यह केरल की महिलाओं का जवाब है। नि:संदेह यह वहाँ की वामपंथी सरकार का आह्वान था, लेकिन अगर 50 लाख महिलाएँ 620 किलोमीटर मानवशृंखला बनाने उतर पड़ें तो यह सिर्फ़ सरकारी आह्वान का नतीजा नहीं हो सकता। यह जवाब केरल की महिलाओं का ही है जो लैंगिक समानता का झंडा बुलंद करने सड़कों पर उतरीं और सबरीमाला के नाम पर मीडिया और बीजेपी के जरिये केरल की महिलाओं की मध्ययुगीन तस्वीर को फाड़कर फेंक दिया।
लैंगिक समानता के लिए किसी राज्य की महिलाओं का ऐसा प्रतिवाद ऐतिहासिक है। यह उस छल के विरुद्ध गर्जना भी है जो सबरीमाला के नाम पर देश की शासक पार्टी बीजेपी ने किया। याद कीजिए सबरीमाला विवाद पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी की प्रतिक्रिया। बीजेपी ने 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को गैरकानूनी करार दिया था। बीजेपी ने तब इसका स्वागत किया था। लेकिन जैसे ही उसे लगा कि सबरीमाला के भक्तों की एक भीड़ इसके ख़िलाफ़ सड़क पर है, उसने रुख बदल लिया। बीजेपी और आरएसएस से जुड़े तमाम संगठन इस भीड़ का हिस्सा बन गए। वे इस भीड़ के जरिये केरल की राजनीति की मुख्यधारा में आने का स्वप्न देखने लगे जहाँ वे लगातार हाशिये पर हैं। सबरीमाला मंदिर जाने की कोशिश करने वाली महिलाओं पर हमले भी हुए। मीडिया को भी नहीं बख्शा गया।
इसी के जवाब में साल के पहले दिन महिलाओं ने उत्तरी केरल के कसारागोड से लेकर दक्षिणी तिरुवनंतपुरम तक राष्ट्रीय राजमार्ग पर मानव शृंखला बनाकर अपने मज़बूत इरादों का परिचय दिया। यह ‘वूमेन वॉल’ 14 जिलों से गुजरी। इसमें सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं से लेकर लेखक, कलाकार, प्रोफेशनल्स, छात्राओं से लेकर समाज के हर मोर्चे पर सक्रिय महिलाएँ शामिल थीं। तर्कवादियों के अलावा कुछ प्रगतिशील हिंदू संगठनों ने भी इसका समर्थन किया था। इस 44 किलोमीटर लंबी दीवार ने शाम चार बजे से सवा चार बजे तक, यानी कुल 15 मिनट तक केरल के उत्तरी तथा दक्षिणी किनारों को समता और समानता के नारों से गुँजाए रखा। स्त्री-दीवार में शामिल महिलाओं ने लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति समर्पित रहने का संकल्प लिया। इस अभियान का औपचारिक शुभारंग मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने समाज सुधारक अय्यनकाली की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके किया। स्वास्थ्य मंत्री के.के.शैलजा ने कासरगोड में महिला मानव श्रृंखला का नेतृत्व किया।
यह बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के उस बयान का स्पष्ट जवाब था जो उन्होंने अक्टूबर में कन्नूर में पार्टी कार्यालय के उद्घाटन के समय दिया था। उन्होंने कहा था कि अदालतों को व्यावहारिक होना चाहिए और वैसे ही फैसले करने चाहिए जिन्हें अमल में लाया जा सके। पचास लाख महिलाओं की यह मानवशृंखला बता रही थी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमल में न लाए जान की बात महज़ छलावा है।
दिलचस्प बात है कि केरल की वामपंथी सरकार पर महिलाओं के मंदिर प्रवेश को रोकने वाली भीड़ पर अपेक्षित बल प्रयोग न करने का आरोप लग रहा था। लेकिन अब यह साफ़ है कि मसला भीड़ का नहीं एक राजनीतिक अभियान का था जो पुलिस की गोलियाँ चलवाने का मक़सद लिए हुए था। सरकार ने राजनीतिक अभियान का राजनीतिक जवाब देना बेहतर समझा। जिन महिलाओं की इच्छा के नाम पर यह अभियान चलाया जा रहा था, उसके बरक्स केरल की पचास लाख महिलाओं को खड़ा करके यह साबित किया गया कि आरएसएस और बीजेपी किसी चोर दरवाज़े से केरल में नहीं घुस पाएँगे।