बीते साल नवंबर में भारत सरकार के प्रेस इन्फ़ॉरमेशन ब्यूरो ने फैक्ट चेकिंग इकाई शुरू की थी जिस पर किसी व्हाट्सऐप या फ़ेसबुक से मिली जानकारी के सही या गलत होने की तस्दीक की जा सकती थी। हाल में एक नंबर भी जारी किया गया है फ़ेक न्यूज होने या न होने की जानकारी देता है।
लेकिन अगर सरकार के मंत्री ही ख़बरों का फ़र्जीवाड़ा करने लगें तो? यक़ीन तो नहीं होता पर ऐसा हुआ और वह भी केंद्र सरकार के मंत्री ने किया। जिसे लेकर किया वह युनाइटेड किंगडम के भावी सम्राट प्रिंस चार्ल्स हैं। चार्ल्स कोविड-19 के संक्रमण के शिकार हैं।
तो खबर आयी कि प्रिन्स चॉर्ल्ज़ का करोना संक्रमण आयुर्वेद की दवाओं के इस्तेमाल से ठीक हो गया। कोरोना काल में यह ख़बर वाक़ई राहत भरी और आर्युवेद की शक्ति का प्रमाण थी। यह खबर दी केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने। उन्होंने गोवा में एक प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें बेंगलूरू के एक आयुर्वेदिक डॉक्टर आइज़क मथाई ने बताया कि उनकी दवाओं से प्रिंस चार्ल्स ठीक हो गये।
ज़ाहिर है, आयुर्वेद की वाह-वाह होने लगी। लेकिन इस सिलसिले में जब हिंदुस्तान टाइम्स ने सच्चाई जाननी चाही तो प्रिंस चार्ल्स के प्रवक्ता की ओर से साफ़ कहा गया कि – ‘यह ख़बर निराधार है। प्रिंस चार्ल्स युनाइटेड किंगडम की नेशनल हेल्थ सर्विस से मिली मेडिकल सलाहों को ही मानते हैं और कुछ नहीं।‘
उधर, बंगलुरु में आर्युवेदिक रिसॉर्ट चलाने वाले डॉक्टर मथाई ने कहा है कि प्रिंस चार्ल्स उनसे सलाह तो लेते हैं, लेकिन इस बाबत वे अपने क्लाइंट की गोपनीयता को भंग नहीं करेंगे। लेकिन उन्होंने यह ज़रूर कहा कि उन्होंने ‘किसी कोविड-19 से पीड़ित व्यक्ति का इलाज नहीं किया है।‘
ऐसे में सवाल यह है कि आख़िर केंद्रीय मंत्री जैसे ज़िम्मेदार व्यक्ति ने बिना पुष्टि के ऐसा क्यों किया। क्या इससे दो देशों के बीच सम्मानजनक रिश्ते प्रभावित नहीं होंगे। क्या भारत सरकार की जगहंसाई नहीं होगी? या क्या इससे आयुर्वेद का सम्मान बढ़ेगा?
सरकार ने फ़ेक न्यूज़ फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई की बात कही है। क्या केंद्रीय मंत्री को इसकी छूट है?