NCBC की जनसुनवाई: ओबीसी आरक्षण न देने पर फटकारे गये डीयू कुलपति, यूजीसी!

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दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में ओबीसी आरक्षण के नियम के उल्लंघन को लेकर आज दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो.पी.सी.जोशी को उनके ही दफ्तर में ही डाँट पड़ी। कुलपति के दफ़्तर में आज राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने विभिन्न शिकायतों को लेकर जनसुनवायी आयोजित की थी। इस मौक़े पर आयोग के अध्यक्ष भगवान लाल सैनी ने कुलपति के साथ-साथ यूजीसी के प्रतिनिधियों के रवैये के प्रति असंतोष जताया।

दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछड़े वर्ग के छात्रों के एडमिशन, आवास, फैकल्टी चयन, छात्रवृत्ति वितरण आदि मसलों पर संविधान द्वारा निर्धारित सहूलियतें एवं आरक्षण का नियम ठीक ढंग  से लागू न होने को लेकर आयोग को तमाम शिकायतें मिली थीं जिसे लेकर यह पब्लिक हियरिंग आयोजित की गयी थी।

जनसुनवाई में छात्रसंगठन आइसा के सक्रिय सदस्य एवं बुद्धिस्ट स्टडीज डिपार्टमेंट के शोधार्थी जगन्नाथ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकारियों से पूछा कि संविधान द्वारा 2007 में ओबीसी आरक्षण लागू करने के आदेश के बाद भी, 13 सालों में दिल्ली विश्वविद्यालय के सिर्फ दो छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण लागू हो सका, इसके क्या कारण हैं? इस पर डीयू ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। कारण यह बताया कि सिर्फ नये बने छात्रावासों में ही आरक्षण को लागू कर सकते है। इस उत्तर पर आयोग ने अपना रुख सख्त करते हुए उहें यह निर्देश दिया कि “आप अपना यह जवाब हमें लिखित रूप में दें कि हम संविधान द्वारा निर्देशित आरक्षण को अपने छात्रावासों में लागू करने की मंशा नहीं रखते,और इसे ही उनका अंतिम जवाब समझा जाए।”

ज़ाहिर है, डीयू अपने इस संविधान विरोधी रवैये पर बैक फुट पर दिखा और उसने ओबीसी आरक्षण को लागू करने की संभावनाओं को तलाश करने का भरोसा दिया। जगन्नाथ ने छात्रावासों में वर्तमान एडमिशन प्रक्रिया की एक प्रमुख विसंगति की ओर भी सबका ध्यान आकृष्ट किया जिसका खामियाजा आरक्षित वर्गों के छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। विभागों द्वारा जारी की गयी विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों की लिस्ट का प्रारूप इस तरह रहता है कि पहले आनारक्षित वर्ग के छात्रों का जिक्र रहता हैं। उसके बाद OBC, SC,एवं ST वर्ग के विद्यार्थियों का नाम आता हैं। चूँकि हॉस्टल की संख्या कम है और हर विभाग से एक-दो बच्चों का ही चयन होता है, ऐसे में आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों का नाम नीचे रहने की वजह से वे छात्रावास में प्रवेश से वंचित रह जाते हैं।

गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष व जेएनयू  की शोधार्थी आरती ने NCWEB तथा गेस्ट टीचर के अपॉइंटमेंट में आरक्षण लागू न किए जाने तथा उसके लिए किसी भी जवाबदेही के न होने पर डीयू के अधिकारियों से प्रश्न पूछा। इसके बाद स्कालरशिप सेल से अभी तक अन्य पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को प्रदान की गई छात्रवृतियों के आंकड़ों पर सवाल किए गये। उन छात्रवृतियों को प्रदान किए जाने की अर्हताओं, उसकी प्रक्रिया के पारदर्शी न होने पर सवाल उठाए गये। यह देखना आश्चर्य से भरा था कि स्कालरशिप सेल के अधिकारियों के पास इस सन्दर्भ में कोई तथ्यात्मक डेटा नहीं था।

शोधार्थियों द्वारा डीयू के विभिन्न कॉलेजों में इंटरव्यू के लिए प्रस्तुत होने पर उनके साथ हो रहे जातिवादी व्यवहारों तथा उन्हें सिर्फ रिज़र्व केटेगेरी में ही फाइट करने की शर्तों को लेकर भी शिकायतें की गईं, जिनको लेकर आयोग ने क्रमशः विवि से जवाब तलब किया। विवि एवं यूजीसी से जब यह प्रश्न पूछा गया कि 2007 से लेकर आज तक उसने पिछड़े वर्ग के उत्थान और विकास के लिए किन-किन कदमों को उठाया है, तथा अभी तक रिलीज़ किये गये फंड के ख़र्च का ब्योरा क्या है तो यूजीसी के पास न तो कोई ठीक-ठीक जवाब था और न ही कोई आंकड़ा। जब यह पता चला कि यूजीसी द्वारा दिए गए फंड को अभी तक खर्च भी नहीं किया गया और न ही उस बकाया फंड को विश्वविद्यालय से वापस माँगा गया, आयोग ने यूजीसी के ग़ैरज़िम्मेद रवैये पर कड़ी फटकार लगायी।

डीयू द्वारा इस वर्ष एडमिशन लेते वक़्त पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों से ओबीसी सर्टिफिकेट अनिवार्य रूप से जमा करने की शर्त लगायी गयी थी।  कोविड महामारी की वजह से विद्यार्थियों को इसमें तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इस विषय को भी आयोग के सामने रखा गया। डीयू ने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि एडमिशन के दौरान इस प्रमाण पत्र को अनिवार्य रूप से नहीं मांगा लेकिन छात्रसंघ के प्रतिनिधियों ने विस्तृत ब्यौरा देकर विवि के इस तर्क का जवाब दिया। इसके साथ ही, प्रमाण-पत्र से जुड़े अन्य मुद्दों, जैसे अलग-अलग विभागों एवं कॉलेजों में उसकी मान्य तिथि को लेकर अलग-अलग मतों के चलते विद्यार्थियों को आने वाली समस्याओं पर भी बातचीत की गई।

डीयू के ही हिंदी विभाग की शोधार्थी एकता वर्मा ने लॉ फैकल्टी में गत दो वर्षों से हो रहे एडमिशन तथा इस एडमिशन में आरक्षण के नियमों का पालन न किए जाने का मुद्दा भी उठाया। इसके अंतर्गत विद्यार्थियों को अपनी-अपनी रिज़र्व श्रेणी में ही फाइट करने तथा अपनी-अपनी रिज़र्व श्रेणी को छोड़कर अनारक्षित श्रेणी में जगह न दिए जाने के संविधान विरोधी कार्य से भी आयोग को सूचित कराया। इस पर पुनः डीयू के वीसी के पास कोई उत्तर नहीं था। डीयू के इस रवैये को देखते हुए आयोग ने उन्हें फटकार लगाई कि यदि उनके पास किसी भी चीज़ के आंकडें मौजूद नहीं है, किसी भी चीज़ का रिकॉर्ड मौजूद नहीं है, तो इस प्रकार के पब्लिक हियरिंग का अर्थ कुछ नहीं है।

इस पब्लिक हियरिंग में पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के अलावा सदस्य सुधा यादव और अन्य प्रतिनिधि मौजूद थे। विश्वविद्यालय की ओर से  कुलपति और कुलसचिव सहित अन्य पदाधिकारी तथा यूजीसी के कुछ प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

 

 


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