मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के खिलाफ दर्ज एफआईआर निरस्त करने संबंधी उनकी याचिका की सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पूरी पीठ ने और अब जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने खुद को अलग कर लिया है. इस मामले में अब तक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई सहित पांच जज सुनवाई से खुद को अलग कर चुके हैं.
Bhima Koregaon: Justice Ravindra Bhat fifth Judge to recuse from Gautam Navlakha's plea #GautamNavlakha#Bhimakoregaonhttps://t.co/lhzQJ8mf61
— Bar and Bench (@barandbench) October 3, 2019
इससे पहले 1 सितम्बर को यह मामला जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की पीठ के समक्ष को नवलखा की अपील सुनवाई के लिए आई थी. किन्तु तीनों जजों ने नवलखा की अपील पर सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया. इस पीठ से पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भी इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.
Gautam Navlakha plea: Entire 3-judge Bench recuses, four recusals so farhttps://t.co/DnmVyHzN4N
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि इस मामले को अब 03.10.2019 को उस पीठ के सामने सूचीबद्ध करें जिसमें हममें (जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई) से कोई भी सदस्य न हो.’
Gautam-Navlakha-order
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नवलखा की अपील अब तीन अक्टूबर को किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की जाएगी.
पुणे पुलिस ने 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के बाद जनवरी 2018 में नवलखा और अन्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी.
मामले में गौतम नवलखा ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर की थी.
13 सितंबर को हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ एफआईआर रद्द करने से मना कर दिया था. अदालत ने कहा था कि इस मामले को उस पीठ के पास भेजा जाए, जिसमें वह पार्टी न हों.
हाईकोर्ट ने कहा था कि इस मामले में पहली नजर में ठोस सामग्री है. उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी गहराई से जांच की आवश्यकता है.
इस मामले में महाराष्ट्र सरकार ने अदालत ने अनुरोध किया है कि उनका पक्ष सुने बगैर कोई आदेश पारित नहीं किया जाए.
31 दिसंबर 2017 को भीमा-कोरेगांव में एल्गर परिषद आयोजित की गई थी. इसके अगले ही दिन हिंसा शुरू हो गई थी. इसके बाद नवलखा और अन्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. उन पर नक्सलियों से संपर्क रखने का आरोप भी लगा था.
दुनिया में शायद पहली बार एक व्यक्ति की जमानत की अर्जी सुनने से सर्वोच्च न्यायालय के 4 जज इनकार कर चुके हैं !