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जेएनयू के प्रोफ़ेसर विवेक कुमार टीवी चैनलों पर अक्सर दलितों के उत्पीड़न और सामाजिक न्याय के प्रश्नों पर जूझते नज़र आते हैं। हालाँकि बीएसपी की ओर से कोई आधिकारिक फ़ैसला नहीं है, लेकिन टीवी चैनल उन्हें बीएसपी प्रवक्ता जैसा ही मानते हैं। बीएसपी और मायावती को लेकर उन्होंने काफ़ी लिखा-पढ़ा भी है। बहरहाल, हाल ही में उन्हें बामसेफ़ का दिल्ली का कोआर्डिनेटर बनाया गया है। लेकिन सोशल मीडिया में इसे लेकर दी जा रही बधाइयों के बीच कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि मायावती ने प्रो.विवेक कुमार की क्षमता और योग्यता के अनुरूप पद नहीं दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षक कॉौशल पंवार ने अपने फ़ेसबुक पेज पर खुलकर लिखा कि इसके लिए प्रो.विवेक कुमार को बधाई नहीं दूँगी जिस पर कई लोगों ने विरोध और समर्थन किया है जिसे आप नीचे पढ़ सकते हैं।
लेकिन इसके पहले ज़रा बामसेफ़ के बारे में जान लीजिए। BAMCEF यानी ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनारिटी क्म्युनिटीज़ इम्पलाइज़ फ़ेडरेशन की अवधारणा 1972 में बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने विकसित की थी। इसमें ‘बैकवर्ड’ के तहत दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों को माना गया था और उनके साथ अल्पसंख्यक समुदाय के कर्मचारियों को मिलाकर संगठन निर्माण करना था। 6 दिसंबर 1978 को दिल्ली में इसका स्थापना सम्मेलन हुआ और एक तरह से कहा जाए तो बाद में बहुजन समाज पार्टी के निर्माण का आधार यही संगठन बना। लेकिन कांशीराम ने कभी भी इस संगठन का पंजीकरण नहीं कराया था। 1986 में एक गुट कांशीराम से अलग हुआ जिसने इसका पंजीकरण करा लिया।
यानी बसपा से जुड़ा बामसेफ दरअसल, एक शैडो संगठन है। इसका बसपा से कोई आधिकारिक रिश्ता नहीं मिलेगा, लेकिन काम बसपा के लिए ही करता है, जबकि पंजीकृत बामसेफ में बीएसपी और मायावती पर सवाल उठाने वालों की कमी नहीं है।
प्रो.विवेक कुमार को बसपा के इसी ‘शैडो संगठन’ को मज़बूत करने की जिम्मेदारी मिली है जिस पर ये प्रतिक्रियाएँ नज़र आ रही हैं–
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