग यह आरोप लगा रहे थे कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने तृणमूल के लोगों को भगा दिया और उन्हें वोट डालने नहीं दे रहे थे। शिकायत के बाद ममता बनर्जी संबंधित मतदान केंद्र पर पहुंच गई थीं और डेढ़ घंटे से वहां थीं। वहीं उन्होंने व्हीलचेयर पर शिकायती चिट्ठी लिखी आदि। आरोप और भी थे। इस लिहाज से यह बड़ी खबर है पर अखबारों में वैसे नहीं छपी है जैसा वर्णन अजीत ने अपने वीडियो में किया है। टेलीविजन का मुझे पता नहीं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में कल पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड थी, “बंगाल के लिए कड़वी लड़ाई में आज ममता बनाम पूर्व सहयोगी का मुकाबला है।” आज विज्ञापन के कारण टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने से पीछे के पन्ने पर बिना किसी विज्ञापन के भरपूर चुनावी खबरें हैं और इस पन्ने का नाम है, ‘डांस ऑफ डेमोक्रेसी’ यानी लोकतंत्र का नृत्य। इस पन्ने पर आठ कॉलम का शीर्षक है, “नंदीग्राम में कुछ चीजें नहीं बदलती हैं”। इसके साथ कई खबरें हैं। आप इससे दूसरी खबरों का मिलान कर सकते हैं। मैं सिर्फ पहले पन्ने की खबरों की चर्चा करूंगा। इस लिहाज से आज टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड है, “ग्रामीण बूथ में हंगामा क्योंकि दीदी चीखीं, कार्यकर्ताओं ने सामना किया। कहने की जरूरत नहीं है कि इस शीर्षक से लगता है कि मतदान में गड़बड़ी का आरोप दीदी यानी ममता बनर्जी ने लगाया। सच्चाई यह है कि कार्यकर्ता अपने नेता से शिकायत करते हैं तब नेता मीडिया या चुनाव आयोग को शिकायत करता है। कल अजीत की खबर यही थी। पर यह शीर्षक कुछ और बयान कर रहा है। हो सकता है यह किसी और ग्रामीण बूथ की बात हो या किसी और समय की बात हो।
अखबार ने इसके साथ एक अलग खबर छापी है, दीदी को जय श्रीराम से समस्या है, नंदीग्राम हार रही हैं, प्रधानमंत्री ने कहा। चुनाव आयोग ने कोशिश की है कि ऐसी खबरें न छपें पर संबंधित आदेश इतना लचर है कि ऐसे दावे करने की गुंजाइश रह जाती है। तथ्य यह है कि 2016 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार शुभेन्दु अधिकारी को तृणमूल के टिकट पर 1,34,623 वोट मिले थे। भाजपा उम्मीदवार को 10,713 वोट पर संतोष करना पड़ा था। पूरे राज्य में तृणमूल कांग्रेस को 43 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि नंदीग्राम में 63 प्रतिशत। यह पूरे राज्य के हिसाब से है फिर भी 20 प्रतिशत वोट अधिकारी के मान लिए जाएं तो अधिकतम 40,000 उनके अपने वोट हुए और भाजपा के 11 हजार। इस हिसाब से ममता को 80,000 से ज्यादा वोट मिलेंगे और अंतर 30,000 से ज्यादा वोटों का रहेगा। इससे अलग किसी भी दावे के लिए संतोषजनक आधार होना चाहिए। लेकिन प्रधानमंत्री अगर दागियों-बागियों को चुनाव लड़ाएं, ऐसे दावे करें और प्रचारकों का साथ हो तो क्या कहने। वही हो रहा है।
हिन्दुस्तान टाइम्स में पश्चिम बंगाल में मतदान की खबर का शीर्षक है, “भारी मतदान, महत्वपूर्ण दूसरे चरण में ड्रामा।” इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, “नंदीग्राम उबल गया: ममता ने कहा गड़बड़, भाजपा प्रतिद्वंद्वी ने कहा, हार रही हैं, चुनाव आयोग ने रिपोर्ट मांगी।” द टेलीग्राफ की खबर का शीर्षक है, “ममता दो घंटे तक बूथ पर फंसी रहीं। कल सोशल मीडिया पर खबर थी कि असम में भाजपा के एक उम्मीदवार की गाड़ी में ईवीएम मिले। यह खबर आज पहले पन्ने पर नहीं है। कल्पना कीजिए, बंगाल में या नन्दीग्राम में मिला होता, खास कर ममता बनर्जी की गाड़ी में तो क्या और कैसी खबर होती। चुनाव आयोग के लिए तो हरेक उम्मीदवार बराबर हैं पर अंतर दिखता है।
अब आज की वैसी खबरें जो एक अखबार में तो प्रमुखता से हैं पर दूसरे में नहीं हैं या नहीं दिखीं। आपके अखबार में है क्या?
- महाराष्ट्र में कोविड-19 के मामले रिकार्ड तेजी से बढ़कर 43183 हुए (हिन्दुस्तान टाइम्स)
- माओवादी साजिश के सवाल पर एनआईए ने आंध्रप्रदेश, तेलंगाना में 31 स्थानों पर एक्टिवस्ट, वकीलों के घरों की तलाशी ली (इंडियन एक्सप्रेस)
- कोविड वायरस ज्यादा संक्रामक, कम घातक होता लगता है, इसके साथ एक और खबर है, अध्ययन के अनुसार 15-20 अप्रैल के बीच दूसरा दौर शिखर पर हो सकता है। (टाइम्स ऑफ इंडिया)
- रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के अवार्ड (द हिन्दू)
- किसानों ने हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को हिसार हवाई अड्डे पर रोका
- ईसीआई ने कहा, ए.राजा 2 दिनों तक चुनाव प्रचार नहीं कर सकेंगे।
- राजधानी में कोविड-19 के 2790 नए मामले मिले।
इन खबरों से लगता है कि कोविड के मामलों को प्रमुखता नहीं मिल रही है। ना ही टीके से संबंधित खबरों पर उठने वाले सवालों का कोई जवाब है। कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं – यह बड़ी खबर है लेकिन पहले पन्ने पर नहीं है। इसी तरह, अप्रैल में दूसरे दौर का शिखर होगा और फिर मामले कम होंगे– अच्छी खबर है लेकिन उसे भी आज प्रमुखता नहीं मिली है। इसी तरह, कोविशील्ड की खुराक के बीच अंतराल बढ़ाया गया तो खबर खूब छपी पर उसकी शेल्फ लाइफ बढ़ा दी गई तो खबर को प्रमुखता कम मिली। कोरोना के मामले गैर भाजपा शासित राज्यों में ही क्यों बढ़ रहे हैं, चुनाव वाले राज्यों में लोगों के मिलने-जुलने पर रोक नहीं होने के बावजूद वहां क्यों नहीं बढ़ते जबकि मंत्री भी रोड शो में मास्क नहीं लगाते हैं। जब पिछले साल इन्हीं स्थितियों में लॉक डाउन कर दिया गया था तो इस बार कुम्भ का आयोजन कितना जरूरी है, आदि मामले मेरे अखबारों के पहले पन्नों से गायब से हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।