27 मार्च से विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के संयोजक दामोदर तुरी ने गिरिडीह जेल (झारखंड) के कुछ अन्य कैदियों के साथ मिलकर अंधेरी, घुटन भरी और गंदी कोठियों में एकान्त कारावास में भेज दिए जाने के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू कर दी है। यह विडम्बना ही है कि उन्हें 23 मार्च को इन कोठियों में कैद किया गया, जब देश तीन अन्य कैदियों- शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा था। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में मौत की सजा के लिए दोषी ठहराए गए कैदियों के लिए एकान्त कारावास दिए जाने पर रोक लगाई है। सुनील बत्रा के मामले में संवैधानिक पीठ द्वारा दिया गया फैसला यहां पर विशेष उल्लेखनीय है। और ये तो अभी विचाराधीन कैदी हैं!
दामोदर तुरी को 15 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था जब वे लोकतंत्र बचाओ मंच द्वारा आयोजित एक कॉन्फ्रेंस से निकल रहे थे। लोकतंत्र बचाओ मंच का गठन हाल ही में झारखंड सरकार की बढ़ती हिंसा और लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन किए जाने के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए किया गया है, विशेष रूप से आधार कार्ड न होने के कारण भुखमरी की मौत मरने और पंजीकृत ट्रेड यूनियन मजदूर संघर्ष समिति (एमएसएस) पर अवैध प्रतिबंध लगाए जाने के खिलाफ।
दामोदर तुरी कई अन्य विस्थापन-विरोधी संघर्षों में सबसे आगे रहे हैं, जैसे कि आदिवासी भूमि पर कॉर्पोरेट अधिग्रहण को सुविधाजनक बनाए जाने के लिए छोटा नागपुर अधिग्रहण और संथाल परगना अधिनियमों में संशोधन किए जाने के खिलाफ आदिवासियों द्वारा बड़े पैमाने पर किया गया विरोध प्रदर्शन। वह अन्य लोकतांत्रिक संघर्षों में भी सबसे आगे रहे हैं, जैसे कि प्रसिद्ध पारसनाथ मंदिर में एक डोली ले जाने वाले मोटीराम बास्के की फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दिए जाने के खिलाफ।
हालांकि दामोदर तुरी एमएसएस के सदस्य नहीं हैं, फिर भी उन्हें एमएसएस के सदस्यों पर लगाए गए कई बेतुके और उपद्रवी मामलों में शामिल मान लिया गया है। रूसी क्रांति की सालगिरह मनाने के अलावा, इन मामलों में बोकारो में एक एमएसएस ऑफिस चलाने और एमएसएस को आपराधिक संशोधन अधिनियम 1918, (एक कट्टर औपनिवेशिक कानून) के तहत “प्रतिबंधित कर दिए जाने” के दो दिन बाद एमएसएस सदस्यता बकाया जमा करने (विधिवत रूप से प्राप्त) को जारी रखने वाले मामले शामिल हैं।
एमएसएस एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन है और काफी सक्रिय है। 22 दिसम्बर 2017 को राज्य सरकार के दो-लाइन के एक आदेश के जरिए इसे “प्रतिबंधित” कर दिया गया था। यह कोई सूचना दिए बिना, कोई नोटिस जारी किए बिना, कोई सुनवाई या पंजीकरण रद्द किए जाने या प्रतिबंधित किए जाने संबंधी कोई अन्य कार्यवाही किए बिना किया गया था। सदस्यों ने, जिन्हें सदस्यता देय राशि जमा करने के लिए गिरफ्तार किया गया था, कहा कि उन्हें पता नहीं था कि उन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया है “क्योंकि उन्होंने अख़बार नहीं पढ़ा था”!
इन मामलों को और अधिक जटिल बनाने के लिए, इनमें कुख्यात यूएपीए (गैरकानूनी रूप से संगठित होने पर रोकथाम लगाने संबंधी अधिनियम 1967) की धाराओं को जोड़ दिया गया है, हालांकि एमएसएस यूएपीए के तहत प्रतिबंधित नहीं किया गया है!
जाहिर है दामोदर तुरी को सिर्फ उनके साहस को तोड़ने और झारखंड व उसके समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों पर कॉर्पोरेट द्वारा कब्जा कर लिए जाने के खिलाफ किए जा रहे संघर्ष को कमजोर करने के लिए गिरफ्तार किया गया है। इस योजना के सफल होने की संभावना नहीं है क्योंकि दामोदर दमन से अनजान नहीं हैं, वे इससे पहले भी अन्य झूठे मामलों में गिरफ्तारी और यातना का सामना कर चुके हैं, जिसमें उन्हें बाद में बरी कर दिया गया था। लेकिन हम सभी के लिए यह खतरे की घंटी है। यदि हमारी सरकार संवैधानिक प्रक्रियाओं से इस तरह की दण्ड मुक्ति प्रदान करती रही तो फिर हमारी संवैधानिक गारंटी और लोकतांत्रिक अधिकारों का क्या होगा?
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त्रिदिब घोष, बी.एस. राजू, माधुरी, प्रशांत पायिकरे, रिनचीन, जे. रमेश और महेश राउत विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन की संचालन समिति की ओर से