देशद्रोह के आरोप में सज़ा काट रहे 3 लोगों को 13 साल बाद शुक्रवार 21 जून को कोलकाता हाई कोर्ट के हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव बनर्जी व जस्टिस सुव्रा घोष की खंडपीठ ने दोष मुक्त करते हुए बरी कर दिया.सुशील राय, पतित पावन हालदर व संतोष देवनाथ को 2005 में पश्चिम बंगाल पुलिस ने माओवादी होने के आरोप में कभी माओवाद प्रभावित जंगलमहल के झाड़ग्राम से गिरफ्तार किया गया था.तीनों को निचली अदालत ने 2005 में देशद्रोह के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
Calcutta HC Sets Aside Conviction Of Alleged Maoists For Sedition After 13 Years [Read Judgment] https://t.co/qfB3vmjxwJ
— Live Law (@LiveLawIndia) June 26, 2019
2006 में उस फैसले के विरोध में हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी.
देशद्रोह के आरोप में उच्च न्यायालय द्वारा बरी किये गये तीनों लोगों में से एक सुशील राय की 2015 में मृत्यु हो गई थी.
सुशील राय और पतित पावन हालदर को तमाजुरी गांव में एक माओवादियों की एक बैठक में शामिल होने के आरोप में 23 मई, 2005 की रात को गिरफ्तार किया गया था, जबकि देबनाथ को माओवादी साहित्य और हथियार रखने के आरोप में 1 जून 2005 को हुगली जिले के जंगीपुर में उसके किराए के घर से गिरफ्तार किया गया था.
17 मार्च 2006 को इन तीनों के विरुद्ध झाड़ग्राम के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायालय (फास्ट ट्रैक कोर्ट) ने दंड संहिता की धारा 121 ए / 122/124 ए के तहत दंडनीय अपराध धारा 25 (ए) और आर्म्स एक्ट का 35 और विस्फोटक उपप्रस्थान अधिनियम की धारा 4/5 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कैद की सजा सुनाई थी.
शुक्रवार को इस मामले में फैसला देते हुए कोलकाता उच्च न्यायालय के जस्टिस संजीव बनर्जी और सुव्रा घोष की डिवीजन बेंच ने निचली अदालत के दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट “दुर्भाग्यवश कानून के सबूतों को उचित परिप्रेक्ष्य में साक्ष्य की सराहना करने में विफल रही, जिसके परिणामस्वरूप सामयिक बिंदु गायब हो गया, जो अपीलकर्ताओं और उत्पन्न सामग्री के बीच की कड़ी है. आरोपियों पर लगाये गये अभियोग अस्तित्वहीन था.
हाई कोर्ट के फैसले को आप यहां पढ़ सकते हैं :
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