अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी नहीं, वहां के छात्रसंघ भवन में 1938 में दी गई मानद सदस्यता की वजह से लटकी मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर पर जैसा विवाद हो रहा है, उसका लक्ष्य सिर्फ राजनीतिक लाभ लेना है, वरना मोदी सरकार जिन्ना के देश पाकिस्तान के साथ आज़ादी के बाद पहली बार भारतीय सेना के संयुक्त सैन्य अभ्यास का फैसला न लेती।
जिन्ना-जिन्ना के शोर में इस ख़बर को लगभग नज़रअंदाज़ कर दिया गया कि ‘क़ायदे-आज़म’ के देश के सैनिकों के साथ भारतीय सैनिक गलबहियाँ करेंगे। यह इतिहास में पहली बार होने जा रहा है। वैसे, दुश्मन पड़ोसी को दोस्त बनाना ‘स्टेट्समैनशिप’ का सबूत है, लेकिन मोदी जी इस श्रेय को लेन से शरमा रहे हैं, वरना इतनी मुश्किल से तैयार किए गए ‘नफ़रत के गोलों’ का असर कम हो जाएगा। कर्नाटक से लेकर कैराना तक अगर विरोधियों को ‘जिन्ना और पाकिस्तान प्रेमी’ न साबित किया तो राजनीति करना बेकार हो जाएगा! तमाम टीवी चैनलों को इसी की ज़िम्मेदारी दी गई है।
बहरहाल,पहले ख़बर जान लीजिए। दरअसल,अमेरिकी प्रभाव वाले नाटो (उत्तरी अटलांटिक सहयोग संगठन) के मुकाबले में चीन की अगुवाई वाला सुरक्षा संगठन समूह- शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ)- बनाया गया है। पिछले हफ्ते बीज़िंग में एससीओ के रक्षामंत्रियों की बैठक हुई जिसमें भारत की रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण शामिल थीं। वहाँ तय हुआ कि सभी सदस्य देश कों का संयुक्त सैन्य अभ्यास सितंबर में रूस की दुर्गम यूराल पहाड़ियों पर होगा।
एस.सी.ओ का गठन 2001 में हुआ था। रूस,चीन, किर्गिज रिपब्लिक, कजाकिस्तान, ताजिकस्तान और उजबेकिस्तान इसमें शामिल हुए थे। पिछले साल भारत और पाकिस्तान भी इसके पूर्ण सदस्य बने। 2005 में दोनों को बतौर पर्यवेक्षक शामिल किया गया था।
वैसे, संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति अभियानों में भारत और पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी पहले भी काम कर चुके हैं, लेकिन यह आज़ादी के बाद पहली बार होगा जब भारत-पाक संयुक्त सैन्य अभ्यास करेंगे। वैसे दिलचस्प यह है कि मोदी सरकार ‘आतंकवाद के साथ वार्ता नहीं’ के सिद्धांत के साथ बातचीत स्थगित कर चुकी, है लेकिन संयुक्त सैन्य अभ्यास मे उसे दिक्कत नहीं है, जबकि सीमा पाकिस्तान की ओर से लगातार युद्ध विराम का उल्लंघन हो रहा है और दर्जन भारतीय सुरक्षा बलों के जवान शहीद हो चुके हैं। (कहाँ का दबाव काम कर रहा है ?)
निश्चित ही, भारत सरकार का इस समूह में शामिल होना एक अच्छा क़दम है। भारत-पाक संयुक्त सैन्य अभ्यास भी दोनों देशों को करीब लाएगा। रहा कैराना से लेकर कर्नाटक तक जिन्ना और पाकिस्तान के नाम पर ज़हर बोने का सवाल, तो मकसद सिर्फ वोट बटोरना है। इसे सीरियसिली सिर्फ मूर्ख लेते हैं जिन्हें संगठित करके सरकार गठित की जाती है।
वैसे भी, यूराल की पहाड़ियों वोट नहीं बर्फ बरसती है, वहाँ दोस्ती के जाम सेहत के लिए अच्छे रहेंगे।
बर्बरीक