मायावती से क्‍या छत्‍तीसगढ़ फॉर्मूले पर गठबंधन की योजना बना रही समाजवादी पार्टी?

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लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

आगामी लोकसभा चुनाव 2019 के लिए सभी सियासी पार्टियां अपनी-अपनी सियासी चाल अभी से चल रही हैं। यूपी में गठबंधन होगा या नहीं होगा, जहां इस पर सभी की निगाहें लगी हैं वही भाजपा की लगातार यह कोशिश है कि किसी भी सूरत में यूपी और बिहार में कोई गठबंधन न हो। सियासी गतिविधियों पर क़रीब से नज़र रखने वाले बसपा-सपा पर फ़ोकस किए हुए हैं कि यह दोनों दल क्या करते हैं।

ऐसे में समाजवादी पार्टी के भीतर से यह बात निकल कर आ रही है कि सपा किसी भी सूरत में बसपा से गठबंधन करना चाहती है परन्तु वह यह भी चाहती है कि सपा का बसपा से जो तालमेल हो, उसकी सूरत खुद सपा तय करे। ऐसा किसी भी सूरत में नहीं लगता कि बसपा, सपा के बताए फ़ार्मूले पर गठबंधन करेगी।

सपा की रणनीति है कि बसपा सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा का फ़ायदा उठाया जाए और 2019 के चुनाव में मायावती को सपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया जाए और 2022 के विधानसभा के चुनाव में बसपा सुप्रीमो को सीएम की रेस से बाहर कर दिया जाए। उसका मानना है कि जिस तरह छत्तीसगढ़ में मायावती अजित जोगी को वहां मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ रही हैं और लोकसभा चुनाव 2019 में अजित जोगी मायावती का समर्थन करेगे, उससे दो क़दम आगे बढ़ते हुए सपा अपनी ओर से मायावती को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित कर 2019 के चुनाव में जाना चाहती है। यह उत्‍तीसगढ़ का मॉडल ूपी में लागू करने की कोशिश है।

लोकसभा संग्राम 2019 देश की सियासत के लिए बहुत ही अहम है। इससे इंकार नही किया जा सकता। सियासी जानकारों का कहना है कि गठबंधन न होने की सूरत में 2014 दोहराने में भाजपा को कोई कठिनाई नही आएगी और वह आसानी से बिहार व यूपी को फ़तह कर केन्द्र में फिर सत्ता पर क़ाबिज़ हो जाएगी। यदि बिहार और यूपी में विपक्ष महागठबंधन कर 2019 का चुनाव लड़ता है तो फिर इन दोनों राज्यों से मोदी की भाजपा को सीटें जुटाना भारी पड़ जाएगा। यह बात उसके रणनीतिकार समझ रहे हैं क्योंकि उसे विपक्ष के बिखराव का लाभ 2014 में भी मिला था और 2019 में भी मिलेगा।

सपा की हरदम यह चाह रही है कि किसी सूरत में उसका गठबंधन बसपा से हो जाए क्योंकि गठबंधन न होने की सूरत में उसके वोटबैंक मुसलमान के भागने का ख़तरा सता रहा है। गठबंधन न होने पर मुसलमान टैक्टिकल वोटिंग करेगा जहां जो मोदी की भाजपा को हरा रहा होगा वह उसके साथ जाएगा और अगर वह भाग गया तो सपा का अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ जाएगा क्योंकि पिछले तीन दशकों से लगभग यूपी की सियासत में मुसलमानों को सपा कंपनी का बंधुआ मज़दूर समझा जाता है।

बसपा नेतृत्व छत्तीसगढ़ फ़ार्मूले पर यूपी में गठबंधन पर किसी भी हाल में तैयार नही होगा क्योंकि यूपी में बसपा काफ़ी मज़बूत मानी जाती है। चाहे वह 2014 व 2017 के चुनावों में कोई ख़ास प्रदर्शन न कर पायी हो परन्तु उसके पास मज़बूत और टिकाऊ वोटबैंक मौजूद है जो उसे छत्तीसगढ़ से अलग सोचने पर अडिंग रखता है। बसपा का छत्तीसगढ़ में वो मामला नही है जो उसका यूपी में है, यह बात सब जानते हैं। यह तो सपा की रणनीति है कि ऐसी ख़बरें फैलाकर बसपा को संदेश दिया जाए जिससे ज़्यादा से ज़्यादा सीटों पर लड़ा जा सके। सपा कंपनी यूपी की 80 सीटों में से किसी सरल फ़ार्मूले पर बंटवारा चाहती है और सपा की कूटनीति यह है कि किसी भी सूरत मे बसपा से गठबंधन कर लिया जाए- यह बिलकुल नही देखा जाए कि बसपा हमें कितनी सीट दे रही है।


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