झारखंड में जनांदोलनों के प्रमुख चेहरे कॉमरेड त्रिदिब घोष की याद में 19 दिसंबर को राँची में श्रद्धांजलि सभा का आोजन किया गया जिसमें विभिन्न वाम दल, जन संगठन, राज्य के विभिन्न जिलों से सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।
विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक त्रिदिब घोष वामपंथी विचारधारा से हमेशा जुड़े रहे और आंदोलनों में निर्णायक भूमिका निभाई। 15 दिसंबर को त्रिदिब घोष जी का कोरोना संक्रमण से सम्बंधित व्याधियों से देहांत हो गया. शोक सभा में सभी ने उनको आखिरी सलाम दिया।
विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन के झारखण्ड राज्य संयोजक दामोदर तुरी ने सभी का स्वागत किया। त्रिदिब जी के घर से स्वास्थ्य सम्बंधित रोक टोक की वजह से कोई शामिल नहीं हो पाया। अध्यक्ष मंडल में सामाजिक कार्यकर्ता वासवी कीड़ो, दयामनी बारला, पत्रकार रुपेश कुमार सिंह, माले नेता भुवनेश्वर केवट, पी.यू.सी.एल के अशोक झा, माकपा के प्रकाश विप्लब, मासस के सुशांतो मुखर्जी तथा कई अन्य साथी रहे। कुल आठ जिलों से साथी मौजूद रहे। सरायकेला-खरसावाँ से नजीर मुंडा, गुमला से केश्वर सिंह, रामगढ से पत्रकार रूपेश कुमार सिंह, सिमडेगा से जन जागरण वनाधिकार संघर्ष समिति के साथी, गिरिडीह से धरम गढ़ रक्षा समिति से भगवान किस्कू, धनबाद डब्लू.एस.एस. से बेबी तुरी, बोकारो से झारखण्ड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के संजय तुरी और रांची से अलोका कुजूर, ट्राइबल इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर डा. रणेंद्र, युवा साथी गरिमा और रिषित मौजूद रहे। विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन के संस्थापक अरुण ज्योति जी व माले नेता अनिल अंशुमन ने भी सभा को संबोधित किया. विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन के प्रताप चौधरी ने सभा में आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दयामनी जी ने माल्यार्पण के साथ सभा की शुरुआत की। दो मिनट के मौन के बाद सभी ने त्रिदिब दा के साथ जुड़ी स्मृति और अनुभव सामने रखे। दामोदर तुरी जी ने त्रिदिब दा के संघर्षों के बारे में लोगों को अवगत कराया। त्रिदिब जी झारखण्ड राज्य के आन्दोलन में सक्रिय रहे और नए राज्य के गठन के बाद भी राज्य के विस्थापन और दमन से जुड़े मुद्दों पर फ्रंटलाइन में रहे। एक तरीके से उन्हें झारखण्ड के हर आन्दोलन का स्तम्भ माना जा सकता है। 2007 में राजनीतिक बंदियों की रिहाई की माँँग से सम्बंधित एक रैली के बाद उन पर पुलिस ने फर्जी केस बनाया और उनके अंतिम दिनों तक उन्हें उस केस के बाबत मानसिक रूप से पीड़ित करते रहे। त्रिदिब दा के समकालीन फादर स्टेन स्वामी को भी जेल में बंद विचाराधीन बंदियों की बात उठाने पर फर्जी केस बना के जेल में बंद कर के यातना दी जा रही है।
वासवी कीड़ो जी अपने कॉलेज के समय से त्रिदिब जी और उनकी जीवन साथी मालंच दी से प्रेरित रही। जेंडर से जुड़े मामलों में त्रिदिब दा हमेशा ही संवेदनशील और प्रेरणाशील रहे। आदिवासी मुद्दों से भी दोनों का गहरा सरोकार रहा। आज के ज्वलंत मुद्दों में, जैसे किसान आन्दोलन और हाथरस कांड में त्रिदिब दा के विचारों की प्रासंगिकता बरक़रार है। श्री प्रकाश जी जो कि एक फिल्म मेकर हैं, त्रिदिब दा से नेतरहाट और कोयलकारो आन्दोलन के समय मिले। उन्होंने बताया कि त्रिदिब दा सिर्फ सोयी हुई जनता को उठाने की बात नहीं करते थे, बल्कि जो महज सोने का ढोंग कर रहे हैं उन्हें भी उठाने की आवश्यकता पर जोर देते थे. कई साथियों ने त्रिदिब दा के व्यक्तित्व के बारे में बात रखी जो सही मायनों में सराहनीय थी। प्रेरणादायक तो वो रहे ही, साथ में सौम्यता और अनुशासन भी कई बार आन्दोलन के तीव्र मौकों पर काम आयी। तार्किक दृष्टिकोण से उन्होंने समाज के हर उतार चढाव को समझा और सहनशीलतापुर्वक संवाद के साथ आगे बढ़ते रहे और जन आन्दोलन को दृढ़ बनाया। माले के भुवनेश्वर केवट जी ने त्रिदिब जी में संसदीय और गैरसंसदीय वामपंथ का एक मेल देखा। अधिवक्ता साथी श्याम ने अपने उभरते राजनीतिक जीवन में फादर स्टेन और त्रिदिब जी के योगदान को महत्वपूर्ण बताया। डब्लू.एस.एस. की बेबी तुरी जी त्रिदिब जी के अंतिम दिनों में भी उनसे मिली थी, उन्होंने भावुक श्रद्धांजलि दी. डाॅ. रणेन्द्र जी ने त्रिदिब जी की तुलना ए.के रॉय और शंकर गुहा नियोगी जैसे महान नेताओं से की। उन्होंने हाल ही में दिवंगत कवि मंगलेश डबराल जी की कविता ‘स्मृति भी एक जगह है’ को याद किया.
सभी साथियों ने यह स्वीकार किया कि आन्दोलन को आगे ले जाना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
कार्यक्रम में दयामनी जी, सुशांतो जी, प्रकाश जी और अन्य लोगों ने कुछ प्रस्ताव दिए जैसे विस्थापन के सवाल पर व्याख्यान का आयोजन, आन्दोलन के वरिष्ठ साथियों से नियमित रूप से मिलना एवं संवाद रखना, कृषि सम्बन्धी सवालों पर कृषि मंत्री के साथ डेलीगेशन। युवा साथी पत्रकार रूपेश कुमार सिंह ने विभिन्न वाम दलों के समक्ष कुछ महत्वपूर्ण सवाल रखे जैसे की विस्थापन, दमन, फर्जी एनकाउंटर, भूमि अधिग्रहण इत्यादि और अपेक्षा की कि एक व्यापक संयुक्त मोर्चा की तरफ हम पहल करें।
विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के झारखंड संयोजक दामोदर तुरी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति