जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी के लापता छात्र नजीब के संबंध में उसकी मां फ़ातिमा नफ़ीस की ओर से लगाई गई हेबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस दीपा शर्मा की खंडपीठ ने दिल्ली पुलिस से पूछा कि क्या उसने टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्टर राजशेखर झा से जवाब तलब किया जिसने ”प्रेस में स्टोरी (आइआइएस) प्लान्ट की थी?”
नजीब अहमद को जेएनयू से गायब हुए छह महीने से ज्यादा हो रहे हैं। एक ओर दिल्ली पुलिस उसे खोज पाने में नाकाम रही है, तो दूसरी ओर मीडिया के कुछ तबकों ने उसे लेकर दुष्प्रचार करने वाली खबरें चलाई हैं। ऐसी ही एक खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में 21 मार्च को दिल्ली पुलिस के हवाले से राजशेखर झा की बाइलाइन से छपी थी कि नजीब गूगल और यू-ट्यूब पर इस्लामिक स्टेट से जुड़ी सामग्री खोजता था। खबर के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि जिस सुबह जेएनयू का छात्र नजीब गायब हुआ उससे एक रात पहले 14 अक्टूबर को वह आइएस के एक नेता का भाषण सुन रहा था जिस दौरान एबीवीपी के छात्रों ने उसका दरवाजा खटखटाया और उसकी झड़प हुई।
इस खबर के संबंध में दिल्ली पुलिस के पीआरओ और डीसीपी मधुर वर्मा की ओर से जारी एक स्पष्टीकरण में साफ़ कहा गया है कि दिल्ली पुलिस की जांच में अब तक नजीब और आइएस के बीच का कोई संबंध नहीं मिला है, न ही पुलिस ने अब तक यूट्यूब और गूगल से नजीब की सर्च हिस्ट्री की कोई रिपोर्ट हासिल की है।
अदालत ने शुक्रवार को अपनी टिप्पणी में इस ”प्लान्ट” की गई खबर के बारे में दिल्ली पुलिस को लताड़ते हुए काफी गंभीर बात कही, ”क्या आपने पत्रकार से जवाब तलब किया और पता लगाया कि किसने प्रेस में यह स्टोरी प्लान्ट करवायी थी? यह परिवार की प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान पहुंचाने वाला कदम है…।”
जस्टिस सांघवी ने कहा, ”यह पत्रकार पुलिस के स्रोत का हवाला दे रहा है। अगर पुलिस खुद इस लीक का खंडन कर रही है, तो आपको पता लगाना चाहिए कि यह काम किसने किया।”
दिलचस्प यह है कि अदालत की शुक्रवार की सुनवाई की ख़बर तो टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापी है लेकिन अपने पत्रकार के बारे में अदालत की टिप्पणी को अख़बार बड़ी चतुराई से छुपा गया है। अख़बार में छपी ख़बर में राजशेखर झा द्वारा ”प्लान्ट” की गई नजीब की ख़बर का जि़क्र ही गायब है। पीटीआइ की ख़बर में टाइम्स ऑफ इंडिया पर जस्टिस सांघवी की टिप्पणी का हवाला है।
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया से जारी ख़बर के मुताबिक दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी सुनवाई में साफ़ कहा कि दिल्ली पुलिस ”बच निकलने का रास्ता” तलाश रही है और घटना के इर्द-गिर्द हाथ-पांव मार रही है (बीटिंग अराउंड दि बुश)। खंडपीठ ने कहा कि पुलिस का इस मामले में व्यवहार दिखाता है कि वह मामले को सनसनीखेज बनाने की कोशिश में थी या इससे बच निकलने का रास्ता खोज रही थी क्योंकि उसने सील कवर में अपनी रिपोर्ट फाइल की थी जबकि ”उसमें कुछ भी गोपनीय, खतरनाक या अहम नहीं था”।
अदालत का इशारा लापता छात्र के लैपटॉप ओर कॉल रिकॉर्ड पर फॉरेंसिक रिपोर्ट की ओर था जिसे पुलिस ने सील कवर में जमा किया था जबकि उसे खुद अपने ही वकील से साझा नहीं किया। बेंच ने कहा, ”हमारी धारणा यही बन रही है कि जांच कायदे से नहीं की जा रही है।”
राजशेखर झा के संबंध में जब बेंच ने सवाल उठाया, तो जवाब में पुलिस की ओर से पेश हुए अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि रिपोर्टर से उसका स्रोत पूछा गया था और उसने उसे जाहिर करने से इनकार कर दिया था। इस पर अदालत का कहना था कि पुलिस को आंतरिक जांच करनी चाहिए थी कि आखिर वह कौन ऑफिसर था जिसने यह सूचना लीक या प्लान्ट करायी।
अदालत ने कहा, ”हमें कानून के नियम का अनुपालन करना ही होगा वरना आज नजीब के साथ ऐसा हुआ है, कल कोई और हो सकता है। केवल इसलिए कि वह एक विशिष्ट समुदाय से आता है और जिन व्यक्तियों का नाम सामने आ रहा है वे दूसरे समुदाय से हैं या फिर सत्ताधारी पार्टी के साथ रिश्ता रखते हैं, अगर इसके चलते ऐसा हो रहा है तो यह बहुत ही बुरा है।”
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