पुण्य प्रसून वाजपेयी
राजनीति साधने वाले मान रहे हैं और कह रहे हैं कि अखिलेश यादव पर सीबीआई शिकंजा सपा-बसपा गंठबंधन की देन है। यानी गठंबधन मोदी सत्ता की खिलाफ है तो मोदी सत्ता ने सीबीआई का फंदा अखिलेश यादव के गले में डाल दिया। राजनीति साधने वाले ये भी कह रहे हैं कि आखिर खनन की लूट में सीएम कैसे शामिल हो सकता है? जो अखिलेश पर सीबीआई जांच के खिलाफ हैं वे साफ कह रहे हैं कि दस्तावेजों पर तो नौकरशाहों के दस्तख्त होते हैं। लूट खनन माफिया करते हैं तो सीएम बीच में कहां से आ गये? तो सीबीआई जांच के हक में खडे राजनीति साधने वाले ये कहने से नहीं चूक रहे हैं कि सीएम ही तो राज्य का मुखिया होता है तो खनन लूट उसकी जानकारी के बगैर कैसे हो सकती है?
चाहे अनचाहे सीबीआई जांच के हक में खड़े बीजेपी के नेता-मंत्री की बातों को सही मानना चाहिये। और विपक्ष को तो बीजेपी से भी कहीं ज्यादा जोर से कहना चाहिये कि किसी भी राज्य में खनन की लूट हो रही होगी तो तात्कालिन सीएम को गुनहगार मानना ही चाहिये। और इस कड़ी में और कोई नहीं बल्कि मोदी सत्ता में ही खनन मंत्रालय की फाइलो को खोल देना चाहिये। उसके बाद राज्य दर राज्य खनन लूट के आंकड़ों के आसरे हर राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग शुरु कर देनी चाहिये। इसके लिये विपक्ष को बहुत मेहनत करने की भी जरुरत नहीं है। क्योंकि मोदी सत्ता के दौर में भी राज्यो में खनन लूट के जरिये राजस्व को लगते चूने को परखें तो गुजरात के सीएम विजय रुपानी तो जेल पहुंच जायेगें और चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हुये मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के खिलाफ भी सीबीआई जांच के आदेश आज नहीं तो कल हो ही जायेगें । क्योकि जिस दौर में यूपी में खनन की लूट हो रही थी उसी दौर में मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात में सबसे ज्यादा खनन की लूट हुई।
2013-14 से लेकर 2016-17 के दौर में यूपी में जितनी खनन की लूट हुई या राजस्व का जितना चूना लगाया गया या फिर जितने मामले खनन लूट के एफआईआर के तौर पर दर्ज किये गये, उसकी तुलना में उसी दौर में मध्यप्रदेश ने तो देश का रिकार्ड ही तोड़ दिया। क्योंकि 2013-14 में गैरकानूनी खनन के 6725 मामले मध्यप्रदेश में दर्ज किये गये थे। जो 2016-17 में बढकर 13,880 मामलों तक पहुंच गये। यानी चार बरस के दौर में खनन लूट के मामलो में सिर्फ मध्यप्रदेश में 52.8 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई। इसी कड़ी में गुजरात के सीएम के तौर पर जब मोदी 2013-14 में थे तब 5447 अवैध या कहें गैर कानूनी खनन के मामले दर्ज किये गये। मोदी दिल्ली में पीएम बने तो रुपानी गुजरात के सीएम बने और गैर कानूनी खनन के जरिये राजस्व की लूट बढ़ गई। 2016-17 में गुजरात में अवैध खनन की लूट के 8325 मामले दर्ज किये गये।
यानी यूपी में अखिलेश की नाक के नीचे अवैध खनन जारी था इसलिए सीबीआई जांच करेगी तो फिर शिवराज सिंह चौहान हो या रुपानी की नाक भी तो सीएम वाली ही थी, उनके खिलाफ भी सीबीआई जांच क्यों नहीं होनी चाहिए ?
वैसे देश में खनन की लूट ही राजनीति को आक्सीजन देती है या कहें खनन लूट के जरिये राजनीति कैसे साधी जाती है ये बेल्लारी में खनन लूट से लेकर गोवा में खनन लूट पर जांच कमीशनों की रिपोर्ट में सामने आ चुका है । लेकिन धीरे धीरे खनन लूट को सत्ता की ताकत के तौर पर मान्यता दे दी गई और खनन लूट को सियासी हक मान लिया गया। तभी तो राज्यवार अगर खनन लूट के मामलों को परखें और परखने के लिये मोदी सत्ता की ही फाइलों को टटोलें तो कौन सा राज्य या कौन से राज्य का कौन सा सीएम सीबीआई जांच से बचेगा? राजस्थान के वसुंधरा राज में 2013-14 में खनन लूट के 2953 मामले दर्ज हुये तो 2016-17 में ये बढ़कर 3945 हो गये।
पर खनन लूट का सच इतना भर नहीं है कि एफआईआर दर्ज हुई। लूट करने वालों से फाइन वसूल कर सीएम अपनी छाती भी ठोकतें है कि उन्होने ईमानदारी से काम किया और जो अवैध लूट कर रहे थे उनसे वसली कर ली। पर इसके एवज में कौन कितना हड़प ले गया इसपर सत्ता हमेशा चुप्पी साध लेती है। मसलन मध्यप्रदेश जहाँ सौ से ज्यादा खनन लूटे के मामले दर्ज हुए वहाँ राज्य सरकार ने 1132.06 करोड रुपये वसूली को अपनी सफलता के तौर पर दिखाये। लेकिन इसकी एवज में खनन लूट से राज्य को एक लाख करोड़ से ज्यादा का नुकसान हो गया, इसपर किसी ने कुछ कहा ही नहीं। इसी तरह बीजेपी शासित दूसरे राज्यों का हाल है। महाराष्ट्र सरकार ने 281.78 करोड़ की वसूली अवैध खनन करने वालों से दिखला दी। लेकिन इससे सौ गुना ज्यादा राजस्व घाटे को बताने में कोताही बरती। गुजरात में भी 156.67 करोड़ रुपये की वसूली अवैध खनन करने वालो से हुई, इसे बताया गया। पर राजस्व की लूट जो एक हजार करोड़ से ज्यादा की हो गई, इस पर खामोशी बरती गई।
यही हाल छत्तीसगढ़ का है जहाँ अवैध वसूली के नाम पर 33.38 करोड़ की वसूली दिखायी गई लेकिन इससे एक हजार गुना ज्यादा के राजस्व की लूट पर खामोशी बरती गई। ये खेल सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों भर का नहीं है। कर्नाटक, जहाँ काग्रेस की सरकार रही, वहाँ पर भी 111.63 करोड़ की वसूली अवैध खनन से हुई, ये दिखलाया गया। लेकिन 60 हजार करोड़ के राजस्व लूट को बताया ही नहीं गया। काँग्रेस और बीजेपी ही क्यों, आध्रप्रदेश में भी क्षत्रप की नाक तले 143.23 करोड़ की वसली दिखाकर ये कहा गया कि अवैध खनन वालो पर शिकंजा कसा गया है लेकिन इसकी एवज में जो 50 हजार करोड के राजस्व का नुकसान कहाँ गया या कौन हड़प ले गया, इसपर किसी ने कुछ कहा ही नहीं।
इस खेल पर इंडियन ब्यूरो आफ माइन्स की रिपोर्ट कहती है कि खनन लूट का खेल एक राज्य से दुसरे राज्य को मदद मिलती है। और दूसरी राज्य से तीसरे राज्य को। क्योंकि खनन कर अवैध तरीके से राज्य की सीमा पार करने और दूसरे राज्य की सीमा में प्रवेश के लिये बकायदा ट्राँजिट पास दिया जाता है। और जिस तरीके से देश में खनन की लूट बीस राज्यो में जारी है अगर उस खनन की कीमत अंतर्ष्ट्रीय बाजार के हिसाब से लगायी जाये तो औसतन हर बरस बीस लाख करोड़ से ज्यादा का चूना, खनन माफिया देश को लगाते हैं।
तो ये वाकई अच्छी बात है कि खनन की लूट के लिये मुख्यमंत्री को भी कटघरे में खडा किया जा रहा है । तो मनाइये अखिलेश यादव के खिलाफ सीबीआई जांच हर राज्य के सीएम के खिलाफ सीबीआई जांच का रास्ता बना दे। और सिर्फ नौकरशाह को ही कठघरे में खड़ा ना किया जाये। ये हो गया तो फिर सीएम की कतार कहाँ थमेगी कोई नहीं जानता। और प्रधानमंत्री ने बरस के पहले दिन इंटरव्यू में अपनी कमीज को यह कहकर साफ बताया कि राफेल का दाग उनपर नहीं सरकार पर है, तो उन्हे समझना होगा कि जैसे सीएम की नाक वैसे ही पीएम की नाक ! बचेगा कौन !
पर देश का संकट तो ये भी है कि सीबीआई खुद दागदार है। यानी लूट, खनन के नाम पर ही नहीं हो रही, सत्ता के लिए लोकतंत्र को ही लूटा जा रहा है। इसकी जाँच तो जनता को ही करना है, वही कर सकती है !
लेखक मशहूर टीवी पत्रकार हैं।