मुस्लिमों का उत्पीड़न कर रही है भारत सरकार: अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट

चेतन कुमार
ख़बर Published On :


भारत में अल्पसंख्यकों पर बढ़ते ज़ुल्म की चर्चा अब दुनिया भर में होने लगी है। अमेरिकी सरकार की ओर से धार्मिक आज़ादी को लेकर जारी ताज़ा रिपोर्ट में भारत में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि भारत में धार्मिक समुदायों को निशाना बनाया जा रहा है। इस रिपोर्ट में भारत को रूस, चीन, सऊदी अरब जैसे देशों की उस श्रेणी में रखा गया है जहाँ धार्मिक आज़ादी ख़तरे में है। यह रिपोर्ट ऐसे समय आयी है जब जून में भारत के प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा की तैयारियाँ हो रही हैं।

अमेरिकी गृहमंत्री एंथनी ब्लिंकन ने 15 मई को अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता 2022 की ये रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट दुनिया के करीब दो सौ देशों और क्षेत्रों में धार्मिक आज़ादी की स्थिति बयान करती है। गृहमत्री ब्लिंकन ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट का मक़सद उन क्षेत्रों का नाम उजागर करना है जहाँ धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता का दमन किया जा रहा है और इसकी कोई जवाबदेही भी नहीं है। इसलिए प्रगति को एक ऐसी दुनिया की ओर ले जाना चाहिए जहाँ धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता हर किसी के लिए और हर जगह एक वास्तविकता हो।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कई राज्यों में सरकारी एजेंसियाँ धार्मिक अल्पसंख्यकों का दमन करने का अभियन चला रही हैं। रिपोर्ट में ज़िक्र है कि गुजरात में सादी वर्दी में पुलिस ने अक्टूबर 2022 में एक त्योहार के दौरान चार मुस्लिमों को सार्वजनिक रूप से पीटा। इसके अलावा मध्यप्रदेश के खरगौन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुस्लिमों के घरों और दुकानों पर बुलडोज़र चला दिया। यह बात ग़ौर करने की है कि मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश से लेकर असम तक, जहाँ जहाँ भी बीजेपी की राज्य सरकारें हैं, मुस्लिमों की संपत्ति को अवैध बताकर उन्हें बुल्डोज़र से तोड़ना आम बात हो गयी है। बुल्डोज़र अल्पसंख्यकों, ख़ासतौर पर मुस्लिमों के उत्पीड़न का प्रतीक बन गया है।

प्रधानमंत्री मोदी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत को अक्सर लेकतंत्र की जननी के रूप में पेश करते हैं लेकिन अमेरिका का धार्मिक स्वतंत्रता आयोग लगातार चार साल से भारत को उन देशों की सूची में डालने की सिफ़ारिश कर रहा है जहाँ धार्मिक आधार पर उत्पीड़न होता है। भारत सरकार लगतार ऐसी रिपोर्ट्स को ख़ारिज करती रही है, लेकिन अमेरिका में यह मुद्दा बनता रहा है। इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) जैसे संगठन लगातार इसे मुद्दा बनात रहे हैं। खासतौर पर अमेरिका में आरएसएस और बीजेपी से प्रभावित संगठनों की गतिविधियों को चिन्हित करते रहे हैं। पिछले साल भारत के स्वतंत्रता दिवस पर न्यूजर्सी में बुल्डोज़र के साथ परेड निकाली गयी थी जिसका आईएएमसी ने ज़बरदस्त विरोध किया था।

प्रधानमंत्री मोदी जून में अमेरिका जाने वाले हैं। 21 जून को न्यूयार्क में एक योग कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद 22 जून को वे राष्ट्रपति जो बाइडन की ओर से आयोजित भोज में मेहमान होंगे। ऐसे में महीने भर पहले इस रिपोर्ट के आने से भारत सरकार पर दबाव स्वाभाविक है। पीएम मोदी ने सवालों से बचने के लिए देश या विदेश मे कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की, लेकिन अमेरिकी प्रेस इस मामले में उन्हें हर हाल में घेरना चाहेगा। अमेरिकी गृहमंत्री की ओर से जारी की गयी रिपोर्ट को यूँ ही खारिज कर देना आसान नहीं होगा। भारत-अमेरिकी कूटनीतिक संबंध में ये रिपोर्ट कितना असर डालेगी, यह अलग बात है, लेकिन भारत को ये समझना ही होगा कि अमेरिकी सरकार उसके बारे में क्या राय रखती है। भारत में धार्मिक आधार पर दमन-उत्पीड़न उसकी नज़र में एक तथ्य है, न कि अफ़वाह।

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय के राजदूत रशद हुसैन के अनुवासर भारत, चीन, रूस और सऊदी अरब जैसे कई देशों की सरकारें धार्मिक अल्पसंख्यों को निशाना बनाने की नीति पर चल रही हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी गृहविभाग ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता 2022 की जो रिपोर्ट जारी की है वह दुनिया भर में धार्मिक स्थिति का दस्तावेज़ है। रशद हुसैन ने बताया कि रिपोट में हरिद्वार के उस आयोजन का ज़िक्र है जहाँ हिंदू धार्मिक नेताओं ने मुसलमानों के खिलाफ़ नफ़रत से भरे हुए ज़हरीले भाषण दिये थे। रिपोर्ट में इस घटना का ज़िक्र करते हुए भारत को बहुलतावादी और सहिष्णु ऐतिहासिक परंपराओं की याद दिलायी गयी है।

रिपोर्ट में आरएसएस मुखिया मोहन भागवत के उन बयानों का भी ज़िक्र है जिसमें मुस्लिमों के ख़िलाफ़ भेदभाव न करने की बात कही गयी थी, लेकिन कहा गया है कि मुसलमानों के साथ लगातार होने वाली नफ़रती और हिंसक घटनाएँ ऐसे बयानों को बेमान बना देती हैं।

अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वंतत्रता आयोग के अध्यक्ष नूरी तुर्कल ने कहा है कि यह रिपोर्ट दमनकारी सत्ताओं को जवाबदेह ठहराने और वैश्विक धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति में सुधार करने की लड़ाई में एक बहूमूल्य उपकरण है। इससे यह भी  पता चलता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध हैं।

 

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।


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