मद्रास के उच्च न्यायालय ने केंद्रीय भूमि अधिग्रहण कानून में तमिलनाडु की सरकार द्वारा किए गए संशोधन को ‘’अवैध’’ करार दिया है और राज्य के तीन कानूनों को उसके दायरे से मुक्त कर दिया है।
इस फैसले का प्रभावी अर्थ यह होगा कि राज्य सरकार द्वारा तीनों कानूनों के तहत 27 सितंबर 2013 को और उसके बाद अधिग्रहित की गई सारी ज़मीन पर सरकार का कब्ज़ा ‘’अवैध’’ है।
Madras HC quashes all TN Government land acquisitions since Sept 2013 under three old State laws
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जस्टिस मणिकुमार और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने भूमि अधिग्रहण कानून में किए सरकारी संशोधन को दरकिनार करते हुए यह माना कि सितंबर 2013 से पहले अधिग्रहित की गई ज़मीनों को इस फैसले के बाद नहीं छेड़ा जाएगा।
राज्य सरकार के वे तीन कानून जो संशोधन के चलते ज़मीन अधिग्रहण को प्रभावित कर रहे थे, वे हैं हरिजन कल्याण योजना के लिए तमिलनाडु भूमि अधिग्रहण कानून 1978, औद्योगिक उद्देश्यों के लिए तमिलनाडु भूमि अधिग्रहण कानून 1997 और तमिलनाडु राजमार्ग अधिनियम 2001, जिन पर अब फैसले के बाद संशोधन लागू नहीं होगा।
मामला केंद्रीय भूमि अधिग्रहण कानून 2013 का है जिसमें 105ए नाम की नई धारा डाल दी गई थी। सरकारी वकील ने दलील दी थी कि अधिग्रहित ज़मीनों पर काम चालू है और उन्हें लौटाया जाना मुमकिन नहीं है।
इस पर अदालत ने कहा, ‘’ऐसे मामलों में हम केवल इतना निर्देश देंगे कि नए भूमि अधिग्रहण कानून के मुताबिक ही मुआवजा और पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए।‘’
धारा 105ए के माध्यम से राज्य सरकार ने जो संशोधन किया था उसके खिलाफ अदालत में 100 से ज्यादा याचिकाएं लंबित थीं।