गूगल ने बनाया चिपको आंदोलन पर डूडल, हम देख रहे हैं नंगे पहाड़!

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आज उत्तराखंड के तमाम हिस्सों में हरियाली विहीन नंगे पहाड़ों को देखकर छाती फटती है, लेकिन कभी यहाँ हुए चिपको आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर तूफ़ान खड़ा कर दिया था। चिपको आंदोलन की 45वीं वर्षगाँठ मनाते हुए गूगल ने आज अपना डूडल बनाया है। आज़ाद भारत का यह अनोखा आंदोलन था जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। ख़ासतौर पर इसलिए कि यह उत्तराखंड की महिलाओं की स्वत:स्फूर्त पहलकदमी से उपजा था जिसने बाद में वन संपदा बचाने के एक बड़े जनांदोलन का रूप ले लिया।

शुरुआत जोशीमठ के रैणी गाँव से हुई थी जहाँ सरकार ने करीब 680 हेक्टेयर जंगल एक ठेकेदार को नीलाम कर दिया था। रैणी गाँव की महिलाओं को यह बरदाश्त नहीं हुआ कि जिस जंगल पर उनका जीवन आश्रित है, उसे यूँ बेदर्दी से काट फेंका जाए। उन्होने तय किया कि जान दे देंगे, लेकिन पेड़ों पर आरी नहीं चलने देंगे।

इस आंदोलन की नेता थीं गौरा देवी जिनकी अगुवाई में महिलाएँ बड़ी तादाद में पेड़ों से जा चिपकीं। इसी ‘चिपकने’ से आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा। जब ठेकेदार के आदमियों ने महिलाओं का यह रूप देखा तो उनके होश उड़ गए। वे ख़ाली हाथ लौट गए। आंदोलन तेज़ी से फैला और आख़िरकार सरकार को इस इलाके में जंगल काटने पर बीस साल तक के लिए रोक लगा दी।

इस आंदोलन का असर पूरे उत्तराखंड में दिखा और जगह-जगह जंगल की नीलामी के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू हुए। टिहरी बाँध समेत बाद में पर्यावरण को लेकर हुए तमाम आंदोलनों के मूल में चिपको आंदोलन की ही प्रेरणा थी।

हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण के सवाल पर अनवरत संघर्ष करने वाले वयोवृद्ध गाँधीवादी सुंदरलाल बहुगुणा के पुत्र राजीव नयन बहुगणा ने आज इस आंदोलन से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारियाँ फ़ेसबुक पर साझा की हैं। पढ़िए

 

के उसका साया कभी होगा मयस्सर उसको
सोचता कब है कोई पेड़ लगाने वाला 

 

सुना है कि गूगल आज ” चिपको ” आंदोलन की 45वीं साल गिरह मना रहा है । मैं पहले दिन से ही इस आंदोलन का साक्षी और सैनिक रहा हूँ । मुझे ध्यान नहीं था । आवश्यकता भी नहीं थी ।

उत्तराखंड में सर्वोदय कार्यकर्ताओं ने आत्म निर्भरता के लिए कई उपक्रम किये । इनमें वन उपज पर आधारित कुटीर उद्योग भी शामिल थे । उन्होंने सहकारी समितियां बना कर ये काम शुरू किए । यद्यपि हमारी संस्था पर्वतीय नवजीवन मंडल ने कभी कोई वनाधारित उद्योग नहीं चलाया । इसका कारण यह था कि मेरे पिता एक सक्रिय स्वतंत्र पत्रकार थे , और अपना आश्रम चलाने लायक़ आमदनी उन्हें पत्रकारिता से हो जाती थी ।

चमोली जिले में स्थित एक सर्वोदयी संस्था वन उपज आधारित कुटीर उद्योग चलाती थी । उसे अंगू नामक सिर्फ 5 पेड़ सरकार ने अलॉट किये । जबकि उत्तराखंड से बाहर की एक बड़ी कम्पनी को अनगिनत पेड़ आवंटित कर दिए गए । यह घोर अन्याय था ।अंगू एक मजबूत काष्ठ है , जिससे क्रिकेट के बल्ले बनते हैं।

चूंकि मेरे पिता उम्र में सभी सर्वोदय कार्यकर्ताओं से सीनियर थे । साथ ही फ्रीडम फाइटर और पूर्व कोंग्रेसी रह चुके थे । शासन प्रशासन में उनकी पहचान थी । अतः उन्हें लेकर संस्था संचालक लखनऊ गए । वन सचिव से मेरे पिता ने पूछा – तुमने स्थानीय सहकारी संस्था को सिर्फ 5 पेड़ दिए , जबकि बाहरी व्यापारिक प्रतिष्ठान को जंगल ही सौंप दिया । क्यों ? दम्भी सचिव बोला -उस प्रतिष्ठान की बात आप भूल ही जाओ । ज़ाहिर है , बड़ा व्यापारी dm , cm सबको किक बैक देता था । मेरे पिता तमतमा कर उसकी मेज़ से उठे , और ललकारा – अब तुमसे हम वहीं ( उत्तराखंड के जंगलों में ) निबटेंगे ।

वापस आकर चमोली में मोर्चा बांधा गया । इसमे महिलाओं की सर्वाधिक भागीदारी थी । बड़े ठेकेदार के कारिंदे जब जंगल काटने पँहुचे , तो उन्हें ढोल और कनस्तर बजा कर भगा दिया गया । इस तरह प्रारम्भ में यह आंदोलन वनों पर स्थानीय हक़ हक़ूक़ को लेकर था । शुद्ध संरक्षणवादी मोड़ इसने कमसे कम 5 साल बाद लिया , जब टिहरी की हेंवल घाटी में धूम सिंह नेगी , कुंवर प्रसून , प्रताप शिखर आदि की टीम ने नारा दिया – क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और वयार ।”

इस बीच दिल्ली के मठाधीश सर्वोदयियों ने इस आंदोलन को एक प्रोजेक्ट के रूप में बदलना चाहा । उन्होंने उत्तराखंड के सर्वोदय कार्यकर्ताओं में फूट डाली , और राज किया । उस दौर में हेमवती नन्दन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के cm थे । वह पहले मेरे फादर पर गर्म हुए – क्या तुम्हें यह ड्रामा तभी करना था , जब मैं cm हूँ? मेरे पिता ने और गर्म होकर कहा – मुझे आपसे नहीं , पेड़ों से वास्ता है । बहुगुणा एक सुचिंतित पुरुष थे । उनकी समझ मे बात बैठ गयी , तथा वनों की ठेकेदारी प्रथा खत्म कर वन निगम बना दिया । पेड़ों के कटान पर पूर्ण प्रतिबंध 1981 में इंदिरा गांधी ने लगाई, जब मेरे पिता ने इस प्रश्न पर पदम् श्री ठुकरा दी ।

“चिपको” शब्द एक लोक कवि घनश्याम सैलानी ने अपने गीत के ज़रिए दिया । शेष सुधी पाठकों का विवेक ।

 



 


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