मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘’ग्लोबल टेरररिस्ट’’ का दरजा दिए जाने के मामले में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली भारत की निवर्तमान केंद्र सरकार भले आम चुनावों के दौरान मनमाफिक तथ्य प्रचारित कर के कूटनीतिक श्रेय लेना चाहती हो, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वेबसाइट पर उसे यह दरजा दिए जाने के पीछे जो कारण गिनाए गए हैं वह जानना ज़रूरी है।
सुरक्षा परिषद की वेबसाइट पर मोहम्मद मसूद अज़हर अल्वी नाम का जो पेज है, उस पर जो लिखा है उसका हिंदी में तर्जुमा नीचे प्रस्तुत है:
संकल्प संख्या 1822 (2008) के पैरा 13 और उसके बाद के संकल्पों के तदनुसार आइएसआइएल (दाएश) और अल-कायदा प्रतिबंध सूची में शामिल किए गए व्यक्तियों, समूहों, निकायों और इकाइयों के पीछे आइएसआइएल (दाएश) और अल-कायदा प्रतिबंध कमेटी द्वारा प्रस्तुत सार-संक्षिप्त कारण निम्न हैं।
मोहम्मद मसूद अज़हर अल्वी
कमेटी की वेबसाइट पर जिस तारीख को सार-सक्षिप्त कारण उपलब्ध कराए गए: 1 मई 2019
सूचीबद्धता का कारण:
मोहम्मद मसूद अज़हर अल्वी को 1 मई 2019 को अल-कायदा से सम्बद्धता के चलते संकल्प 2368 (2017) के पैरा 2 और 4 के अंतर्गत जैश-ए-मोहम्मद ‘’की, उससे मिलकर की गई, उसके नाम पर की गई, उसके समर्थन में की गई या उसके बिनाह पर की गई गतिविधियों व कृत्यों हेतु वित्तपोषण, नियोजन, सहजकारिता, तैयारी या प्रसार में हिस्सेदारी’’, ‘’को हथियार और संबंधित सामग्री की आपूर्ति करने या मुहैया कराने’’, ‘’के लिए भर्ती करने’’, ‘’की गतिविधियों या कृत्यों को अन्यथा सहयोग देने’’, और ‘’से सम्बद्धता का संकेत देने वाले अन्य कृत्यों या गतिविधियों’’ हेतु सूचीबद्ध किया गया है।
अतिरिक्त सूचना:
मोहम्मद मसूद अज़हर अल्वी ने भारत की जेल से 1999 में रिहाई के बाद जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) की स्थाना की। अफगानिस्तान के कांधार में हाइजैक की गई इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट में बंधक बनाए गए 155 लोगों को छुड़ाने के बदले में अज़हर को जेल से छोड़ा गया था। स्थाना के बाद से अज़हर ने जेईएम को वित्तीय मदद भी दी है।
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने 17 अक्टूबर, 2001 को जेईएम को अल-कायदा, उसामा बिन लादेन व तालिबान ‘’की, उनसे मिलकर की गई, उनके नाम पर की गई, उनके समर्थन में की गई या उनके बिनाह पर की गई गतिविधियों व कृत्यों हेतु वित्तपोषण, नियोजन, सहजकारिता, तैयारी या प्रसार में हिस्सेदारी’’, ‘’को हथियार और संबंधित सामग्री की आपूर्ति करने या मुहैया कराने’’, और ‘’उनके कृत्यों या गतिविधियों को अन्यथा सहयोग देने’’ के नाते अल-कायदा, उसामा बिन लादेन व तालिबान के संग सम्बद्धता के कारण सूचीबद्ध किया था।
अज़हर आतंकवादी समूह हरकत-उल-मुजाहिदीन/एचयूएम उर्फ हरकत उल-अंसार का भी नेता रहा है और इन समूहों के ज्यादातर सदस्य बाद में अज़हर के नेत़ृत्व में जेईएम में आ गए। 2008 में जेईएम के भर्ती के पोस्टरों में अज़हर की अपील शामिल थी कि पश्चिमी बलों के खिलाफ अफगानिस्तान में जंग में स्वेच्छा से हिस्सा लें।
सूचीबद्ध संबंधित समूह और इकाइयां:
जैश-ए-मोहम्मद, 17 अक्टूबर 2001 को सूचीबद्ध
हरकत उल-मुजाहिदीन / एचयूएम, 6 अक्टूबर 2001 को सूचीबद्ध
वेबसाइट पर कुल इतनी ही सूचना दर्ज है। इससे दो बातें साफ होती हैं। पहली, 1999 में भारत की तत्कालीन भाजपानीत एनडीए सरकार द्वारा मसूद अज़हर को जेल से छोड़े जाने के बाद 2001 में उसके संगठन जैश-ए-मोहम्मद को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आतंकी संगठनों की सूची में डाला। यानी यह प्रक्रिया तभी शुरू हो चुकी थी।
दूसरी, अज़हर को वैश्विक आतंकवादी का दरजा दिए जाने का कारण स्पष्टत: अल-कायदा, तालिबान व उसामा बिन लादेन के साथ उसका जुड़ाव है।
इसके अलावा यह जानना ज़रूरी है कि अज़हर को ग्लोबल टेरररिस्ट का दरजा देने का पहला प्रस्ताव भारत की ओर से कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने 2009 में रखा था जो चीन के कारण गिर गया था। 2014 में आई एनडीए सरकार द्वारा रखे गए अगले दो प्रस्ताव भी चीन के रोड़ा अटकाने के चलते गिर गए। चौथा प्रस्ताव कल पारित हुआ जब चीन ने कोई अड़ंगा नहीं लगाया।
इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार पत्रकार प्रकाश के रे का यह ताज़ा स्टेटस बहुत चीज़ें साफ करता है:
कुल मिलाकर यह समझ में आता है कि मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी का दरजा दिए जाने के पीछे दस साल की एक लंबी प्रक्रिया है जिसे यूपीए ने शुरू किया और एनडीए ने जारी रखा। साथ ही सबसे अहम वे भूराजनीतिक परिस्थितियां हैं- चीन के साथ पश्चिम के व्यापार जिसमें अहम भूमिका निभाता है- जिन्होंने यह काम मुमकिन किया है।
जहां तक श्रेय लेने की बात है तो उसके लिए सभी स्वतंत्र हैं। उस पर किसी का कोई वश नहीं।