पूरी मानव जाति पर खतरा बनकर मंडरा रहे कोरोना वायरस से लड़ाई के नाम पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की नीति के नुकसान का आकलन करके सरकार भी घबरा गयी है। यही वजह है कि मीडिया और बीजेपी आईटी सेल के दुष्प्रचार का जवाब बीजेपी की राज्य ही नहीं केंद्र सरकार को भी देना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के तमाम ज़िलों में तबलीग को निशाना बनाने के लिए छापी और दिखायी गयी ख़बरों का पुलिस ने औपचारिक रूप से खंडन किया है और अब केंद्र सरकार की ओर से भी यही रुख दिखाया जा रहा है।
बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने एक ट्वीट में बताया कि आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च) की एक रिसर्च में दावा किया गया है कि अगर 15 अप्रैल को लाक डाउन न किया गया होता तो मरीजों की संख्या 8 लाख बीस हज़ार से ज्यादा हो जाती। ज़ाहिर है, आईटी सेल की ओर 24 घंटे मुंह बाये देखने वाले मीडिया ने इस कथित रिसर्च को लपक लिया और चारो ओर मोदी जी की बुद्धिमत्ता के झंडे गाड़े जाने लगे।
लेकिन केंद्र सरकार के संयुक्त स्वास्थ्य सचिव लव अग्रवाल ने बीजेपी आईटी सेल के इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि ऐसी कोई रिसर्च हुई ही नहीं। उन्होंने कहा कि अभी तक सामुदायिक संक्रमण की स्थिति नहीं है, इसलिए घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
ज़ाहिर है, मुंह में अब भी ज़बान रखने वाले कुछ चुनिंदा पत्रकारों ने अमित मालवीय से ट्विवटर पर जवाब मांगा।
लेकिन आईटी सेल का काम तथ्यों का जवाब देना नहीं, एक झूठ पकड़े जाने पर दूसरे झूठ को प्रसारित करने की तैयारी करना है। इसलिए जवाब तो नहीं आया। 2014 के चुनाव के पहले अमित शाह ने देश भर के बीजेपी साइबर योद्धाओं की बैठक में कहा था कि उन पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है। मतलब ये था कि जो बातें नेता लोगों के मुंह से कहना संभव नहीं है, वो आईटी सेल के जरिये प्रचारित हों। समाज के भीषण सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिये सत्ता तक पहुँचने की रणनीति कामयाब रही। लेकिन कोरोना काल में यह रणनीति उलटी पड़ रही है। एक ज़माने में नाजियों ने यहूदियों का संहार बंदूक से किया था। लेकिन इस बार कोरोना न मरने वालों पर दया दिखा रहा है और न मारने वालों पर।
संदेश साफ़ है कि एकजुट न रहे तो वायरस का बाल बांका नहीं होगा। इसलिए, समाज की एकता को बांटने वाले कोरोना के एजेंट ही समझे जाने चाहिए।