सिद्धांत मोहन, twocircles.net
जमात-ए-उलेमा हिंद (जेयूएच) के नेताओं ने कुछ दिन पहले जब 25 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की, तो लोगों में यह संदेश दिया गया कि इसमें दोनों पक्षों के बीच ”परस्पर संवाद के दरवाज़े खेलने” पर ज़ोर दिया गया था।
जमात के नेताओं द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में तो कम से कम यही बात सामने आई थी, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी वक्तव्य उन विषयों और मुद्दों पर केंद्रित रहा जो जमात की प्रेस विज्ञप्ति से नदारद थे।
पीएमओ का बयान कहता है, ”तीन तलाक के मसले पर उन्होंने (जेयूएच) प्रधानमंत्री के पक्ष की सराहना की।” दिलचस्प बात है कि तीन तलाक का मुद्दा जहां पीएमओ के वक्तव्य में दो बार आया, वहीं जमात के प्रेस नोट में यह पूरी तरह नदारद था।
इतना ही नहीं, पीएमओ ने कहा, ”तीन तलाक के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने दुहराया कि मुस्लिम समुदाय को इस मसले का राजनीतिकरण नहीं होने देना चाहिए और सभा से अनुरोध किया कि वे इस संबंध में सुधार की पहल करने की जिम्मेदारी उठाए।”
इस संदर्भ में जेयूएच ने अपने नोट में कहा है, ”पीएम ने हमारे इस पक्ष की सराहना की कि तलाक मुस्लिम समुदाय का आंतरिक मसला है और खुद समुदाय को ही इस संबंध में सुधार की पहल लेनी चाहिए।”
महमूद मदनी के अनुसार, ”पीएम मोदी गोरक्षा के नाम पर बढ़ रही नफ़रत को लेकर आशंकित थे और उन्होंने आश्वस्त किया कि चे इस चलन को आगे नहीं बढ़ने देंगेा” इसके साथ अगर पीएमओ के बयान को मिलाकर देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि गोरक्षा और उसके नाम पर हो रही हिंसा नरेंद्र मोदी के लिए इस बैठक में कोई मसला ही नहीं था।
जेयूएच इस मसले पर इतना चिंतित था कि उसने अपने बयान और प्रधानमंत्री को सोंपे अपने पत्र में भी उसका अहम तरीके से जि़क्र किया है। पीएमओ हालांकि इसे लेकर कम चिंतित दिखा जिसने अपने बयान में धार्मिक आतंकवाद, खासकर इस्लामिक आतंकवाद पर ज़ोर दिया।
पीएमओ ने लिखा है, ”यह मानते हुए कि आतंकवाद एक अहम चुनौती है, उन्होंने (जेयूएच) पूरी ताकत के साथ उससे निपटने का साझा संकल्प जाहिर किया। उन्होंने यह भी कहा कि यह तय करने की जिम्मेदारी मुस्लिम समुदाय की है कि किसी भी हालात में कोई भी राष्ट्र की सुरक्षा या भले के साथ समझौता न करने पाए।” पीएमओ का नोट कहता है, ”उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय भारत के खिलाफ होने वाली किसी भी साजिश को कामयाब नहीं होने देगाा”
जेयूएच के नोट में हालांकि केवल एक आतंकवाद का जि़क्र आया है जिसे लेकर वह चिंतित है और वो है गोरक्षा के नाम पर आजकल चलाया जा रहा दुष्प्रचार अभियान।
पीमओ का दावा है, ”प्रतिनिधिमंडल ने केंद्र सरकार के अंतर्गत चलाई जा रही अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं की भी सराहना की।” जेयूएच का हालांकि इस किस्म की योजनाओं के साथ बैठक में कोई सरोकार नहीं दिखा था।
एक बात ध्यान देने वाली यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने जब कभी मुसलमानों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की है या उसे संबोधित किया है, वहां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल हमेशा मौजूद रहे हैं। इस बैठक में और इससे पहले भी दोनों ही पक्षों की ओर से डोभाल की मौजूदगी पर कभी कोई सवाल नहीं उठा।
इससे उलट पीएमओ के बयान में कहा गया, ”प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजित डोभाल ने कहा कि सारी दुनिया की निगाह आज भारत की ओर है और देश को आगे ले जाने की जिम्मेदारी आज भारतीय समाज के हर तबके की है।”
उपर्युक्त तमाम तथ्यों के आधार पर यह संदेह होता है कि यह बैठक कुल मिलाकर क्या पीएमओ और जेयूएच की ओर से महज एक औपचारिक कवायद थी और क्या दोनों पक्षों ने वास्तव में एक-दूसरे को गंभीरता से सुनने की ज़हमत नहीं उठायी।
साभार: twocircles.net