राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर कानून के तहत विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित कर हिरासत शिविर में कैद किये गये करगिल युद्ध के हीरो और राष्ट्रपति पदक से सम्मानित सेना के पूर्व अधिकारी लेफ्टिनेंट मोहम्मद सनाउल्लाह को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया है.अदालत ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार को इस मामले में नोटिस भी जारी किया है.
Read the interim order passed by the Gauhati High Court directing the release of Ex-Army officer Mohammad Sanaullah who was sent to a detention camp after a Foreigner Tribunal adjudged him a non-citizen. Senior advocate @IJaising had appeared for army veteran Sanaullah.#NRC pic.twitter.com/O0UVrinMQi
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) June 7, 2019
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और उनके सह अधिवक्ताओं एच आर ए चौधरी, अमन वदूद और सैयद बुरहानुर रहमान की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस मनोजीत भुइयां और पी के देव की खंडपीठ ने 20,000 रुपए की जमानत राशि भरने के साथ जमानत देते हुए कामरूप पुलिस अधीक्षक के पूर्वानुमति के क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर नहीं जाने का भी निर्देश दिया गया है.
52 वर्षीय सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट मोहम्मद सनाउल्ला ने कामरुप विदेशी ट्रिब्यूनल, बोको के आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें पाया गया था कि वह बांग्लादेश के एक अप्रवासी मजदूर थे.उन्होंने राज्य के गोलपाड़ा जिले में एक हिरासत गृह से अदालत से अंतरिम रिहाई की मांग करते हुए एक आवेदन भी दायर किया था.
इससे पहले कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई ने गृह मंत्री अमित शाह से करगिल युद्ध लड़ चुके सैनिक मोहम्मद सनाउल्लाह के लिए न्याय सुनिश्चित करने का केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अनुरोध किया था.
याचिका के अनुसार, ट्रिब्यूनल के आदेश में सबसे भयावह त्रुटि यह है कि वह यह ध्यान देने में विफल रहा कि उसने 1987 से 2017 तक भारतीय सेना की सेवा की और 1999 के कारगिल युद्ध में भाग लिया था.गोगोई ने अपने पत्र में लिखा था, ‘मैं आपसे मामले में गौर करने के लिए और जांच शुरू करवाने का अनुरोध करता हूं’. असम के लोग इंसाफ के लिए केंद्र सरकार की ओर देख रहे हैं’. सेना से सेवानिवृत होने के बाद सनाउल्लाह ने असम पुलस (सीमा) में सहायक उप निरीक्षक के तौर पर काम शुरू किया था. उन्हें राष्ट्रपति पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है.
2008 में असम बॉर्डर पुलिस द्वारा दायर एक रिपोर्ट के आधार पर सितंबर 2018 में सनाउल्लाह के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह एक “अवैध प्रवासी” है.
सनाउल्लाह भारतीय नागरिक नहीं है यह बताने के लिए ट्रिब्यूनल ने इस तथ्य का उल्लेख किया था कि उनका नाम 1986 की मतदाता सूची में नहीं आया था, हालांकि वह तब 20 वर्ष के थे. याचिका बताती है कि यह ट्रिब्यूनल द्वारा एक गंभीर गलती है, क्योंकि 1986 में वोट की न्यूनतम आयु 21 थी, और इसे 1989 में किए गए 61 वें संविधान संशोधन के माध्यम से केवल 18 तक घटा दिया गया था. ट्रिब्यूनल यह नोटिस लेने में विफल रहा कि उसका नाम 1989 से मतदाता सूची में था और हाल ही में हुए चुनाव में भी उन्होंने मतदान किया था.
बता दें कि सुनवाई के दौरान इस मामले में गवाह बनाये गये एक आदमी ने जांच अधिकारी पर आरोप लगाया था कि गवाही लिए ही झूठा बयान दर्ज किया है. इसी गवाह ने जांच अधिकारी के खिलाफ केस दर्ज कराया है.
कुछ दिन पहले भारत के चीफ़ जस्टिस ने भी इस मामले में चिंता व्यक्त करते हुए नागरिकता पहचानने की प्रक्रिया में सही और उचित प्रक्रिया अपनाने की बात की थी .
सनाउल्लाह 1987 में सेना में शामिल हुए थे और 2017 में सूबेदार के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे. उन्हें मानद लेफ्टिनेंट के रूप में भी पदोन्नत किया गया था.