नवलगढ़ के किसान दस साल से लगातार कह रहे हैं कि वे सीमेंट कारखानों के लिए ज़मीन नहीं देना चाहते, चाहे उन्हें कितना ही मुआवजा क्यों न मिले। इसके उलट जिला प्रशासन इस बात को एक बार भी समझे बगैर बार-बार उन्हें आखिरी मोहलत और चेतावनी दे देता है। जिला कलक्टरों को किसानों की साधारण सी बात क्यों नहीं समझ में आती है? उन्हें यह क्यों लगता है कि पैसे के बदले हर आदमी सब कुछ स्वेच्छा से दे देगा?
नवलगढ़ के किसानों के दस साल के आंदोलन में ताज़ा मामला झुंझनू के कलक्टर का है जो अपने पहले के कलक्टरों की तरह ही किसानों की भाषा समझने को तैयार नहीं हैं। बांगड़, बिड़ला और आइसीएल कंपनियों के सीमेंट कारखानों के लिए राजस्थान के झुंझनूं जिले की नवलगढ़ तहसील में राजस्थान औद्योगिक निगम (रिको) द्वारा ली गयी किसानों की ज़मीनों को खाली कराने का एक बार फिर “आखिरी फ़रमान” जारी हो गया है। देखें नवलगढ़ के संघर्षरत किसानों के नेता दीप सिंह शेखावत की ताज़ा पोस्टः
झुंझनूं के जिला कलक्टर रवि जैन ने पत्रकारों से बातचीत में खुल कर कह दिया कि “हमने लास्ट वॉर्निंग दे दी है”। सुनिए कलक्टर साहब का पूरा बयानः
नवलगढ़ में पिछले आठ सालों से बांगड़-बिड़ला के सीमेंट प्लांट व खनन के विरोध में आंदोलन चल रहा है। 2007 में नवलगढ़ के 18 गांवों की 72 हजार बीघा जमीन को सीमेंट फैक्ट्री के लिए अधिग्रहित करने का नोटिस आया था। जमीन को रिको द्वारा अधिग्रहित किया जाना था। इस अधिग्रहण से इस इलाके 50,000 लोगों की कृषि, जो उनकी आजीविका का प्रमुख साधन है, प्रभावित हो रही है।
भूमि अधिग्रहण विरोधी किसान संघर्ष समिति के बैनर तले इस इलाके की आम जनता पिछले नौ साल से ज्यादावक्त से अपने धरने को जारी रखे हुए है और हर साल इसका एक वर्ष पूरा होने पर एक विशाल रैली तथा जन सभा का आयोजन किया जाता है जिसमें न केवल राजस्थान बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से जनसंघर्षों के प्रतिनिधि इस कार्यक्रम में शिरकत कर अपनी एकजुटता जाहिर करते हैं।
ताज़ा वीडियो में कलक्टर जैन बार−बार यह कहते सुने जा सकते हैं कि किसानों को अपनी ज़मीनों का अच्छा अवॉर्ड मिला है इसलिए उन्हें ज़मीन खाली करने में समस्या नहीं होनी चाहिए। हकीकत यह है कि जिला प्रशासन ने सीमेंट फैक्ट्रियों के लिए जमीन अधिग्रहण करने के लिए इस क्षेत्र की उपजाऊ जमीन को बंजर घोषित कर जमीन सीमेंट फैक्ट्रियों को दे कर किसानों के लिए जबरन मुआवजा घोषित कर दिया था।
दस साल से चल रहे संघर्ष के टिके रहने की वजह यही है कि यहां के किसान अवॉर्ड लेने को तैयार नहीं हैं, चाहे वह कितना ही क्यों न हो। दो साल पहले भी इसी तरह भाजपा सरकार के राज में जिला कलक्टर ने ज़मीन खाली कराने का अंतिम फ़रमान जारी किया था जिसका काफी विरोध हुआ था।
उस वक्त भी किसानों ने प्रशासन के इस फ़रमान- कि जो किसान अपनी मर्ज़ी से सीमेंट कम्पनियों को जमीन नहीं देते हैं उनको पुलिस के द्वारा जबरन खाली कराई जायेगी- की जोरदार शब्दों में निंदा की थी। उस वक्त फरवरी 2017 में मुख्यमंत्री के नाम उपखंड अधिकारी नवलगढ़ को किसानों ने ज्ञापन दिया था जिसमें साफ उल्लेख था कि अगर बिना किसानों की सहमति के उनकी जमीन व घर जबरन छीनने की कोशिश की तो यहां जानमाल के नुकसान की पूरी संभावना है जिसके लिए स्वयं प्रशासन जिम्मेवार होगा।
अब सरकार बदल चुकी है और राज्य में कांग्रेस का शासन है, तो एक बार फिर ज़मीन कब्ज़ाने के हथकंडे जिला प्रशासन की ओर से तेज़ हो गये हैं। पिछले साल इसी क्षेत्र में इन्हीं किसानों की जिन ज़मीनों को अब तक कब्ज़ाया नहीं जा सका था, उन्हें भाजपा की सरकार ने लौटाने का फैसला दे दिया था। इसे किसानों की बड़ी जीत के रूप में देखा गया था।
20 सितंबर 2018 को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में भाजपा सरकार ने अल्ट्राटेक सीमेंट, हिंदुस्तान जिंक, बिनानी सीमेंट तथा तथा जिंदल शॉ को 3000 बीघा जमीन किसानों को वापस देने का शासनादेश जारी किया था। इस 3000 बीघा जमीन में 555 हेक्टेयर जमीन झुंझनु जिले के नवलगढ़ तहसील में बिड़ला की कंपनी अल्ट्राटेक द्वारा अधिग्रहण के लिए प्रस्तावित है।
ज़ाहिर है तब चुनाव करीब थे, लिहाजा यह घाेषणा भाजपा सरकार के चुनावी स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं थी। अब सत्ता बदल गयी है लेकिन नौकरशाही के रंगढंग वही हैं। इलाके का मौका मुआयना करने के बाद जिलाधिकारी ने एक ओर उपखण्ड प्रशासन को ज़मीनें खाली करवाने के लिए एक बार मुनादी करवाने को कहा है, तो दूसरी ओर भूमि अधिग्रहण विरोधी किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष कैलाश यादव ने प्रेस नोट जारी करते हुए जोर जबरदस्ती की सूरत में भीषण विरोध की बात कही है। यादव ने कहा है कि किसी भी सूरत में किसानों की जमीन जबरन नहीं लेने देंगे। एक-दो रोज में बैठक कर आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।
वनलगढ़ के किसानों के लिए सवाल यह है कि क्या वे इस ‘अंतिम चेतावनी’ को वास्तव में अंतिम मानें? इससे भी बड़ा सवाल शेखावत राजनीतिक दलों के बारे में उठाते हैं जिनके आंदोलन ने किसानों के प्रति कांग्रेस और भाजपा दोनों का बराबर रवैया देखा हैः