प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी में प्रोफेसर एमेरिटस अमित भादुड़ी ने कुलपति को एक पत्र लिखते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। प्रो. भादुड़ी ने यह पत्र सार्वजनिक किया है। प्रस्तुत है नीचे उनका लिखा पत्र जेएनयू के वीसी के नाम।
प्रति:
कुलपति जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली 110067
प्रिय कुलपति महोदय
दोस्तों से पता चला है और सर्वजनिक चैनलों पर बड़ी चिंता और बढ़ती जुगुप्सा के साथ मैंने खुद भी देखा है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रशासनिक और अकादमिक प्रमुख के रूप में आपने हालात से निपटने के जो तौर तरीके अपनाएं हैं उससे उसकी हालत बिगड़ती गई है और अब वह बौद्धिक बिखराव की राह पर है.
नौजवान प्रोफेसर के रूप में 1973 में मैं विश्वविद्यालय में आया था. बीच के कुछ साल छोड़ कर मैं 2001 तक वहां रहा. जेएनयू में अपने इतने लंबे सालों के दौरान मैंने विश्वविद्यालय को वाजिब और नावाजिब छात्र असंतोष के विभिन्न दौर से गुजरते देखा. प्रशासन इनसे कभी सक्षमता के साथ निपटा कभी अक्षमता के साथ. कई बार कुछ समय के लिए शिक्षण भी स्थगित रहा. अब फर्क यह आया है कि प्रशासन न सिर्फ हालात से निपटने में नकारा साबित हुआ है बल्कि बहस और चर्चा के उस आजाद और जीवंत माहौल का ही गला घोंटा जा रहा है जिसके लिए जेएनयू पर पूरे देश में जाना जाता है. उसके शिक्षकों के लिए भी यह गर्व का विषय था और छात्रों के लिए भी कि उन्हें तमाम तरह के विचारों से रूबरू कराया जाता था. देश में ऐसा कहीं और नहीं होता था और अपने अनुभव के आधार पर मैं तो कहूंगा कि दुनिया के कुछ ही अकादमिक संस्थानों में होता है. मुझे लगता है कि अभिव्यक्ति की आजादी का विध्वंस करने का प्रशासन का मौजूदा प्रयास उस बड़ी और ज्यादा मनहूस योजना के अनुरूप है जिसकी एक धुरी आप भी जेएनयू के प्रमुख के बतौर बने हुए हैं. आप अपने प्रशासन की संकीर्ण सोच को छात्रों पर थोपना चाहते हैं और विचारों की दूसरी खिड़कियों को बंद कर देना चाहते हैं.
मुझे दुख हो रहा है, लेकिन मुझे लगता है कि मेरे लिए यह अनैतिक होगा कि मैं असहमति का गला घोंटने की इस मनहूस योजना का विरोध किए बिना खामोश बना रहूं जो अभी विश्वविद्यालय में चलाई जा रही है. मैं उस एकमात्र तरीके से अपना विरोध दर्ज कर रहा हूं जो मेरे लिए खुला है. मैं जेएनयू में एमेरिटस प्रोफेसरशिप से इस्तीफा दे रहा हूं. जेएनयू में मुझे दिया गया कमरा (उसमें रखी मेरी किताबों और कुछ अन्य चीजों के साथ) तो बीते कई महीनों से मेरे लिए बंद है. कुछ अन्य एमेरिटस प्रोफेसरों के साथ भी ऐसा ही हुआ है. इसलिए मेरे इस्तीफे का व्यावहारिक अर्थ में कुछ खास मतलब नहीं है. फिर भी मुझे उम्मीद है कि इससे आपको यह संदेश तो जाएगा ही कि विश्वविद्यालय द्वारा नवाजा गया यह सम्मान वापस करना विश्वविद्यालय के आपके नेतृत्व के प्रति मेरी गहरी चिंता का प्रतीक है जो शिक्षा के इस उम्दा संस्थान को सुनियोजित तरीके से बिखराव की ओर ले जा रहा है. इसी वजह से मैं इस चिट्ठी को सार्वजनिक करने के लिए विवश हूं.
अमित भादुड़ी