जो कमलनाथ ने कहा, वही शिवराज कहते थे ! गुजरात और हिमाचल में स्थानीय लोगों का कोटा 80% से ज़्यादा !


शिवराज सिंह ने 2012 में ही कह दिया था कि प्रदेश में आने वाले उद्योगों में कम से कम 50 प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को देना होगा





गिरीश मालवीय

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के बयान पर काफ़ी हंगामा हो रहा है। लेकिन यह ‘सूप तो सूप चलनिया भी बोले’ वाली बात है। ख़ासतौर पर बीजेपी को कमलनाथ के बयान की निंदा करने का हक़ नहीं है, क्योंकि ख़ुद शिवराज पहले ऐसी बात कह चुके हैं और गुजरात और हिमाचल में उसकी सरकारें भी यही कर रही हैं।   

 दरअसल कमलनाथ ने निवेश को प्रोत्साहन देने वाली योजना की घोषणा करते शर्त रखी कि वे निवेशकर्ता कंपनी को इन्सेटिव (प्रोत्साहन) तभी देंगे, जब कंपनी मध्य प्रदेश के 70 प्रतिशत कर्मचारियों को रोजगार दे. आगे उन्होंने कहा कि कि मध्य प्रदेश के लोग बेरोज़गार रह जाते हैं, जबकि यूपी-बिहार के लोग नौकरियां पा जाते हैं। इस ‘पा जाते हैं’ को मीडिया ने ‘खा जाते’ बताते हुए शिवसेना और राज ठाकरे टाइप राजनीति से जैसी तुलना की है, उस पर वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव की  यह फेसबुक टिप्पणी देखी जानी चाहिए। अमिताभ आज तक से लेकर इंडिया टीवी के वरिष्ठ पदों पर असरे तक काम कर चुके हैं।

कमलनाथ के बयान पर भाजपा प्रवक्ता संजय टाइगर ने कहा कि देश का संविधान देश के किसी भी कोने में किसी भी नागरिक को रहने, पढ़ने और काम करने की आज़ादी देता है। उन्होंने कांग्रेस पर क्षेत्रीयता का बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस शुरू से क्षेत्रीयता, जातीयता, सांप्रदायिकता के आधार पर जनता को बांटकर शासन करती रही है।

लेकिन अगर ऐसा करना गलत है तो जब यही बात सालों पहले शिवराज सिंह चौहान ने कही थी तो विरोध क्यों नही किया? शिवराज सिंह ने 2012 में ही कह दिया था कि प्रदेश में आने वाले उद्योगों में कम से कम 50 प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को देना होगा। अपने उद्योग में जो 90 प्रतिशत स्थानीय लोगों को रोजगार देंगे उन्हें दो वर्ष तक टैक्स में रियायत दी जायेगी। एक हजार स्थानीय युवाओं को रोजगार देने वाले छोटे उद्योगों को भी कर में छूट दी जायेगी ओर यह बात बकायदा सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है आप मध्यप्रदेश की सरकारी वेबसाइट  में देख सकते हैं

यह तो हुई मध्यप्रदेश की बात अब आते हैं गुजरात पर जो प्रधानमंत्री मोदी का गृहराज्य रहा है बीते अक्टूबर में गुजरात में बाहरियों के खिलाफ़ चले अभियान के कारण वहां से करीब 80 हज़ार से ज़्यादा लोग गुजरात छोड़कर भाग गए थे। हिम्मतनगर में एक 14 साल की बच्ची के साथ हुई बलात्कार की घटना के बाद वहां बाहरी लोगों के खिलाफ़ हिंसा भड़क उठी थी। यह हिंसा सिर्फ इसलिए हुई क्योकि गुजरात की विजय रुपाणी की सरकार औद्योगिक इकाइयों को नोटिस देकर 85 फीसद काम स्थानीय युवाओं को देने का दबाव बना रही थी। गुजरात श्रम व रोजगार मंत्रालय के अतिरिक्त मुख्य सचिव विपुल मित्रा कह रहे थे कि राज्य सरकार गुजरात के युवाओं को औद्योगिक इकाइयों में रोजगार व नौकरी दिलाने के लिए राज्य सरकार पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के वर्ष 1995 में लाए गए एक कानून को अमल में ला रही है जिसके तहत सरकारी व गैर सरकारी औद्योगिक इकाइयों में 85 प्रतिशत स्थानीय युवाओं को काम देने को सुनिश्चित किया जा सके। आप  अख़बार में छपी यह ख़बर अभी भी पढ़ सकते हैं।

अच्छा गुजरात को भी छोड़ दीजिए। कुछ दिन पहले हिमाचल सरकार ने फैसला लिया था कि 80 फीसदी हिमाचलियों को नौकरी अनिवार्य कर दी जाए । ऐसा न करने वाले उद्योगों को ब्लैक लिस्ट किया जाएगा। यह स्थानीय युवाओं को निजी क्षेत्र में 80 प्रतिशत रोजगार की व्यवस्था है जबकि कमलनाथ 70 फीसदी ही कह र हे हैं। ख़बर पढ़िए। 

स्थानीय लोगो को प्रदेश में आने वाली नयी इंडस्ट्री मे रोजगार में प्राथमिकता की बात लगभग हर नया मुख्यमंत्री करता है, लेकिन यहाँ इस खबर को ऐसे पेश किया जा रहा है कि यह कोई अनोखी बात बोल दी है। मीडिया के ऐंकर-ऐंकरानियों से तो ख़ैर क्या उम्मीद पर संपादक भी भांग खाए बैठे हैं, अफ़सोस यह है।

लेखक आर्थिक मामलों के जानकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।