मि.NSA, क्या लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमज़ोर करने वाली सरकार मज़बूत होती है?



प्रशांत टंडन


राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित दोवल को दस साल के लिये मजबूत सरकार चाहिये – मुझे इनके बयान में इमरजेंसी सुनाई दे रहा है. देश को मज़बूत लोकतंत्र चाहिये और मज़बूत नहीं जवाबदेह सरकार चाहिये।

वैसे दोवल साहब मज़बूत सरकार होती क्या है?

# मज़बूत सरकार पठानकोट के एयरफोर्स बेस में हुये आतंकवादी हमले की जांच के लिये पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI को नहीं बुलाती है. और उस ISI को जिस पर आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगते हों।

# मज़बूत सरकार का प्रधानमंत्री पार्टी अध्यक्ष को बगल में बैठा कर सीबीआई प्रमुख को रात दो बजे नहीं हटाता है।

# मज़बूत सरकार की नाक के नीचे से देश का हजारों करोड़ रुपया लेकर कोई नहीं भाग पाता है और भाग भी जाये तो मज़बूत सरकार उसका प्रत्यपर्ण करा लेती है।

# मज़बूत सरकार एक मज़बूत अर्थव्यवस्था भी देती है जो रोजगार पैदा कर सके।

# मज़बूत सरकार का प्रधानमंत्री मीडिया से भागता नहीं है बल्कि ज़रूरी मसलों पर प्रेस कान्फ्रेंस करता है – सवालों का सामना करता है।

# मज़बूत सरकार बोलने की आज़ादी से नहीं घबराती है।

# मज़बूत सरकार का प्रधानमंत्री सिर्फ चमचे पत्रकारों को पहले से तय सवालों पर इंटरव्यू नहीं देता है।

# मज़बूत सरकार का प्रधानमंत्री महिला सुरक्षा, बलात्कार जैसे मसलों पर एक सख्त रुख अपनाता है – खामोश नहीं हो जाता है।

# मज़बूत सरकार में भीड़ की हिम्मत नहीं होती है कि वो पीट पीट कर किसी निर्दोष की जान ले ले ।

# मज़बूत सरकार के रहते चीन की हिम्मत नहीं होती कि डोकलाम में घुस जाता।

# मज़बूत सरकार पहले से तय रक्षा सौदों में तीन गुना कीमत देने पर राज़ी नहीं हो जाती है।

# मज़बूत सरकार दो-चार उद्योगपतियों के लिये नहीं काम करती है।

# मज़बूत सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट नहीं करती है।

और मज़बूत सरकार के सुरक्षा सलाहकार को सीबीआई के प्रमुख की खुफिया एजेंसी के लोगों से जासूसी कराने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।