स्वतंत्रता संघर्ष के दमन के लिए बनाया गया राजद्रोह क़ानून ख़त्म क्यों न हो- CJI


प्रधान यायाधीश ने अटार्नी जनरल से कहा कि धारा 66A को रद्द किए जाने के बाद भी हज़ारों मुकदमें दर्ज किए गये। हमारी चिंता कानून का दुरुपयोग है। सरकार पुराने कानूनों को क़ानून की किताबों से निकाल रही है तो इस कानून को हटाने विचार क्यों नहीं किया गया? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह राजद्रोह कानून की वैधता का परीक्षण करेगा। राजद्रोह कानून संस्थाओं के कामकाज के लिए गंभीर खतरा है। CJI रमना ने कहा कि अगर कोई पुलिस अधिकारी किसी गांव में किसी को ठीक करना चाहता है, तो वह धारा 124 ए का उपयोग कर सकता है। लोग डरे हुए हैं।


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राजद्रोह क़ानून के बढ़ते दुरुपयोग के आरोपों के बीच आज सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की। इस क़ानून यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायधीश ए.वी.रमना ने पूछा कि स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए बनाये गये अंग्रेज़ों के इस क़ानून को ख़त्म क्यों नहीं कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजद्रोह का क़ानून  बढ़ई को लकड़ी का टुकड़ा काटने के लिए आरी देने जैसा है जिसका इस्तेमाल वह पूरे जंगल को काटने के लिए करता है।

राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली पूर्व सैन्य अधिकारी, मेजर-जनरल (अवकाशप्राप्त) एसजी वोमबटकेरे की याचिका पर सुनवाई करने पर सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया हैया। चिका में दावा किया गया है कि यह कानून अभिव्यक्ति पर ‘डरावना प्रभाव’ डालता है और यह बोलने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है। मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमना ने कहा कि अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक पर भी राजद्रोह की ये धारा लगाई थी। क्या सरकार आजादी के 75 साल भी इस कानून को बनाए रखना चाहती है? राजद्रोह के मामलों में सजा भी बहुत कम होती है। इन मामलों में अफसरों की कोई जवाबदेही भी नहीं है।

प्रधान न्‍यायाधीश ने अटार्नी जनरल से कहा कि धारा 66A को रद्द किए जाने के बाद भी हज़ारों मुकदमें दर्ज किए गये। हमारी चिंता कानून का दुरुपयोग है। सरकार पुराने कानूनों को क़ानून की किताबों से निकाल रही है तो इस कानून को हटाने विचार क्यों नहीं किया गया? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह राजद्रोह कानून की वैधता का परीक्षण करेगा। राजद्रोह कानून संस्थाओं के कामकाज के लिए गंभीर खतरा है। CJI रमना ने कहा कि अगर कोई पुलिस अधिकारी किसी गांव में किसी को ठीक करना चाहता है, तो वह धारा 124 ए का उपयोग कर सकता है। लोग डरे हुए हैं।

मुख्य न्यायधीश एनवी रमना, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश राय की पीठ इस याचिका की सुनवाई कर रही है। याचिका की एक प्रति अटार्नी जनरल के.के वेणुगोपाल को सौंपने का निर्देश दिया गया है। याचिका में दलील दी गई है कि राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए पूरी तरह असंवैधानिक है, इसे स्पष्ट रूप से खत्म कर दिया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता की दलील है कि सरकार के प्रति असहमति आदि की असंवैधानिक रूप से अस्पष्ट परिभाषाओं पर आधारित एक कानून अपराधीकरण अभिव्यक्ति, अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर एक अनुचित प्रतिबंध है और बोलने की आजादी पर संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य डराने वाले प्रभाव का कारण बनता है। याचिका में कहा गया कि राजद्रोह की धारा 124-ए को देखने से पहले, समय के आगे बढ़ने और कानून के विकास पर गौर करने की जरूरत है।

हालांकि शीर्ष अदालत की एक अलग पीठ ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली दो पत्रकारों किशोरचंद्र वांगखेमचा (मणिपुर) और कन्हैयालाल शुक्ल (छत्तीसगढ़) की याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था। यह पीठ इस मामले में 27 जुलाई को सुनवाई करेगी। अटॉर्नी जनरल ने केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि कानून को खत्म करने की जरूरत नहीं है। केवल गाइडलाइन निर्धारित किए जाने चाहिए ताकि धारा अपने कानूनी उद्देश्य को पूरा कर सके।  इस पर सीजेआई ने कहा कि यदि कोई पक्ष दूसरे पक्ष की आवाज़ नहीं सुनना चाहता है, तो वो इस कानून का उपयोग कर सकता है और दूसरों को फँसा सकता है। यह लोगों के लिए एक गंभीर सवाल है।