चुनाव चर्चा: कर्नाटक के चुनाव नतीजे ‘भगवा नाटक’ के पटाक्षेप का संकेत तो नहीं !

चंद्र प्रकाश झा 


मौजूदा 16 वीं लोक सभा की कर्नाटक में तीन सीटों -मांड्या, शिवमोगा और बेल्लारी के उपचुनाव के परिणामों के मायने गहरे हैं। इन परिणामों से केंद्र की साढ़े चार बरस पुरानी नरेंद्र मोदी सरकार को तत्काल शायद ही कोई ख़तरा उत्पन्न हो। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस ( एनडीए ) की इस सरकार को लोक सभा में स्पष्ट बहुमत हासिल है। लेकिन इनसे भाजपा को 17 वीं लोक सभा के मई 2019 के पहले निर्धारित आम चुनाव की अपनी तैयारियों में निःसंदेह बड़ा धक्का लगा है। भाजपा इन तीन में से सिर्फ एक , शिवमोगा की सीट बड़ी मुश्किल से बरकरार रख सकी। भाजपा को 2014 के आम चुनाव में जीती बेल्लारी सीट पर करारी हार का मुंह देखना पड़ा, जो उसका गढ़ माना जाता था। इन लोक सभा उपचुनावों के साथ ही कर्नाटक विधान सभा की दो सीटों, रामानगरा और जमखंडी के लिए कराये गए उपचुनाव में भी भाजपा की हार हुई।

इन परिणामों से राज्य में भाजपा -विरोधी  गठबंधन की नौ माह पुरानी सरकार को बल मिला है  जिसने इन पांच में से चार सीटें जीत ली। यह जीत इस सरकार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल -सेकुलर के नेता एच.डी. कुमारस्‍वामी के लिए और भी महत्वपूर्ण है जिनकी पत्नी, अनिता कुमारस्वामी मुस्लिम –बहुल नगरा विधान सभा सीट से जीतने में सफल रही हैं। यह सीट एच.डी. कुमारस्‍वामी के ही इस्तीफा से रिक्त हुई, जो उन्होंने विधान सभा चुनाव में दो सीटों से जीतने पर दिया था। वह पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के पुत्र हैं। दोनों ने इन परिणामों को मौजूदा साझा सरकार के प्रति राज्य की जनता का व्यक्त विश्वास बताते हुए कहा है कि यह इस सरकार को अस्थिर करने के भाजपा के प्रयासों को करारा जवाब है। जनता दल (सेक्युलर)
का गठन देवेगौड़ा  ने जुलाई 1999 में जनता दल के विभाजन के बाद किया था। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने यहाँ तक कहा कि उनकी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन आगामी आम चुनाव में राज्य की सभी 28  लोकसभा सीटें जीतेगा। कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी इसे भाजपा विरोधी गठबंधन की जीत बताया है।

मांड्या सीट  जनता दल -सेकुलर के सी.एस. पुट्टाराजू  के इस्तीफा से रिक्त हुई थी , जो उन्होंने  विधान सभा चुनाव में जीतने के बाद दे दिया था। उपचुनाव में जनता दल -सेकुलर के ही एल. आर. शिवरामेगौडा जीते हैं. बेल्लारी उपचुनाव कांग्रेस के वी.एस. उग्रापा ने जीती।  शिवमोग्गा सीट पर पूर्व मुख्य मंत्री एवं भाजपा नेता बी एस येदुरप्पा के पुत्र बी. वाय.राघवेंद्र , जनता दल -सेकुलर प्रत्याशी मधु बंगरप्पा से जीत तो गए पर उनकी जीत का अंतर ज्यादा नहीं रहा। इस बार के विधानसभा चुनाव में शिकारीपुरा सीट से जीते  येदुरप्पा ने लोकसभा की  शिमोगा सीट से और भाजपा के ही श्रीरामिलू ने मोलाकलमुरू विधान सभा सीट से जीतने पर बेल्लारी  लोक सभा सीट से इस्तीफे दे  दिए थे। लेकिन  कुछ बारीक गड़बड़ी  हुई। लोकसभा सचिवालय ने पहले उनके इस्तीफे का अपने बुलेटिन में उल्लेख किया।  पर बाद में उस बुलेटिन को पलट कर उन्हें लोकसभा में भाजपा के सदस्य के रूप में ही दर्शा दिया। स्पष्ट नहीं हुआ कि ऐसा कैसे हो गया।  लोकसभा की वेबसाइट पर सदन में भाजपा के सदस्यों की संख्या  येदुरप्पा  और श्रीरामिलू को मिलाकर 274 बतायी गई ।

मीडिया विजिल के ‘ चुनाव चर्चा’ और ‘ संसद चर्चा ‘ स्तम्भ के भी पिछले अंकों में उस बुलेटिन की सत्यप्रति  दर्शाने के साथ
फौरी विश्लेषण किया गया कि यह एक तरह का फर्जीवाड़ा था।  जिसका उद्देश्य मनोविज्ञान की राजनीति के तहत यह दर्शाना था कि अविश्वास प्रस्तावों की नोटिसों से  घिरी  मोदी सरकार को कोई ख़तरा नहीं है और उनकी भाजपा को लोकसभा में एनडीए के सहारे ही नहीं अपने बूते भी स्पष्ट बहुमत हासिल है। इसके पहले खबरें थी कि लोकसभा  में भाजपा को स्पीकर , सुमित्रा महाजन के कास्टिंग वोट को मिलाकर और पार्टी से निलम्बित कीर्ति आजाद की सीट  जोड़े बगैर 271 सदस्यों का ही समर्थन प्राप्त है जो साधारण बहुमत की संख्या है। वर्ष  2014 के आम चुनाव में भाजपा ने खुद  282 सीटें जीती थी। बहरहाल मोदी सरकार के प्रति अविश्वास प्रस्ताव विफल हो गया।  तब लोकसभा में हुई वोटिंग के समय मौजूद 451 सदस्यों में से  325 ने इसका विरोध किया और सिर्फ 126 ने समर्थन किया।

कर्नाटक विधान सभा की कुल 224 सीटें हैं। फरवरी 2018 में हुए विधान सभा चुनाव में  भाजपा को 104 , कांग्रेस को  78 और जनता दल- सेकुलर को 37 सीटें मिली थी। उनके अलावा बहुजन समाज पार्टी और कर्नाटक प्रज्ञयवंथा जनता पार्टी को 1-1 सीटें मिली थी और एक निर्दलीय भी जीते।  जनता दल(एस) ने उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों के साथ चुनावी गठबंधन किया था।  भाजपा , विधान सभा चुनाव स्पष्ट रूप में नहीं जीत सकी। फिर भी उसने  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे और गुजरात में मोदी सरकार में मंत्री रह चुके राज्यपाल महोदय, वजुभाई वाला की कृपा  से  येदुरप्पा के मुख्य मंत्रित्व में  ‘ अल्पसंख्यक ‘ सरकार बना ली। उस सरकार ने  सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विधान सभा में शक्ति परीक्षण में अपना बहुमत साबित करने के लिए  जोड़-तोड़ से विधायकों  की आवश्यक संख्या का जुगाड़ करने में विफल रहने के बाद विश्वास मत पर वोटिंग कराये बगैर इस्तीफा दे दिया। उसी के बाद तब कुमारस्वामी फिर मुख्य मंत्री बने जब कांग्रेस ने  जनता दल -सेकुलर को नई सरकार बनाने के लिए उसको  बिना शर्त अपने समर्थन -पत्र  की प्रति राज्यपाल को सौंप दी । इसे राजनीतिक हलकों में अगले आम चुनाव में भारत की राजसत्ता के केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की ” केन्द्रीकृतवाद ” की जड़ पर चोट करने और  देश का राजकाज “संघीयतावादी ” संविधान  के अनुसार चलाने में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के साथ  मोर्चाबंदी को सुदृढ़ करने की तात्कालिक अनिवार्यता पर कांग्रेस की सहमति माना माना गया।

कर्नाटक, दक्षिण भारत का एकमात्र राज्य है जहां भाजपा सत्ता में रह चुकी है। कर्नाटक में उसकी पहली सरकार 2008 के विधान सभा चुनाव के बाद बनी थी। तब उसको अपने क्षेत्रीय नेता बी.एस.  येद्दयूरप्पा के नेतृत्व में  224 में से 110 सीटें मिली थी। भाजपा इससे पहले ,  2004 में भी 79 सीटें जीत कर विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। भाजपा 2013 का विधान सभा चुनाव येद्दयूरप्पा जी के बगैर लड़ी थी. उन्हें  मुख्यमंत्री पद से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण हटना पड़ा था। उन्होंने सत्ता से अपदस्थ होने के बाद अपनी नई पार्टी भी बना ली थी। बाद में उनकी  नई पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया गया।  येद्दयुरप्पा  को अरबों रूपये के भूमि-घोटाले में जेल भी जाना पड़ा था. 2013 के चुनाव में  भाजपा और जनता दल-सेकुलर  को बराबर 40-40 सीटें मिली थी। येद्दयूरप्पा जी की नई पार्टी को छह सीटें मिली थी। भाजपा से छिटका अनुसूचित जनजाति के नेता श्रीरामुलू  का गुट भी चार सीटें जीत गया था।  मगर 2018 के विधान सभा चुनाव में येद्दयूरप्पा और श्रीरामुलू  भाजपा में लौट आये थे। उनके भाजपा में लौट आने के बाद भी पार्टी को राज्य में कोई  राजनीतिक फायदा नहीं हो  सका , जो इन उपचुनावों के परिणामों से साफ है।

मौजूदा लोक सभा के इन उपचुनावों के बाद अब शायद ही कोई उपचुनाव हों। सुरक्षा कारणों से अनंतनाग में अभी तक उपचुनाव नहीं कराया है जो 2016 में  महबूबा मुफ़्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट से दिए इस्तीफा के कारण रिक्त है। वह राज्य में जम्मू -कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भाजपा की साझा सरकार में मुख्यमंत्री रहे अपने पिता मुफ़्ती मोहम्मद सईद के निधन से उत्पन्न परिस्थियों में  उनकी जगह 4 अप्रैल 2016 को उसी सांझा सरकार की मुख्यमंत्री बनी थीं। वह सरकार इसी बरस भाजपा के समर्थन वापसी के बाद गिर गई।

कुल मिलाकर कर्नाटक के नतीजे मिशन 2019 के नाम पर राष्ट्रीय स्तर पर ढोल-नगाड़े बजा रही भगवा पार्टी के लिए अशुभ संकेत जैसे हैं। दिलचस्प बात ये है कि इन नतीजों को मीडिया का बड़ा हिस्सा पचाने की कोशिश में जुटा नज़र आया, जैसे कि ये कोई बड़ी ख़बर नहीं है और न ही  इससे कुछ ख़ास संकेत मिलते हैं।



(मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)



 

 

 

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