मजदूरों के पक्ष में एप्पल कंपनी के खिलाफ अमरीकी कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला

रवीन्द्र गोयल
ख़बर Published On :


13 फ़रवरी 2020 को अमरीका में कैलिफ़ोर्निया की अदालत ने फैसला दिया है कि एप्पल कंपनी को उस समय की मजदूरी का भी भुगतान करना होगा जो समय वो कर्मचारियों के बैग और फ़ोन आदि की तलाशी में लगता है. कर्मचारी जब काम से छुट्टी करते हैं तो एप्पल कंपनी अपने हितों की सुरक्षा के लिए उनके फ़ोन और बैग आदि की तलाशी लेती है और इस कार्यवाही में कर्मचारियों को 5 से 20 तक का समय देना होता है. कर्मचारियों ने 6 साल पहले यह सवाल उठाया था की उन्हें इस समय के लिए मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए.और इस मांग पर उनहोंने केस दायर किया था.

निचली अदालत में एप्पल कंपनी इस तर्क पर केस जीत गयी थी की जो कर्मचारी इस समय को बचाना चाहते हैं तो वो बैग न लायें और फिर तलाशी तथा समय लगने का सवाल ही नहीं उठता. लेकिन कैलिफ़ोर्निया की उच्चतम अदालत ने इस आधार पर कर्मचारियों की मांग को स्वीकृति दी है कि मालिक को उस सारे समय के लिए मजदूरों को मजदूरी देनी चाहिए जिसके दौरान मजदूर मालिक के नियंत्रण में है.और जब तलाशी ली जा रही होती है उस समय में कर्मचारी मालिक के नियंत्रण में रहता है.

अदालत ने एप्पल के इस तर्क को ख़ारिज कर दिया कि काम करने के लिए एक बैग लाना एक कर्मचारी सुविधा थी जिसके की तलाशी के लिए लगे समय के लिए मजदूरी देना को वो बाध्य नहीं है.
खबर यह भी है की अदालत ने अमरीकी जूता कंपनी कन्वर्स और नाइक के कर्मचारियों द्वारा किये गए ऐसे ही केस पर भी सुनवाई का फैसला किया है.

यहाँ यह बता देना उचित होगा कि येन केन प्रकारेणज्यादा समय काम की जगह रोक कर कम समय की मजदूरी अदा करना भारतीय कंपनियों में भी आम है. मारुती कंपनी में आठ घंटे के काम का मतलब है कार्य स्थल पर साढ़े आठ घंटे. का काम जिसमें मजदूर को आधे घंटे का भोजन अवकाश और 7 मिनट के दो चाय के अवकाश शामिल हैं. इसके अलावा एक बार शिफ्ट ख़त्म हो जाने पर कोई मजदूर दुसरे शिफ्ट के मजदूर के काम सँभालने के बाद ही छुट्टी कर सकता है.इसके लिए उसे कोई पैसा नहीं दिया जाता.

इसके अतिरिक्त मजदूर को कार्य स्थल पर रोज़ 15 मिनट पहले कुछ व्यायाम और अन्य बातों पर विचार के लिए आना होता है और क्योंकि समय का हिसाब रखने वाली मशीनें कार्य स्थल पर लगी होती हैं, इसलिए मजदूरों को फैक्ट्री परिसर में कमसेकम 15/20 मिनट पहले आना होता है ताकि वो समय से अपना कार्ड पंच कर सकें.

मजदूर बताते हैं कि वास्तव में उनको फैक्ट्री में आम तौर पर 9 घंटे से ऊपर रहना होता है और कभी कभी तो यह समय और भी ज्यादा हो जाता है जब दूसरी शिफ्ट के मजदूर को आने में देर हो जाये. लेकिन उन्हें भुगतान केवल 8 घंटे के काम का ही क्या जाता है. ऐसी ही प्रथा और जगहों पर भी इस्तेमाल में लायी जाती हैं.

उम्मीद करनी चाहिए की एप्पल कंपनी में दिए गए फैसले का संज्ञान यहां की ट्रेड यूनियन और अदालतें भी लेंगी और इस प्रकार की प्रथाओं पर एक प्रभावी रोक लगेगी.

एप्पल कंपनी के केस में हुए निर्णय को यहां पढ़ें:

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