सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 13 पूर्व न्यायाधीशों समेत तीन हज़ार जानी-मानी शख्सियतों ने एक संयुक्त बयान जारी करके मशहूर वकील प्रशांत भूषण को अवमानना मामले में दोषी ठहराये जाने का विरोध किया है। बयान में 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट से अपने उस फ़ैसले पर रोक लगाने की मांग की गयी है जिसमें प्रशांत भूषण को दोषी ठहराया गया है और 20 अगस्त को सज़ा सुनायी जाएगी। प्रशांत भूषण के दो ट्वीट के आधार पर सर्वोच्च अदालत ने यह कार्रवाई की है।
ग़ौरतलब है कि प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ जस्टिस अरुण मिश्र की अगुवाई वाली पीठ के सख़्त रुख ने पूरे देश में बहस खड़़ी कर दी है। प्रशांत भूषण के पक्ष में तमाम अवकाशप्राप्त न्यायाधीश, अवकाशप्राप्त नौकरशाह और वकील खुलकर बोलने लगे हैं। भूषण के पक्ष में जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि ‘एक स्वतंत्र न्यायपालिका में जज और वकील, दोनों शामिल हैं जो संवैधानिक लोकतंत्र में कानून के शासन का आधार है। पारस्परिक सम्मान और जजों और बेंच के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध की पहचान है।” बयान में यह भी कहा गया है कि ‘दोनों के बीच में संतुलन का कोई भी झुकाव, एक तरह से या दूसरे, संस्था और राष्ट्र दोनों के लिए हानिकारक है। न्यायपालिका को किसी तरह की पूरी छूट नहीं है कि उसकी आलोचना नहीं हो सकती। इस मामले में अटॉर्नी जनरल की राय भी नहीं ली गई जो कि कानूनसंगत नहीं है।”
इस बयान पर रिटायर्ड जस्टिस रूमा पाल, रिटायर्ड जस्टिस बी.सुदर्शन रेड्डी, रिटायर्ड जस्टिस जी.एस सिंघवी, रिटायर्ड जस्टिस आफताब आलम, रिटायर्ड जस्टिस मदन बी लोकुर, रिटायर्ड जस्टिस गोपाला गौड़ा समेत 13 अवकाशप्राप्त न्यायाधीश और 166 अवकाशप्राप्त नौकरशाहों के अलावा, शिक्षाविदों, वकीलों आदि मशहूर शख्सियतों के दस्तखत हैं।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे समेत 41 वकीलों ने भी बयान पर हस्ताक्षर करते सुप्रीम कोर्ट के जजों और आम लोगों के लिए एक खुला पत्र लिखा है। हस्ताक्षर करने वालों में प्रमुख वकील राजू रामचन्द्रन, कामिनी जायसवाल, वृंदा ग्रोवर, अरविंद दातार, संजय हेगड़े, शेखर नाफडे और ललित भसीन शामिल हैं।
बयान में सुझाव दिया गया है कि कोर्ट के फैसले पर तब तक अमल नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि कोरोना महामारी के बाद शुरू होने वाली कोर्ट की नियमित सुनवाई में बड़ी बेंच इसका रिव्यू न कर ले। प्रशांत के समर्थन आए जजों और वकीलों ने अपने सुझाव में कहा, “हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते 72 घंटे में उठी सभी आवाजों को सुना होगा और न्याय को खत्म होने से रोकने के लिए सुधार करने वाले कदम उठाए जाएंगे, ताकि आम जनता में फिर से कोर्ट के लिए सम्मान और विश्वास पैदा हो सके।”