यूपी की पहली मुस्लिम सांसद बनीं तबस्सुम हसन की कैराना उपचुनाव की जीत के साथ ही एक उनके नाम से यह बयान सोशल मीडिया में छा गया- ‘ये अल्लाह की जीत है और राम की हार है।’
राजनीति की हल्की सी समझ रखने वाले जान लेंगे कि यह फर्ज़ी बयान है। कोई सांसद ऐसा बनाय नहीं दे सकता। वैसे भी कैराना का चुनाव ‘जिन्ना नहीं गन्ना’ के नारे से जीता गया। तमाम सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशों पर किसानों की एकता भार पड़ी थी। लेकिन जब सरकार बनाने के लिए मूर्खता को संगठित करने को रामबाण उपाय मान लिया गया हो तो ठहरकर सोचने की फ़ुर्सत किसके पास है।
हुआ यही। इस बयान को वायरल करते हुए हिंदुओं को भड़काने वाली बातें लिखी जाने लगी। हालांकि यह बात जल्द ही सामने आ गई थी कि बयान फर्ज़ी है, लेकिन ‘स्वयंभू राष्ट्रवादी’ इसे फैलाना अपना धर्म समझ रहे थे। हद तो यह हुई कि यह फर्ज़ी बयान एक जुमला बन गया और बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा भी टीवी डिबेट में इसका इस्तेमाल करने लगे।
आख़िरकार तबस्सुम हसन का धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने 1 जून को शामली के एसपी को पत्र लिखकर जाँच करने और दोषी के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई की माँग की। एसपी ने 2 जून को साइबर सेल को एफआईआर करने और कार्रवाई का आदेस दिया।
पर तीन दिन बाद भी किसी के खिलाफ कार्रवाई की ख़बर नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार कार्रवाई चाहती ही नहीं। बीजेपी 2019 का चुनाव अल्लाह और राम को भिड़ाकर ही तो जीतना चाहती है।