दिल्ली से प्रशासन की ओर से प्रवासी कामगारों के प्रति उदासीनता का ये एक ताज़ा उदाहरण है। दिल्ली के गोकुलपुरी इलाके में एक स्कूल में गुरुवार सुबह से ही सैकड़ों प्रवासियों को ट्रेन से पटना भेजने के नाम पर रोक कर रखा गया है। इनमें से कई प्रवासी कामगार बिहार जाने के लिए निकल पड़ थे, जिनको मुस्तफाबाद में स्थानीय निवासियों ने भोजन और शेल्टर देकर रोक लिया था। इसके अलावा कई और प्रवासी हैं, जो अपने घर लौटना चाहते थे। श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलने के बाद, इन्होंने बिहार वापस लौटने के लिए आवेदन दिया, जिसकी पुष्टि और अनुमति के बाद, इनको गोकुलपुरी के इस स्कूल में इकट्ठा होने को कहा गया। जहां ये गुरुवार की सुबह से रुके हैं और इनको अभी तक ये नहीं पता है कि इनको रेल में कब सवार कराया जाएगा।
इन सभी को गुरुवार की सुबह 7 बजे ही यहां इकट्ठा होने का आदेश दिया गया था। लेकिन यहां इकट्ठा होने के बाद दोपहर 1 बजे के आसपास इनकी स्क्रीनिंग हुई। इनसे वादा किया गया था कि इनको गुरुवार को ही किसी समय, पटना के लिए रवाना कर दिया जाएगा। लेकिन रात होने तक भी इनके पास कोई जानकारी नहीं थी कि आखिर इनको रेल कब मिलेगी। ये सभी लोग, अपने परिवार के साथ इस सरकारी स्कूल में हैं और ख़बर लिखे जाने तक सुबह से इनको भोजन भी नहीं दिया गया था। इनमें से कई बच्चे भी हैं, जिनके लिए किसी तरह परिवारों ने ख़ुद बिस्किट वगैरह का इंतज़ाम किया।
हमसे शाम 7.30 पर बात करते हुए, यहीं पर गुरुवार सुबह से रुके हुए एक प्रवासी रहमान (बदला हुआ नाम) ने बताया, “हम लोग सुबह 7 बजे से स्कूल में ही हैं, हमको अभी तक गाड़ी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है। प्रशासन अब कह रहा है कि देखो कि रात भर में शायद गाड़ी मिल जाए…पटना जाने वालों को गाड़ी नहीं दी गई है।” हमको उन्होंने ये भी बताया कि वे दिल्ली के ही एक इलाके से आकर, ट्रेन का आवेदन कन्फर्म होने की प्रतीक्षा में दो दिन से खजूरी खास में रुके हुए थे। इसके पहले उनको इसलिए वापस लौटा दिया गया था क्योंकि उनके मोबाइल नंबर पर पुष्टि का मैसेज नहीं आया था। लेकिन बुधवार जब उनके पास पुष्टि का संदेश आ गया तो गुरुवार उनको सुबह 7 बजे आने के लिए कहा गया। लेकिन अब वे सुबह से यहां पर सैकड़ों और लोगों के साथ इस इंतज़ार में हैं कि उनको ट्रेन के बारे में जानकारी दी जाए।
आप इस वीडियो में ही देख सकते हैं कि किस तरह इन सैकड़ों लोगों को मजबूर कर दिया गया है, इस स्कूल में रहने को। यहां पर न तो सरकार के लोग दिखाई दे रहे हैं, न ही इतनी कम जगह में किसी तरह की सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा सकता है। मजबूरन एक कमरे में 10 से लेकर 25 तक लोग रुके हुए हैं। साथ ही, इनको सुबह से भोजन देने का भी कोई प्रबंध नहीं है। रहमान ने हमारे इस बाबत सवाल पर कहा, “सुबह से कोई भोजन का इंतज़ाम नहीं हुआ है। कहा है कि रात को खाना देंगे..बच्चे भूखे थे तो हमको मजबूरी में उनको बिस्किट वगैरह लाकर खिलाना पड़ा..” हमने जब ये पूछा कि अब आप क्या करने के बारे में सोच रहे हैं, तो उनका जवाब था, “सुबह से यहीं बैठे हैं, इतने सारे लोग हैं और ट्रेन की कोई जानकारी नहीं है..सुबह तक जाने की व्यवस्था नहीं हुई तो दिल्ली में ही अपने ठिकाने की ओर लौटना पड़ेगा..”
सरकारी उदासीनता की स्थिति आप इसी से समझ सकते हैं कि क्या अगर ये लोग गरीब नहीं होते – तो इनको सरकार इस तरह से सुबह से भूखा रख सकती थी? यही नहीं, इनको साफ-साफ कुछ भी बताया नहीं जा रहा है। दिल्ली से पटना जाने में 12 से 14 घंटे लगते हैं और 14 घंटे से ये प्रवासी दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में फंसे हैं, जहां इनको ये भी नहीं बताया जा रहा है कि आखिर इनको कब इनके घर जाने के लिए रेल मिलेगी।
ज़ाहिर है कि सवाल ये भी है कि क्या यही बर्ताव हमारी सरकारें, संपन्न-अभिजात्य वर्ग के साथ कर सकती थी? ये प्रवासी अगर सुबह 7 बजे से आकर इस जगह रुके हैं और देश भर में लॉकडाउन है तो इनको 12 घंटे से अधिक एक जगह रोक कर रखने वाली सरकार और प्रशासन क्या इनको भोजन देने के लिए भी ज़िम्मेदार नहीं हैं? और सबसे बढ़कर, तबलीगी जमात पर सारा ज़िम्मा डाल देने वाले सरकार और प्रशासन, अपना इंतज़ाम देखें कि क्या वहां सोशल डिस्टेंसिंग है, जहां 300 लोगों को रोक कर रखा गया है?
(ये ख़बर इन प्रवासियों से बातचीत के आधार पर मयंक सक्सेना ने लिखी है।)
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