नफ़रत के सौदाग़रों को लखनऊ का जवाब: कश्मीर ही नहीं,कश्मीरी भी हमारे!


लखनऊ ने बताया कि नफ़रत फैलाने वालों के ख़िलाफ सड़क पर उतरने का समय आ गया है।


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यह फ़ेसबुक पोस्ट लखनऊ के शहरी अमित मिश्र की है। भाषा से बेचैनी साफ़ झलक रही है। कुछ भगवाधारियों ने कश्मीर से मेवा बेचने आए एक नौजवान की जैसी पिटाई की थी, उसका वीडियो देखने के बाद सिर्फ़ अमित नहीं, लखनऊ की तहज़ीब पर फ़ख्र करने वाला हर शख्स सदमे में था। आख़िरकार उन्होंने इस अँधेरे के ख़िलाफ़ मशाल जलाने का फ़ैसाल किया और 8 मार्च को, महिला दिवस के दिन धरना-प्रदर्शन हुए और कश्मीरी मेवे वालों की दुकानें लगवाकर उनसे खरीददारी की गई। जनवादी महिला समिति ने अपने सम्मेलन में बुलाकर कश्मीरी फेरीवालों को सम्मानित किया गया। उनसे सूखे मेवे खरीदे गए।

हालाँकि कुछ बदमिज़ाज़ बीजेपी नेताओं ने इसे क्रिया की प्रतिक्रिया बताया लेकिन जनता के आक्रोश को देखते हुए प्रशासन की ओर से भी 20000 की मदद भी दी गई ताकि इलाज हो सके। हैरानी की बात है कि सरकार पुलवामा की घटना के बाद कश्मीरियों पर हमले के खिलाफ कार्रवाई की बात करती रही है, लेकिन उसकी भगवा ब्रिगेड सड़क पर अपना काम कर रही है। मोदी-योगी राज में एक अदद भगवा कुर्ता किसी को भी पीटने का लाइसेंस है।

लेकिन लखनऊ की प्रतिक्रिया बताती है कि सब्र का घड़ भर चुका है। नफरत एक राजनीतिक उपकरण है, इसे लोग समझने लगे हैं। आने वाले दिनों में ऐसा समझने वालों की तादाद बढ़ेगी और प्रतिवाद तेज़ होगा।

इस मुद्दे को लेकर लखनऊ में रिहाई मंच ने भी धरना प्रदर्शन आयोजित किया। नीचे रिहाई मंच के नेता राजीव यादव द्वारा भेजी गई विज्ञप्ति है–


कश्मीरियों पर हुए हमले के खिलाफ हुआ राजधानी में धरनामनुवादी योगी सरकार के संरक्षण में वंचितों पर हमले


लखनऊ 8 मार्च 2019। लखनऊ में नागरिक समाज ने कश्मीरियों पर हुए हमले के खिलाफ अंबेडकर प्रतिमा हजरतगंज पर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने डालीगंज जाकर कश्मीरी दुकानदारों से मुलाकात भी की। प्रदर्शन के दौरान कश्मीरियों पर हमले बंद करो, कश्मीरियों पर हमला कर देश तोड़ने की साजिश बंद करो, मेहमाननवाजी की लखनवी रवायत को शर्मसार करना बंद करो, महिलाओं का उत्पीड़न बंद करो, दलितों-मुसलमानों पर हमले बंद करो के नारे लगाए। जफर रिजवी को जिन्होंने कश्मीरियों को मार रहे गुण्डों से भिड़कर लखनवी तहजीब को बचाया को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस साझे संघर्ष में हम सब साथ हैं। 

वक्ताओं ने कहा कि जिस तरह से डालीगंज पुल पर कश्मीरी दुकानदारों को मारापीटा गया और उसके बाद घटना की जिम्मेदारी लेते हुए विष्व हिंदू दल ट्रस्ट के अंबुज निगम ने थाने से उत्तेजक बयान जारी किए वो साफ करता है कि इन सांप्रदायिक तत्वों को योगी सरकार में संरक्षण मिला हुआ है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कश्मीरियों पर हमले रोकने के लिए नियुक्त नोडल अधिकारी पुलिस महानिरीक्षक कानून व्यवस्था और डीजीपी यूपी की भूमिका पर सवाल है कि उन्होंने ऐसे हमले रोकने के लिए क्यों नहीं पहले से प्रभावी कदम उठाए।

वक्ताओं ने कहा कि आज महिला दिवस पर यूपी में महिला उत्पीड़न का सवाल अहम है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का जुमले वाली सरकार में बेटियों का घर से निकलना सुरक्षित नहीं रह गया है। एक तरफ कुंभ में सूबे के मुखिया समेत पूरी कैबिनेट का जमावड़ा होता है वहीं मेडिकल की छात्रा और नाबालिग बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म जैसी घटनाओं पर योगी सरकार आपराधिक चुप्पी अख्तियार कर लेती है। पिछले दिनों एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यूपी में सर्वाधिक दलित उत्पीड़न तो वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ ने मुसलमानों पर बढ़ते हमलों के लिए जो चिंता व्यक्त की वह साफ करता है कि सरकार मुनवादी एजेंडे पर वंचित समाज के खिलाफ हमलावर है। 5 मार्च को 13 प्वाइंट रोस्टर, सवर्ण आरक्षण जैसे मुद्दों का विरोध करने वाले कानपुर देहात और बिहार के भागलपुर में मुकदमा कायम करना साफ करता है कि सरकार किसी भी विरोध के स्वर को कुचल देना चाहती है। पिछली 2 अपै्रल को भारत बंद में मुजफ्फरनगर के उपकार बावरा, विकास मेडियन और अर्जुन पर रासुका लगाकर योगी सरकार ने इंसाफ की आवाजों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित कर दिया है। 

वक्ताओं ने कहा कि मुजफ्फरनगर में बेराजगारी जैसे मुद्दे पर सवाल करने पर भाजपा के नेताओं ने अदनान नामक युवक को पीटा, मेरठ में अतिक्रमण के नाम पर पुलिस की मौजूदगी में दो सौ से अधिक घरों को आग के हवाले कर दिया गया वहीं गाजीपुर में भावरकोल थाने के सुखडेहरा गांव में दलित को पीटने के बाद दौड़ाकर गोली मार देने की घटनाएं सूबे के हालात को सामने ला देती हैं। योगी-मोदी सरकार की अराजकता का सबसे जीवंत उदाहरण उसके सांसद और विधायक की आपस में जूतम पैजार है।

धरने को सृजनयोगी आदियोग, पिछड़ा महासभा के एहसानुल हक मलिक, शिवनारायण कुशवाहा, स्वराज अभियान के राजीव ध्यानी, फैजान मुसन्ना, अनमोल सिंह, यादव सेना के शिवकुमार यादव, सचेन्द्र यादव, जमीयतुल कुरैशी उत्तर प्रदेश के शकील कुरैशी, पसमांदा मुस्लिम महाज की नाहिद अकील, खालिद, अरविंद कुमार, जैद अहमद फारुकी, अहमद हसैन, डा0 कमरुद्दीन कमर, शम्स तबरेज, कमर सीतापुरी, मुकेश गौतम, मो0 आफाक, आइसा के शिवा राजवार, हमसफर से रुबीना, जैनब, आईयूएमएल के मो0 अतीक, साझी दुनिया से अंकिता मिश्रा, ताजिम खान, राबिन वर्मा, एपीसीआर के नजमुस साकिब एडवोकेट, आसिफ अकरम खान, महेन्द्र प्रताप, नूर आलम, आल इंडिया वर्कर्स काउंसिल के ओपी सिन्हा, केके शुक्ला, वीरेन्द्र त्रिपाठी, ताबिस खान, मोहम्मद सरफराज, मो0 उमर, तन्मय श्रीवास्तव, आशीष पासवान, प्रेम कुमार बहुजन, सीटू से आरएस बाजपेई, शाहरुख अहमद, इमरान अंसारी, वीरेन्द्र गुप्ता, अजय शर्मा, प्रबुद्ध गौतम, मलिक शाहबाज, गुफरान चैधरी, मोहम्मद नासिर, मो0 कादिर, रिषभ रंजन, सतीश  तिवारी, दिनेष, जगन्नाथ यादव, आनंद कुमार, चैधरी उदय प्रताप सिंह आदि शामिल हुए।




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